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18 Jul 2021 · 1 min read

किस मशीनी दौर में रहने लगा है आदमी

किस मशीनी दौर में रहने लगा है आदमी
दर्द के सागर में गुम बहने लगा है आदमी

सभ्यता इक दूसरा अध्याय अब रचने लगी
बोझ माँ-ओ-बाप को कहने लगा है आदमी

दूसरे को काटने की ये कला सीखी कहाँ
साँप के अब साथ क्या रहने लगा है आदमी

लुट रही है घर की इज़्ज़त कौड़ियों के दाम अब
लोकशाही में यूँ दुःख सहने लगा है आदमी

इक मकां की चाह में जज़्बात जर्जर हो गए
खण्डहर बन आज खुद ढहने लगा है आदमी

•••

4 Likes · 6 Comments · 253 Views
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