कुंडलिया- बरगद
बरगद कुंठित हो उठा, सुनहि तुलसी पुराण।
लघुतर पादप होइके, तुलसी गुण की खान।।
तुलसी गुण की खान, ऋषि मुनि वैद्य बखाने।
बरगद रूँधे खेत, तरू-पादप कुमलाने।।
कहत ‘कल्प’ कविराज, जो तोड़े अपनी सरहद।
छोटन को खा जाए, न चाहो ऐसो बरगद।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’