Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Aug 2017 · 33 min read

किस्सा / सांग – # नल-दमयन्ती # रचनाकार सूर्यकवि पं लख्मीचंद

वार्ता:-
यह राजा नल चरित्र ब्रहदस ऋषि महाराज युधिष्टर को समझा रहे थे, युधिष्टर ने कहा कि महाराज हमारे को नल दमयन्ति का चरित्र खोलकर सुनाने का कष्ट करो, अब ऋषि जी सारी कथा सुनाते है…!!!!

{रागनी न० 01 किस्सा नल-दमयन्ती}

समझ ना सकते जगत के मन पै अज्ञान रूपी मल होग्या
बेईमान मै मग्न रहैं सै गांठ- गांठ मै छल होग्या..!!टेक!!

भाई धोरै मां जाया भाई चाहता बैठणा पास नही,
मात-पिता गुरू शिष्य नै कहै मेरे चरण का दास नही,
बीर और मर्द कमाकै ल्यादे पेट भरण की आस नही,
मित्र बणकै दगा कमाज्यां नौकर का विश्वास नही,
जब से गारत महाभारत मै अठारा अक्षोणी दल होग्या..!!१!!

नियम धर्म तप दान छूटगे न्युं भारत पै जाल पड़ै,
इन्द्र भी कम बर्षा करते जल बिन सुखे ताल पड़ै,
बावन जनक हुए ब्रह्मज्ञानी वेद धर्म के ख्याल पडै़,
राजा शील धवज के बारे मै भी बारह वर्ष तक काल पड़ै,
उस काल का कारण समझाण खात्र त्यार जनक का हल होग्या..!!२!!

शिक्षा कल्प व्याकरण ज्योतिष निरूकत छन्द की जाण नही,
श्रुती समृति महाभारत समझे अठारह पुराण नही,
बिन सतगुर के उपनिषदो के ज्ञान की कोई पहचान नही,
पढे लिखे बिन मात पिता गुरू छोटे बड़े की काण नही,
सत पत गोपत विधि भाग बिन सब कर्तव्य निष्फल होगया. !!३!!

दुमत दांत दमयन्ती दमन राजा भीमसेन कै कुन्दन पुर मैं,
देवता त्रषि और पितृ प्रसन्न कर आनन्द करते थे घर मै,
ऋषियों द्वारा यज्ञ कराकै चार औलाद मिली बर मै,
लख्मीचन्द धर्म के सेवक कभी नही रहते डर मै,
सतयुग मै एक निषध देश मे वीरसैन कै नल होग्या..!!४!!

एक दिन राजा नल जंगल मे शिकार खेलने चले गए, उनको हंसों की लार नजर पड़ी..!!!!!!

{रागनी न० 03 किस्सा नल-दमयन्ती}

राजा नल नै बणखंड मै एक हंसा की डार पाई..!!टेक!!

हंस जंगल कै बीच विचरें थे, खुशबोईले कै पेट भरै थे,
जड़ै के हंस फिरै थे, बण की शोभा गुलजार पाई..!!१!!

हंसा केसा गात भी के सै, विधना बिना हाथ भी के सै,
दो चार की बात भी के सै, पूरी सोवां की लार पाई..!!२!!

था नल का भी रूप निराला, हंसा नै देख हुआ मतवाला,
जब हंसा नै पकड़न चाल्या, वा डार उड़न ने त्यार पाई..!!३!!

लख्मीचन्द धरै नै धीर, एक तै पकड़ लिया आखिर,
उस दिन की कर तदबीर, जब की मृत्यु करार पाई..!!४!!

{रागनी न० 02 किस्सा नल-दमयन्ती}

कंवल से नैन नाक सुवा सा चन्दा सा मुख गोल जिसका
झूठ कदे ना बोल्या करता रूप घणा अनमोल जिसका..!!टेक!!

नल जंगल मै फिरा करै था,
सदा अधर्म से डरा करै था,
प्राण खींच तप करा करै था,
सत मै पूरा तोल जिसका..!!१!!

धर्म के छिद्र टोहया करै था,
भूल मैं कदे ना सोया करै था,
देवतां तक के मन मोहया करै था,
प्रेम का मीठा बोल जिसका..!!२!!

घी सामग्री लगै थी हवन मै,
भुप कै घाटा ना था धन मै,
हर दम रहै थी नीत भजन मै,
चित नही डामां डौल जिसका..!!३!!

लख्मीचन्द मत पड़ कूए मै,
जाणै के लिखी भाग मूए मै,
राज जिता दिया था जूए मै,
कलू नै बजाकै ढोल जिसका..!!४!!

राजा नल हंसो को देखकर उनको पकड़ने के लिए आगे बढ़े तो सभी हंस भाग गए परन्तू एक हंस पकड़ा गया, वह हंस जानता था कि यह राजा नल है और बड़ा धर्मात्मा राजा है, तब वह हंस राजा नल से क्या कहता है..!!!!!

{रागनी न० 04 किस्सा नल-दमयन्ती}

राजा नल मत मारिये जै दया करै तै मेरी
तेरे भाग कै नीचै दबकै मै भूलग्या हेरा फेरी..!!टेक!!

सजनों तैं ना खटकया करते, सहम नाड ना झटकया करते,
हम तेरे दर्शन नै भटक्या करते,
मिलकै श्याम सवेरी..!!१!!

लड़ना चाहिए तैयार भी हो तै,
हटै नही चाहे हार भी हो तै
भव सागर तै पार भी हो तै,
चहिए प्रीत घनेरी..!!२!!

सुण बीर सैन के पूत लाडले,
मनै लई तेरी आज आड ले,
जो शर्ण पड़ै की ज्सान कांढ ले,
तै धर्म की डूबा ढेरी..!!३!!

लख्मीचन्द कहैं छाया धूप की,
गर्ज मिटै ना अन्ध कूप की,
राजा भीम कै बेटी तेरे रूप की,
उसतै जोट मिलादूं तेरी..!!४!!

हंस ने कहा कुन्दनपुर के राजा भीमसैन की लडकी दमयन्ती तुम्हारे रूप से मिलती जुलती है, मै उससे तुम्हारी जोट मिला दूंगा, अब वह हंस अपने दूसरे साथियों के पास गया और क्या कहता है..!!!!

{रागनी न० 05 किस्सा नल-दमयन्ती}

आओ रे हंसो विदर्भ देश, कुन्दनपूर नगरी चलैं जी..!!टेक!!

जो दमयन्ती के दर्शन पाले, देवतां तक के मन भरमाले,
हूर के लम्बे -२ काले-२ घुमर वाले केश, दर्शन करतें दुख टलै जी..!!१!!

बचग्या मैं मरणे के भय से, नल की जोट मिलादूं ऐसे,
जैसे कंवल खिले जल मै प्रवेश, चन्द्रमा ज्यूं घन मै खिलै जी..!!२!!

चीज सै वा दूनिया मै अनमोली, ह्रदय बीच ज्ञान श्यान की भोली,
जिस की मीठी बोली दिल मै पाप का ना लेश, दमयन्ती तै चल मिलै जी..!!३!!

कहै लख्मीचन्द प्रेम की बाणी, जब मिलै नल की जोट निमाणी,
जब दमयन्ती बणजागी राणी करकै हूरां केसा भेष, दोनो घर दीपक बलै जी..!!४!!

उधर पहूंचने पर दमयन्ति ने हंसो को बाग में घूमते हूए देखा तो उसको बह हंस बहूत ही प्यारे लगे, वह उनको पकड़ना चाहती है और अपनी सखियों से दमयन्ति क्या कहने लगी……

{रागनी न० 06 किस्सा नल-दमयन्ती}

स्वर्ग केसा आन्नद म्हारे बाग मैं,*
सखी कर रहे हंस किलोल,*
हरी हर म्हारे राम की माया..!!टेक!!*

किसे रूप के फटकारे लगैं,
जैंसे चांद सूरज तारे लगैं,
वैं हंस चले जब प्यारे लगैं,
वा भी रही थी हंसणी सी डोल,
हरी हर म्हारे राम की माया..!!१!!*

किसी चम्पे की खिलरी कली,
इतर की खश्बोई बदन मै मली,
सखी हंसां कै पीछै चली,
रही आओ-२ करकै नै बोल,
हरी हर म्हारे राम की माया..!!२!!*

वैं हंस भगण लगे घणी दूर कै,
सखी लाई थी जाल सा पूर कै,
वो हे हंस हिथ्याग्या हूर कै,
जिसनै पिछले जन्म का तोल,
हरी हर म्हारे राम की माया..!!३!!*

लख्मीचन्द कुछ बिचारिये,
न्यूं सोचन लगी पुचकारिये,
वो हंस कह मत मारिये,
मै दयूंगा भेद नै खोल,
हरी हर म्हारे राम की माया..!!४!!*

जब दमयन्ती हंसो को पकड़ने के लिए आगे बढ़ी तो सारे हंस भाग गए, एक वही हंस पीछे रह गया और उसी को दमयन्ती ने पकड़ लिया जिसको राजा नल ने पकड़ा था, पकड़ते ही उस हंस ने दमयन्ती से क्यां…

{रागनी न० 07 किस्सा नल-दमयन्ती}

वैं मारैंगे हंसा नै तै जिनके ह्रदय हर ना
बात कहूंगा खोल कै कुछ मरण तैं आगे डर ना..!!टेक!!

रहै सै किस नींद नशे मै लेटी,
काया पिछला जन्म चपेटी,
बेटी चाहिए सासरै हे सदा बाप कै घर ना..!!१!!

बात नै कुटुम्ब कै आगै फोड़िये,
प्रीती राजा नल तै जोड़िये,
कसकै मतना मरोड़िए मेरी तोड़ण जोगी पर ना..!!२!!

तूं भी रूप गजब का ले रही,
नल नै रटा कर श्याम सवेरी,
उस तै जोट मिलै सै तेरी और जोड़ी का वर ना..!!३!!

लख्मीचन्द भली ठाणनियां,
हम सै दूध नीर छाणनियां,
इस पद के जाणनियां कै धन धड़ देही और सर ना..!!४!!

जब दमयन्ती ने राजा नल का नाम और प्रशंशा सुनी तो शरीर में एक दम रोमांच सा हो गया वह कहने लगी क्या राजा नल मुझे चाहेंगे ? हंस ने कहा कि मै उसी का भेजा हूआ आपके पास आया हूं , अब दमयन्ती उस हंस को छोड देती है और कहने लगी कि जाओ राजा नल को ऐसे कह देना…..

{रागनी न० 08 किस्सा नल-दमयन्ती}

जाईये रे हंसो राजा नल के पास
नल के मिलन की मनै पूरी-२ आस..!!टेक!!

कदे नल रहज्या ना बिन बेरै,
बात का ख्याल रहै ना तेरै,
तेरे ही वचन की मेरै, सै पक्का विश्वास,
तू ही तो कह था नल सच्चा आदमी खास..!!१!!

तू ही कहै था नल प्रीत पालना सै,
मनै तूं उसके पास धालना सै,
कह दिऐ मामूली सा चालणा सै, कोस सौ पचास,
दमयनती की शादी मैं हों पूरे रंग राश..!!२!!

तेरा कहणां मंजूर करूगी,
नल की इज्जत भरपूर करूंगी,
पति के दुख नै दूर करूगी, बण चरणा की दास,
तनै मौती भर -२ दूध पिलाऊं सोने के गिलास..!!३!!

लख्मीचन्द फिकर करूं निस दिन,
जाणै मेरा रंज मिटैगा किस दिन,
जिस दिन, बेदी रचकै अग्नि मै हो सामग्री का बास,
जैले पूर्णमाशी की रात नै हो चन्दा का प्रकाश..!!४!!

अब दमयन्ती अपने पति राजा नल के बारे में अपने मन में क्या सोचती है…

{रागनी न० 09 किस्सा नल-दमयन्ती}

बेरा ना कद पार होऊंगी पिया की सुमर मैं
दमयन्ती कुंद रहण लाग गी नल के फिकर मै..!!टेक!!

हांसै खेलै और डोलै कोन्यां,
बात नै किसे तै खौले कोन्यां,
दासियां तैं बोलै कोन्या, अलग पड़ी रह घर मै..!!१!!

अच्छा-अच्छा के मैं उनकै याद होंगी,
बल्कि अपणे दिल से बाध होगी,
जाणै कद सुख समाध होगी, नल प्रीतम को वर मै..!!२!!

हंस की बातों से प्यार करै थी,
ध्यान नल का हर बार करै थी,
नहीं किसे तैं तकरार करै थी, क्योंकि लागगी जिगर मै..!!३!!

लख्मीचन्द कहै खरी रहै थी,
रात दिन रंज मै भरी रहै थी,
वा सूरत चित पै धरी रहै थी, जैसे चन्द्रमा शिखर मै..!!४!!

अब हर समय दमयन्ती का चहेरा मुरझाया सा रहने लगा, राणी राजा भीमसैन के पास गई और क्या कहने लगी…

{रागनी न०10 किस्सा नल-दमयन्ती}

दमयन्ती कुन्द रहण लागगी बोलण तैं बन्द बाणी होगी
रचा स्वंयबर शादी करदो ब्याहवण जोगी स्याणी होगी..!!टेक!!

काम देव का जंग देख कै,
बेटी का दिल तंग देख कै,
दमयन्ती का ढंग देख कै,
मुश्किल रोटी खाणी होगी..!!१!!

चाहिये बात धर्म की कहणी,
होगी तन मै विपता सहणी,
स्याणी बेटी कवारी रहणी,
दिन दिन धर्म की हाणी होगी..!!२!!

पहले थी नादान अवस्था,
के समझै थी अज्ञान अवस्था,
इब सोला वर्ष की जवान अवस्था,
तनै भी बात पिछाणी होगी..!!३!!

लख्मीचन्द छन्द धरा करै थे,
कर्म कर दोष नै हरया करै थै,
जो पहलम ग्रहस्थी करा करै थे,
वैं छोड दी बात पुराणी होगी..!!४!!

राजा और राणी दोनो की एक सलाह हो गई तो फिर राजा भीमसैन ने दमयन्ती के स्वयंबर की घोषणा करदी, स्वंयबर की घोषणा मिलते ही नारद जी स्वर्ग में इन्द्र के पास गए, वहां उस समय इन्द्र सहित अग्नि, वरूण और यमराज उपस्थित थे , नारदजी स्वयंबर का कैसे वर्णन करते है…

{रागनी न०11 किस्सा नल-दमयन्ती}

भीमसैन नै रचा स्वंयबर राजाओ के मण्डल छागे
नारद ऋषि इन्द्र कै आगै स्वर्ग मै जिकर करण लागे..!!टेक!!

एक दिन राजा भीमसैन की ऋषियों से फरयाद हूई,
ऋषियों ने यज्ञ रचा पुत्रेष्टी पुन हवम मर्याद हूई,
यज्ञ हवन से तीन पुत्र एक पुत्री चार औलाद हूई,
इन्द्राणी ब्रह्माणी लक्ष्मी रूप में सबसे बाध हूई,
जों कोए दमयन्ती नै ब्याहले उसके फेर निमत जागे..!!१!!

वरूण इन्द्र यम अग्नि स्वर्ग तै चार देवता मिल चाले,
सबके दिल मै यही चाव था कि दमयन्ती मुझको ब्याहले,
यह भी गुमान था म्हारे रहते कौण मनुष्य जो परणाले,
परारब्ध उधोग करे बिन कौण शख्श पदवी पाले,
पूर्व पश्चिम उतर दक्षिण तैं सब राजे आवैं भागे..!!२!!

हंस के कहणे से राजा नल भी दमयन्ती को चाहता था,
देव ऋषि पित्र प्रसन्न कर ज्ञान ध्यान सत दाता था,
गऊ ब्राह्माण साधु को प्रसन्न कर सबसे वर पाता था,
अर्थ सजाकर पवन बेग से कुन्दनपुर को जाता था,
रस्ते में मिले चार देवता उधर से राजा नल आता था,
चारों देवता मिल आपस मै नल से जिकर करण लागे..!!३!!

कामदेव केसी छवी स्वरूप सूर्ज के तेज ज्यूं नजर पड़ा,
हूए निराश देवता सारे नल को देख कै मान जड़ा,
तूं सत्यवादी राजा नल है सिध्द कर म्हारा काम अड़ा,
लख्मीचन्द कहै इतनी सुनकै हाथ जोड़ नल हूआ खड़ा,
नल केसे सत्यवादी बन्दे फेर मोक्ष का पद पागे..!!४!!

देवता कहने लगे कि तुम दमयन्ती के पास चले जाओ ओर उसको कह देना कि चारों देवता तेरे को चाहते है, देवताओं की आज्ञा पाकर राजा नल दमयन्ती के महल में पहूंच जाता है…

{रागनी न०13 किस्सा नल-दमयन्ती}

रोका नही टोका नल पहूंचग्या भवन मै
बिजली कैसे चमकै लागै गोरे गोरे तन मै..!!टेक!!

राजा का रूप घणा अनमोल,
देख कै सखी सकी ना बोल,
गोरा मुख गोल, जैसे चन्दा चमकै घन मै..!!१!!

यक्ष गंर्धव कोए मायाधारी,
सोचन लगी यू कोये देवता बलकारी,
अप-अपने आसण पै सारी, उठ बैठी पल छन मै..!!२!!

देख कै राजा नल की श्यान,
कहण लगी तनै खूब घड़ी भगवान,
दमयन्ती की ज्यान, जलगी काम की अग्न मै..!!३!!
सिर दासी नै ठीक करा रै, तिलक मस्तक पै लाल धरा रै,
चोटी जाणूं जहर भरा रै, नागनी के फन मै..!!४!!

रूप की ठीक ज्योत सी बलती,
नहीं थी कोए से भी अंग मै गलती,
सखियां की ना जीभ उथलती, मुस्करावै मन-मन मै..!!५!!

पतली कमर लचकती चालै, मोटे मोटे नैन कंवल से हालै,
सखी बोलै ना चालै, सांस घालैं भरी जवानी पन मै..!!६!!

लख्मीचन्द कहैं पाने दोनूं ,
देवता तक नै माने दोनू,
रूप के निशाने दोनू, जाणू गोली चालै रन मै..!!७!!

नारद जी के कहने पर चारों देवता स्वंयबर के लिए चल पड़े, रास्ते मे नल भी मिल जाते है, नल की सुन्दरता सभी देवताओं का चेहरा मुरझा गया, हमारा एक काम है, वह आपको करना होगा, राजा नल हाथ जोड़कर देवताओं के सामने खड़े हो गए…

{रागनी न०12 किस्सा नल-दमयन्ती}

राजा नल नै रस्ते में देवता मिले
कौण सो तुम चारों हे जी महात्मा भले..!!टेक!!

खोल कै इन्द्र नै भेद बताए,
वरूण, यम, अन्नि पाए,
हम दमयन्ती नै ब्याहवण आए, न्यूं सोच कै चले..!!१!!

दूत बणा कै मुझको टेरा,
तुम चाहते सोई मतलब मेरै,
जो करैं सत में अन्धेरा, वै झूठे जा छले..!!२!!

वरूण इन्द्र यम अग्न कहं तुझ से,
कह दिए वे चारों प्रसन्न तुझ से,
उन चारो के मन तुझ से, हिलाए ना हिले..!!३!!

दूत की आज्ञा मुझ पै डारी,
काम करूं जो रूचि तुम्हारी,
थारे दर्शन तै मिटै तृष्णा म्हारी, सन्देह भी टले..!!४!!

सच्चे पुरूष हटै ना डरकै,
चला जा बीच राज मन्दिर कै
जो नाटेंगे प्रतिज्ञा करकै, वे सदा पाप में गले..!!५!!

नल देख सत नेम तोल कै,
बात का ल्याणा सै भेद खोल कै,
देवत्यां आगै झूठ बोल कै, नरक मै ढोये डले..!!६!!

लख्मीचन्द वचन कहै सच्चे,
सच्चे पुरूष काम करै अच्छे,
बैठे हंसा केसे बच्चे,बड़े नाज से पले..!!७!!

राजा नल जब दमयन्ती के महल में गया तो दमयन्ती हैरान सी रह गई कि इतने पहरेदार खड़े है फिर भी यह इतना पुरूष कहां से आ गया, नल को अपने पास बिठा लिया और क्या पूछने लगी…

{रागनी न०14 किस्सा नल-दमयन्ती}

सहम गई दमयन्ती बोली जाणू कोए सूत्या जाग
राजा तैं बतलावण लागी सब झगड़ा नै त्याग..!!टेक!!

वारूं ज्यान रूप गहरे पै,
मन मेरा चलै ज्यूं नाग लहरे पै,
मेरे रक्षक महल खड़े पहरे पै,
तूं आया कड़ै कै भाग..!!१!!

ये मेरी सौ दासी अणमोली, देख तरी सूरत भोली-भोली,
तेरी रूप तलै दबकै ना बोली,
गई कसूती लाग..!!२!!

हम होरी सै दूखी बहोत सी , तनै करकै गेरी मौत सी,
रूप तेरे की बलै जोत सी,
हम रंग रूत के बाग..!!३!!

कौण सै के मतबल सै तेरा,
लाग्या मेरे रंग महल मैं फेरा,
तेरी सुरत नै मन मोह लिया मेरा,
बलै काम की आग..!!४!!

लख्मीचन्द कहै बात राखणी,
चाहिए मिल कै साथ राखणी,
हे मालिक तेरै हाथ राखणी,
मेरे पिता की पाग. !!५!!

राजा नल से दमयन्ती पूछती है कि तुम कौन हो और यहां पर कैसे आये हो तब राजा नल क्या कहते है….

{रागनी न०15 किस्सा नल-दमयन्ती}

देवताओं ने तुझको चाहया, नल मेरा नाम दूत बण आया
उनका एक संदेशा ल्याया, उनमैं तै बरिये..!!टेक!!

मै उनकी आज्ञा में रहण आला,
तन पै पडै़ उसीए सहन आला,
झूठ कहण आला पाजी सै,
उल्टा दोजख का साझी सै,
जिसका तूं रूप देख राजी सै,
उस मै चित धरिये..!!१!!

उनका दूत समझ चाहे पायक,
वैं हम तुमनै दर्शन दायक,
तू लायक अकलमन्द स्याणी,
वरूण इन्द्र यम अग्नि की बाणी,
चाहे जुणसे की बण पटराणी,
उमंग मै भरिये..!!२!!

म्हारे मैं तैं बर लेगी उन्हैं कहा,
म्हारा तेरा कुछ पर्दा भी ना रहा,
उन्कीए दया जो तेरे दर्शन पाग्या,
रोका नही अचम्भा सा छाग्या,
न्यूं मत सोच कूण कड़े आग्या,
कती मतना डरिये..!!३!!

मनै उनका करणा था योहे काम,
देवता असली स्वर्ग का धाम,
लख्मीचन्द राम गुण गावै,
समय लिकड़ज्या हाथ नही आवै,
इब तेरे मन मै जैसी आवै,
वैसी- ए-करीये..!!४!!

अब दमयन्ती क्या कहती है:-

{रागनी न०16 किस्सा नल-दमयन्ती}

दमयन्ती नै श्रृध्दा करकै देवताओं को प्रणाम किया
हंस कै बोली राजा नल से तुम्ही हमारे बनो पिया..!!टेक!!

चार देवताओं के पुजन को पान फुल फल मेवा करूं,
मैं आधीन दास चरणा की तुम्हें आनंद का लेवा करूं,
ईश्वर की भगती शास्त्रों से पार धरम का खेवा करूं,
मुझे अंगीकार करो प्रभु मैं थारी क्या सेवा करूं,
तन मन धन सब ज्यान वार कै थारे चरनन बीच डार दिया..!!१!!

अब तो मुझको नल वर लो सही विश्वास करो मेरा,
हंस के मुख से बात सुणी मनै जब से ईश्क लगा तेरा,
मेरे पिता नै रचा स्वयंवर दुनिया मैं करकै बेरा,
इसलिए कुन्दरपुर मैं आकै सब न ला लिया डेरा,
तुझको पति बरण की खातिर सभी राजाओं को बुला लिया..!!२!!

हंस के कहे हूए वचनों से अलग जाओ नही टलकै,
कै तै जहर मंगा कै खालूं ना अग्नि बीच मरूं जलकै,
तुम पति बनो मैं चरणावृत पीऊं, धोऊं पैर तेरे मलकै,
ना तै कितै एकान्त मैं फांसी ले लूं, गल के बीच मरूं घलकै,
किसे न किसे तरह मारकै मैं अपणा खो लूं आप जिया..!!३!!

कड़वे बोल जिगर मै लागै जैसी पैनी कर्द पति,
तेरे बिरह मै रात दिनां रही पीली पड़गी जरद पति,
हंस की वाणी सुनी मनैं मेरा होगा सीना शर्द पति,
जो शरण पड़े की रक्षा करते, वे नर सच्चे मरद पति,
लख्मीचन्द वरण की खातिर निस दिन तड़फै मेरा हिया..!!४!!

राजा नल ने क्या कहा…

{रागनी न०17 किस्सा नल-दमयन्ती}

देवताओं नै त्याग कै प्यारी, मनुष्य का बरंणा काम का कोन्या..!!टेक!!

देवता सबतैं बड़े तेरी कस्म,
उनकी पड़ै बरतणी रश्म,
ये करैं मरे तलक देह भष्म,
इननै अग्न कहो चाहे आग रै नारी,
मनुष्य का बरंणा काम का क़ोन्या..!!१!!

देवता चीज बड़ी अनमूल,
इनकै आगै हम माटी धूल,
आनन्द भोग स्वर्ग में झूल,
इनके रहिए चरण तै लाग ना हो हारी,
मनुष्य का बरंणा काम का क़ोन्या..!!२!!

दुनियां इनका दिया फल पाती,
हो कै तूं मनुष्य स्त्री जाती,
देवता नै ना बरणा चाहती,
सै तेरे बिल्कुल माड़े भाग इनकी माया न्यारी,
मनुष्य का बरंणा काम का क़ोन्या..!!३!!

लख्मीचन्द इब मतना फिर तूं,
ध्यान इब देवताओं का धर तूं,
उनका भाव सच्चे मन तैं कर तूू,
वे रक्षा करैं धौवे दाग रै कवारी,
मनुष्य का बरंणा काम का क़ोन्या..!!४!!

स्वयंबर की तैयारीयां होने लगी तब क्या हूआ….

{रागनी न०18 किस्सा नल-दमयन्ती}

लग्न महूर्त शुभ दिन आया, सभी राजाओं को सभा मै बुलाया
भीमसैन नै ब्याह रचाया, ब्रहम पूजा करकै..!!टेक!!

सिंगर कै राजे न्यारे-न्यारे, सब गहणे आभूषण धारे,
सारे थे ब्याह शादी की चाहना मै, रत्न जड़ित कुण्डल कांना मैं,
लाल लाल होठ रचे पानां मैं, रस रंगत भरकै..!!१!!

जुड़ी कुन्दनपुर मै महफिल इसी, नागों की भोगवती पुरी जिसी,
ऋषि राजा देवता सारे, जैसे चान्द सूरज और चमकैं तारे,
एक से एक शकल मै प्यारे, बैठे चित धरकै..!!२!!

चली दमयन्ती माला लेकै हाथ, सब की नजर पड़ी एक साथ,
किसा गोरा गात नाक सूवा सा पैना,
चावल से दांत कंवल से नैना,
चन्दा सा मुख मीठे बैना, लेज्यां मन हरकै..!!३!!

गोत्र नाम सुणावै थे कदे, जो नर विधा बल तै बधे,
बख्त सधे सब ब्याह की रश्म के, लख्मीचन्द रंग रूप जिस्म के,
पांच पुरूष मिले एक किस्म के, झट हटगी डरकै..!!४!!

अब दमयन्ती देवताओं से क्या प्रार्थना करती है…

{रागनी न०19 किस्सा नल-दमयन्ती}
दमयन्ती झुकावण लागी देवतां नै शीश
रक्षा करो मेरे सच्चे जगदीश..!!टेक!!

धर्म की थारै हाथ लड़ी सै, या मूर्त नल कै लायक घड़ी सै,
न्यू तै घणखरी दुनिया पड़ी सै, जली रीसम रीस..!!१!!

पतिभरता पति के चरणां के मां लिटती, साची कहण आली ना पिटती,
हे नल तेरे बिना ना मिटती, मेरी आत्मा की चीस..!!२!!

पापी ना बदी करण तै डरैं सै, दिल मै ना सबर की घूंट भरै सै,
न्यूं तै घणखरे राजा फिरैं सै, जले जाड़ पीस-पीस..!!३!!

देवता मुक्त करो सब भय से, नल को मैं बरणा चाहती ऐसे,
जैसे वेद मै वर्णन सोलह और बतीस..!!४!!

लख्मीचन्द कह छन्द धरूंगी, बदी करण तैं सदा डरूंगी,
मै नल को ही पति बरूंगी, पक्के विश्वेबीस..!!५!!

जब दमयन्ती हाथ में माला लेकर स्वंयवर में आई तो चारो देवताओं ने नल के पास ही बैठे थे अपना रूप राजा नल जैसा बना लिया, पांच पुरूष एक ही रूप के देखकर दमयन्ती घबरा गई थी, उसने देवताओं को ही प्रार्थना की और क्या कहां……

{रागनी न०20 किस्सा नल-दमयन्ती}

दमयन्ती नै धरा प्रेम से देवताओं का ध्यान
नमस्कार करूं करा दियो प्रभु राजा नल का ज्ञान..!!टेक!!

चार देवता एक राजा नल पांच रही गिन मै,
पांचों का रंग रूप एकसा नल कौन सा इन मै,
मनुष्यों से न्यारे देवताओं मै सुना करूं कई चिन्ह मै,
फिर भी नल को जाण सकी ना किसा अन्धेरा दिन मै,
मनुष्य तै न्यारे देवताओं मै होते कई निशान..!!१!!

कांपती डरती विनती करती बोली हे जगदीश,
करा संकल्प हंस की सुण कै नल का विश्वे बीस,
राजा नल बिन किसे नै बरूं ना तुम्हें निवाऊ शीश,
मुझ दासी पै दया करो तुम हे देवताआं के ईश,
राजा नल को जाण सकूं मने इसा दियो वरदान..!!२!!

सत संकल्प ब्रत धर्म पुन मनै नल के लिए करे,
सब कर्तव्य मिलज्यांगे धूल मै जै नल पति नही बरे,
मेरे मन का भाव प्रेम से समझो हे देवता लोग हरे,
अपना वैसा ही रूप बनाओं तुम जैसे आप खरे,
ना तैं नल के फिकर मैं थारी शर्ण मैं खोदूं अपनी ज्यान..!!३!!

दमयन्ती की विनती सुनकै और नल की साची बात,
दमयन्ती पै दया करी प्रभु बदल गये एक साथ,
पलक झपैं ना छाया कती ना मिट्टी लगै ना गात,
लख्मीचन्द लख मनुष्यों से न्यारी देवताओं की जात,
जिनकी सुन्दर माला जमी से ऊंचा सवा हाथ अस्थान..!!४!!

देवता बड़े दयालू होते है, दमयन्ती की विनती सुनकर उस पर दया आ गई और सभी देवताओं ने अपना-२ असली रूप धारण कर लिया , दमयन्ती के दिल में खुशी की सीमा नही रही, उसने माला हाथ में ले रखी थी, सामने राजा नल के दर्शन हूए तो उनके गले में बर माला डालकर चरणों में गिर गई…

{रागनी न० 21किस्सा नल-दमयन्ती}

लज्जा सहित पकड़कै वस्त्र डाल दई फुल माला
समझ कै राजा नल के हाजिर कर दिया जोबन बाला..!!टेक!!

जैसे जल के भरे बादल में बिजली चमक-२ कै घोरै,
बायां हाथ पकड़ कै होगी खड़ी पति के धोरै,
चन्दा सा मुख गोल बोलकै मीठी चित नै चोरै,
वा सती पति नै सत समझकै बन्धी घर्म कै डोरै,
देवता ऋषि कहै भला-२ और भूप कहै करा चाला..!!१!!

देवता ऋषि और राजा मिलकै जुड़ मेला सा भर लिया,
धन्य दमयन्ती धर्म समझकै ध्यान पति मै धर लिया,
देवताओं के रहते-२ फिर भी मुझको वर लिया,
जिन्दगी भर तेरा पालन करूगां मनै भी सकल्प कर लिया,
या भी दया इन देवतां की ना तैं और के धरा था मशाला..!!२!!

हंस के कहे हुए वचनों से हरगिज नही टलूगीं,
जै पतिभर्ता का धर्म छोड़दूं तैं फूलूं नही फलूगीं,
मेरे मन का जो सत संकल्प हरगिज नहीं हिलूगीं,
काट दियो संसार के बन्धन मोक्ष में साथ चलूगीं,
नेम धर्म और कर्म काण्ड से दियो तोड़ भर्म का ताला..!!३!!

यम वरूण और अग्नि इन्द्र सुन्दर सरूप बर्ण मैं,
तुम दुनियां के रक्षक हो प्रभु जनमत और मरण मैं,
मेरे मन का जो सत संकल्प छोडूं नही परण मैं,
नल दमयन्ती दोनों मिलकै उनकी गए शरण मै,
लख्मीचन्द पै दया करो प्रभु कर ह्रदय उजियाला..!!४!!

जब दमयन्ती ने राजा नल के गले में माला पहनाई ते सारे कुन्दनपुर शहर में धूम मच गई खुशी के बाजे बजने लगे नर नारी सभी मंगलगान करते है, औरतों ने गीत गाया और दमयन्ती क्या कहती है…

{रागनी न०22 किस्सा नल-दमयन्ती}

तुम गाओ मंगलाचार, अजब बहार, हे सखियो
राजा नल आये म्हारै पाहवने जी..!!टेक!!

आओं ल्याऊं कुर्सी मेज मै, अपने पिया जी के हेज मै,
तन मन धन दूं वार, करूं ज्यान न्यौछावर, हे सखियों,
राजा नल आये म्हारै पाहवने जी..!!१!!

किसा रूप पति भगवान पै, अपणे पिया जी की श्यान पै,
पुण्य करदूं गऊ हजार, इसा सै विचार, हे सखियो,
राजा नल आये म्हारै पाहवने जी..!!२!!

कई हे सखी मेरे साथ सै, बहना ये सच्चे दीना नाथ सैं,
इनके लियो चरण चुचकार, कर सतकार हे सखियो,
राजा नल आये म्हारै पाहवने जी..!!३!!

लख्मीचन्द धर्म दाब खेवता, पिया नै प्रसन्न कर लिये देवता,
मेरी उन तै सौ लखवार, नेग जुहार हे सखियो,
राजा नल आये म्हारै पाहवने जी..!!४!!

राजा नल और दमयन्ती की बड़ी धूमधाम से शादी हूई. यम ,वरूण, अग्नि तथा इन्द्र सभी देवताओं ने खुश होकर राजा नल को 8 वरदान दिये और चारों देवता स्वर्ग की और चले पड़े. तब देवताओं ने कलयुग को क्या समझाया । देवताओं ने कलयुग को कहां जो वापसी में रास्ते मिला था….

{रागनी न० 23 किस्सा नल-दमयन्ती}

रूपवान गुणवान तेजस्वी नल बलवान जती सै
भीम की बेटी दमयन्ती राजा नल के लायक सती सै..!!टेक!!

वेद शास्त्र उपनिषेदों का सच्चा ज्ञान पढै सै,
सब शास्त्रों का निर्णय करना न्यू गुणवान पढै सै,
अतिथि पूजा साधू सेवा करकै यज्ञ दान पढ़े सै,
युध्द करता महारथी तेजस्वी न्यू बलवान पढै सै,
वेद तृप्त हो धर्म यज्ञ से ज्ञान की परमगति सै..!!१!!

अहिंसक दृढ़वती राजा धर्म से नहीं टरैगा,
तप भजन यज्ञ हवन वृत से हरगिज नही फिरैगा,
धर्म मै विघन डालने वाला कर्म का दंड भरैगा,
जो इसे पुरूषं तै बैर करैगा वो अपने आप मरैगा,
इसे पुरूष तै बैर करैगा उसकी ए मूढमती सै..!!२!!

राजा भीम सैन नै समय जाण कै विवाह करा सै,
नल दमयन्ती को ठीक समझ आन्नद से हरा भरा सै,
आदि अन्त वेदान्त शास्त्र नल में लिखा धरा सैं,
हंस उपदेशक म्हारे कहने से नल को पति वरा सै,
म्हारे रूब रूब दमयन्ती नै नल को वरा पती सै..!!३!!

कलयुग बोल्या द्वापर सेती तू मेरी करो ना सहाई,
इसे नै कष्ट देण की सौचे पड़ेगा नरक मै भाई,
कहै लख्मीचन्द चले देवता लई स्वर्ग की राही,
मै पासे बण कै राज जितादूं हो दुखी भीम की जाई,
राज-काज से भ्रष्ट करूगां या मेरी सलाह कती सै..!!४!!

पुष्कर ने चाव से नल को जुए की चुनौती दी और बाजी शुरू हो गई….

{रागनी न०24 किस्सा नल-दमयन्ती}

इतनी सुनकै राजा नल नै चौपड़ सार बिछाई
दे जिसनै परमेश्वर हो उसकीए सफल कमाई..!!टेक!!

राजा नल नै जाण नही थी कलयुग आले छल की,
के बेरा था सिर होज्यागा फांसी बणकै गल की,
पीला चेहरा दमकण लाग्या आश रही ना पल की,
सारे शहर मै सोर माचग्या हार हूई राजा नल की,
नौकर चाकर सतपुरूषों से देते फिरैं दुहाई..!!१!!

कलयुग मिलकर पुष्कर के संग घी शक्कर सा होग्या,
बुध्दि भ्रष्ट हूई राजा नल की सिर मै चक्कर सा होग्या,
राणी बांदी बालक बच्चे सबनै फिकर सा होग्या,
राजा नल की हार होण का शहर मै जिकर सा होग्या,
दमयन्ती की एक सुणी ना राणी, कई बर बरजण आई..!!२!!

साहूकार सरकार के नौकर बान्ध परण आये सै,
चलो कहेंगे राजा नल तैं हम तेरी शरण आये सै,
हलकारे तूं जा कै कहदे जी तै मरण आये सै,
राज के हित की खातिर जूवा बन्द करण आये सै,
पन्द्रह दिन हो लिये खेलते बहूत सी माया जिताई..!!३!!

दमयन्ती भी सोच करै कदे राज भी जित्ज्या सारा,
काणे तीन पडै़ राजा नल के पुष्कर के पोह बारहा,
राणी बांदी फिरै तड़फती हंसा कैसा लंगारा,
एक औड़ नै खड़ा रोवै था राजा का हलकारा,
लख्मीचन्द नै प्रेम मै भरकै नल की कथा सुणाई..!!४!!

जब दमयन्ती को जूवे के खेल के बारे में पता चला तो वह एक दम नल के पास गई और क्या कहने लगी….

{रागनी न०25 किस्सा नल-दमयन्ती}

मेरे साजन नै खेलण का चा सै, दूणी लगी जूए की डा सै
पुष्कर कै धन चाल्या जा सै, या के मर्जी भगवान की..!!टेक!!

आच्छी लगी जूवे मै प्रीत, हौंण लगी पुष्कर की जीत,
पति की नीत जूवे मैं बढ़ती, समय पुष्कर की आवै चढती,
दुख की सेल बदन मै गढती, खैर रहै ना ज्यान की..!!१!!

पति मानै ना जै बात कहूं तै, दुख तन पै साथ सहूं तै,
चुपकी रहूं तै सबर नही सै, जूवे तै दुख जबर नही सै,
मेरे पति नै खबर नही सै, अपणी और जहान की..!!२!!

जाणै के लिखी भाग मुए मै, सब धन पड़न लगा कुए मै,
जूवे मै तै घर जर लुटज्याग, दुनियां मै तै साझां उठज्या,
जुवे की तृष्णा मै छूटज्या, मेर तेर सन्तान की..!!३!!

लख्मीचन्द कर ख्याल भजन का, जब किते खेद मिटै तेरे तन का,
पुष्कर धन का सांझी हो सै, उसके हक मै बाजी हो सै,
हंसै खेलै घणा राजी हो सै, पति ना सोचै ज्ञान की..!!४!!

दमयन्ती ने देखा कि तेरे पति की जूए मे हार हो रही है तो उसे बड़ा भारी दुख हुआ। वह राजा नल से हाथ जोड़कर एक अर्ज करती है कि पति देव खेल बन्द करदो यह तुम्हारे और हमारे लिए बहूत बुरा हो रहा है। रानी दमयन्ती क्या कहने लगी……

{रागनी न०26 किस्सा नल-दमयन्ती}

जरा खेल बंद करके सुणों, तुम्हें रोकती, ना सजन में..!!टेक!!

वौ भी समय मेरै याद है पिया उठकै आसन से चले,
तुम पैर धोने भूलगे न्यूं भंग पड़ गया है भजन मै..!!१!!

आदर सहित बिठा लिये सब नगरीवासी आ गए,
फेर खेलिये मै भी साथ हूं पिया प्राण तक के तजन मै..!!२!!

अगर मान लो अ पति फायदा रहैगा जी आपको,
मै जाण गई तुम हो गए खुशी हारी का डंका बजण मै..!!३!!

मानसिंह अपने गुरू की कर सेवा लख्मीचन्द तूं,
जै मै अपने आप को धिक्कार दूं, तै माता की दुधी लजन मै..!!४!!

दमयन्ती बार-बार जूआ बंद करने को कहती है परन्तु राजा नल राणी की एक नही सुनते! राणी क्या कहती है….

{रागनी न०27 किस्सा नल-दमयन्ती}

आदर करकै पास बिठाले सब पुरबासी आगे
भोजन तक की सोधी कोन्या ऐसे खेलण लागे..!!टेक!!

पति बिन किस तैं करूं जिकर मै, ऐसा चढ़ग्या सांस शिखर मैं,
जिसनै काल सुणी थी वैं तेरे फिकर मै, सारे रात्यूं जागे..!!१!!

ऐसे जमे जूए के रण्न पै, सजन तेरी प्रीति घणी थी जिनपै,
उन पुरूषां के मन पै, साजन फिरै संकल्प भागे..!!२!!

आकै सब पुरबासी टेरै, सजन तेरे मित्र यार घनेरे,
इन्द्र सैन इन्द्रावती तेरे, आज रो कै टूकड़ा खागे..!!३!!

लख्मीचन्द कहै बूरे भले गए, काल के चक्कर बीच दले गए,
बिन बोले वे न्यूंएं चले गए, तेरे जूए की कीर्ती गागे..!!४!!

जब दमयन्ती की बात राजा नल| नही सुनते तो राणी बांदी से करती और कहती है…

{रागनी न० 28 किस्सा नल-दमयन्ती}

धन हारण की सुण कै जी जा लिया सौ सौ कोस
पुष्कर कै चसै घी के दीपक नहीं पती नै होश..!!टेक!!

साजन आंख तलक ना खोलता, फिकर न्यूं मेरा जिगर छोलता,
मेरे संग भी नही बोलता, मनै लिया कालजा मोश..!!१!!

आप उन्मत बण जाण बैठया, छोड के कुटम्ब की काण बैठया,
मेरे पति के मन पै आण बैठया, धन हारण का रोष..!!२!!

के जाणै यो राज भी जितज्या सारा, मनै पिया की शरण में करना गुजारा,
पति लगै मनै ज्यान तै प्यारा, दियो मनै सन्तोष..!!३!!

लख्मीचन्द मत काम करो छल का, होणी करै माजना हलकां,
किसे देव की माया , महात्मा नल का नही रती भर दोष..!!४!!

राजा नल दमयन्ती को अपने माता पिता के पास भेजना चाहते हैं दमयन्ती के इन्कार करने पर राजा नल कहने लगै कि तुम नही जाना चाहती तो इन बच्चों जरूर भेज दो । हमारे साथ रहना इनके बस की बात नही है। अब दोनो बच्चे इन्द्रसैन और इन्द्रवती जब अपने मामा नाना के घर जाते है तो क्या कहते है….

{रागनी न०29 किस्सा नल-दमयन्ती}

चले बाहण और भाई दोनूं साथ, सम्भल कै मां तावली मिलिए..!!टेक!!

तेरे बिन कूण मन की टोहवणियां सै,
उमर म्हारी खा-पी कै सोवणियां सै,
जुआ खोवणियां सै जात, सम्भल कै मां तावली मिलिए..!!१!!

हम थारी इज्जत शिखर करैगे,और किसेतै ना जिकर करैंगे,
हम फिकर करैगे दिन रात, सम्भल कै मां तावली मिलिए..!!२!!

हम तेरे दोनों बालक बच्चे, म्हारे बचन तूं मान ले सच्चे,
तेरे कचिया केले केसे पात, सम्भल कै, मां तावली मिलिए..!!३!!

लख्मीचन्द धर्म ना छोडै, नाता कदे अलग ना तोडै,
हम जोडै दोनों हाथ, सम्भल कै , मां तावली मिलिए..!!४!!

अब दोनो बच्चे अपने मामा नाना के घर जाने के लिऐ तैयार हो जाते है और इन्दसैन की मां क्या कहती है…

{रागनी न० 30 किस्सा नल-दमयन्ती}

सुण इन्द्र सैन बेटा मेरे, राजा ज्वारी हो गया..!!टेक!!

जा बेटा ननशाल में मामा अपणै तै कह दिये,
अश्वमेघ यज्ञ करने वाला आज खिलारी हो गया..!!१!!

दो फर्ज तुम्हारे रहे बेटा हमारे शीश पै,
कदे गोदी ले मुख चुमती, आज बिन महतारी हो गया..!!२!!

पुष्कर हमार क्या करै जै तेरा पिता राज तै नाटज्या,
आज शेरों के मुख मोड़कर, गिदड़ शिकारी हो गया..!!३!!

लख्मीचन्द कहै सारथी रथ नै हांक दे,
इतना मुख से कहकर फिर आंखों से नीर जारी हो गया..!!४!!

अब राजा पुष्कर की बात सुनकर अपने वस्त्र उतारकर वन की तैयारी करता और दमयन्ती भी उनके साथ ही तैयार हो लेती है और क्या कहती है…..

{रागनी न०31 किस्सा नल-दमयन्ती}

हिया पाट कै आवण लाग्या नाड तले ने गोली
पुष्कर की बातां नै सुण कै राणी भी ना बोली..!!टेक!!

राज पाट और फौज रिसाले माल खजाने सारे,
सब कुछ जीत लिया पुष्कर नै नल जूए मै हारे,
ताज और कुण्डल मोहन माला सब आभूषण तारे,
दुखी मन-मन मै ना बोले नल गैरत के मारे,
मनै पहलम भेज दई पीहर मै दो मूरत अनमोली..!!१!!

कई-कई कलसे भरे रहैं थे गर्म सर्द पाणी के,
सौ-सौ दासी सिंगार करैं थी दमयन्ती राणी के,
आज छाती कै मै सैल गडे पुष्कर की बाणी कै,
एक साड़ी मैं गात लहको लिया वक्त सधे हाणी के,
सब कुछ तज कै एक वस्त्र मै साबत श्यान लहकोली..!!२!!

समझ गई किसे देव की माया मेरे पति का खोट नही सै,
जब भाई तैं भाई बैर करै तै कोय बड छोट नही सै,
इस तै बत्ती सिर पै धरण नै पाप की पोट नही सै,
पतिभरता नै पति तै बढ कै और कोए ओट नही सै,
पतिभरता का धर्म समझकै पति की गेल्या होली..!!३!!

बचनां कै मै बन्धी हसंणी खड़ी हंस कै धोरै,
गोरे मुख पै आंसु पड़ती जरदी चित नै चोरै,
राजा तै कंगाल बणादे राखदे कालर कोरै,
कहै लख्मीचन्द नल दमयन्ती खडे गाम के गोरै,
पति की सेवा करण लागगी जब सारी प्रजा सोली..!!४!!

दोनो शहर से बाहर निकल जाते है और शहर के गोरै भूखै प्यासे खड़े-खड़े तीन दिन बीत जाते है तो क्या होता है…

{रागनी न०33 किस्सा नल-दमयन्ती}

भुखे मरतां नै हो लिये दिन तीन, फेर उठ चले थे बनोबास मै..!!टेक!!

तीन दिन रहे शहर कै गोरै, तृष्णा पापण चित नै चोरै,
धोरै बैठणियां मानस कोये करता नही यकीन,
न्यूं फर्क पड़ा था विश्वास मै..!!१!!

नल जंगल मै जाण लागे, ह्रदय पै विपदा के बाण लागे,
भुखे मरते खाणा लागे फल पता नै बीन,
क्यू के टूकड़ा पाणी तै नहीं था पास मै..!!२!!

राजा नल चल बणखण्ड में आगे, ऊडै दो पक्षी फिरते पागे,
पक्षी उस वस्त्र ने ले भागे, राजा नल हो गए बलहीन,
प्राण दुखी हूए ल्हाश मै,

लख्मीचन्द बात कहै न्याय की, जणै कद मिलैगी दवाई घा की,
इब तै प्राण रहै सै बाकी,बिल्कुल हो लिए बेदीन,
फेर कलयुग बोल्या था आकाश मै..!!४!!

राजा नल पिछली बात याद करके क्या कहता है…

{रागनी न०32 किस्सा नल-दमयन्ती}

कदे प्रजा झुकै थी मैरे सामनै, आज दुख की सुणनियां कोए नही..!!टेक!!

लाखों स्त्री आन कर करती वो मुझसे प्यार थी,
आज मुझ जैसे कंगाल को जननी जणनियां कोए नही..!!१!!

एक तो थी वो समय वरदान दें थेे देवता,
पर आज मेरे इस दुख दर्द मै सिर तक धुणनियां कोए नही..!!२!!

तिलभर भी घटती नही जो विघना नै लिख दई कलम से,
चाहे बांच भी ले तकदीर को पर पढकै गुणऩियां कोए नही..!!३!!

मानसिहं अपने गुरू की लख्मीचन्द ले ले शरण,
जो बिगड़गी प्रारब्ध से उधड़ी बुणनियां कोए नही..!!४!!

दोनो शहर से बाहर निकल जाते है और शहर के गोरै भूखै प्यासे खड़े-खड़े तीन दिन बीत जाते है तो क्या होता है…

{रागनी न०33 किस्सा नल-दमयन्ती}

भुखे मरतां नै हो लिये दिन तीन, फेर उठ चले थे बनोबास मै..!!टेक!!

तीन दिन रहे शहर कै गोरै, तृष्णा पापण चित नै चोरै,
धोरै बैठणियां मानस कोये करता नही यकीन,
न्यूं फर्क पड़ा था विश्वास मै..!!१!!

नल जंगल मै जाण लागे, ह्रदय पै विपदा के बाण लागे,
भुखे मरते खाणा लागे फल पता नै बीन,
क्यू के टूकड़ा पाणी तै नहीं था पास मै..!!२!!

राजा नल चल बणखण्ड में आगे, ऊडै दो पक्षी फिरते पागे,
पक्षी उस वस्त्र ने ले भागे, राजा नल हो गए बलहीन,
प्राण दुखी हूए ल्हाश मै,

लख्मीचन्द बात कहै न्याय की, जणै कद मिलैगी दवाई घा की,
इब तै प्राण रहै सै बाकी,बिल्कुल हो लिए बेदीन,
फेर कलयुग बोल्या था आकाश मै..!!४!!

अब कलयुग ने आकाश में चढकर आवाज दी और कहां यह सब कुछ मेरा किया हुआ है और भी कुछ करूगां, अब क्या कहता है…

{रागनी न०34 किस्सा नल-दमयन्ती}

गगन मै चढकै कलयुग बोल्या एक वचन सुण मेरा
पाशे बणकै राज जिता दिया नल जूए मै तेरा..!!टेक!!

देवताओं तै भी आगै बढग्या दमयन्ती नै बरकै,
मेरी सलाह थी नाश करण की तेरा गुस्से मै भरकै,
धन माया सब जिता दई जुए के दा पै धरकै,
मेरी सलाह थी काढन की तनै नग्न उघाड़ा करकै,
इब नही हटूं किसे तैं डरकै न्युं कलू गगन मै टेरा..!!१!!

रूई केसे पहल मिलै ना जंगल मै लेटण नै,
एक वस्त्र भी ना छोडा़ तेरे तन मै लपेटण नै,
जो लिख दिया मनै कलम तै कोण त्यार मेटण नै,
इतना दुख देदूंगा आगै तरसोगे फेटण नै,
इब तै आगै दीखै तुमनै दिन मै घोर अन्धेरा..!!२!!

बिना देवतयां दमयन्ती नै कौण था ब्यावण आळा,
तू जोड़ी का वर भी ना था तेरे घाल दई फुल माळा,
छोटे बड़े का ख्याल करा ना कर दिया मोटा चाळा,
तेरी गैल में बुरा करूगां मूल करूं ना टाळा,
तनै लुकहमा ब्याह करवा लिया मनै पाटया कोन्या बेरा..!!३!!

कौण शख्स कर सकै गुजारा जो कलू तै अड़ण की ठाणै,
साधू सन्त बिन इस दुनियां मै मेरी गति नै कौण पिछाणै,
मनै पक्षी बणकै वस्त्र हड़ लिया न्युं भी मतना जाणैं,
कहैं लख्मीचन्द बुरा करकै मत धरिये दोष बिराणैं,
तेरे पड़न की खातिर खोदा मनै आप तै झेरा..!!४!!

अब राजा नल बिल्कुल नंगा रह गया और उसने राणी से क्या कहां….

{रागनी न०35 किस्सा नल-दमयन्ती}

भूख प्यास नै चौगरदे तैं करा घेर कै तंग मै
तूं सब जाणै सै जो कुछ बीती तेरे पति के संग मै..!!टेक!!

अपणे तन का तार कै वस्त्र न्यूं घाली थी घेरी,
ओडण के वस्त्र ने लेगे, देगे हेरा फेरी,
पक्षी तीतर चढ़े गगन मे अकल मारगे मेरी,
इसा जुल्म मनै कदे ना देखा जिसी आज हूई डूबा ढेरी,
पेट भरण नै पक्षी पकडूं था पड़ग्या विघ्ऩ उमंग मै..!!१!!

गगन मैं चढकै कलयुग बोला के विश्वास करा सै,
तेरे राजपाठ और धन माया का सब कलू नै नाश करा सै,
इसमैं तेरा दोष नही मनै करा जो मनै खास करा सै,
तेरे केसां नै दण्ड देण नै मनै पुष्कर पास करा सै,
पाशे बणकै राजा जिता दिया तेरा जूए के जंग मै..!!२!!

राज पाट के नाश करण की क्युकर के ठहरी सै,
जाण नही थी कलयुग मेरा कद का के बेरी सै,
सोच फिकर टाटे मै काया चन्दा सी गहरी सै,
बस प्राण सैं बाकी मेरे मरण मै कसर नही रहरी सै,
तूं खड़ी जड़ मै भरे जंगल मै रहा उघाड़ा नंग मै..!!३!!

लख्मीचन्द कहै सुणिये राणी कित के तेरी निगाह सै,
यो विन्धयाचल पर्वत नदी पोषणी सारी दुनियां न्हा सै,
आड़ै तै थोड़ी सी दूर चाल कै कौसल देश का राह सै,
राणी एक रास्ता चन्देरी नै एक कुन्दनपुर नै जा सै,
इतनी कहै कै पसर गया नल मुर्दा आले ढंग मै..!!४!!

दमयन्ती ने आधी साड़ी खोलकर राजा की तरफ कर दी! अब एक साड़ी से दोनों ने अपना बदन ढक लिया । दोनों लेट जाते है तब राजा नल कहने लगै कि दमयन्ती तू भी क्यों मेरे साथ दुख पा रही है! अब भी अपने पिता के घर चली जा। तब दमयन्ती ने क्या कहां….

{रागनी न०36 किस्सा नल-दमयन्ती}

सोच लई के पिया जी मेरे त्यागणे की मन मै
मत घबराओ पिया कंगले पण मै..!!टेक!!

राणी :-
एक तो भूख प्यास मैं थका और हारा, बता मैं तनै क्युकर छोडू़ं न्यारा,
मनै ज्यान तै भी प्यारा तनै कड़ै छोडूं बन मैं..!!१!!

राजा:-
राणी मैं किस्मत का माड़ा सूं, लेरा देश लिकाड़ा सू,
करूं के उघाड़ा सूं , कंगाल निर्धन मै..!!२!!

राणी :-
भले के करैं भलाई हो सै, बुरे के करैं बुराई हो सै,
स्त्री दवाई हो सै, मर्द की बेदन मै..!!३!!

राजा:-
राजा नल दुख दर्दा नै खेगे, करूं के दो पक्षी धोखा देगे,
ओढण के वस्त्र नै भी लेगे, और चढगे गगन मै..!!४!!

राणी :-
लेगे तै आधा वस्त्र बांट कै ओढूं, मै तेरी ज्यान तलै तन पौढूं,
तनै एकले नै क्युकर छोडूं , बियाबान निर्जन मै..!!५!!

राजा:-
राणी मनै तेरे तैं आवैं भतेरी लाज, करूं के होणा था जो होलिया आज,
मै तनै त्यागूं ना हरगाज, इतनै प्राण मेरे तन मै..!!६!!

राणी :-
इतना मत दुखड़ा पावो, सजन इस कारण मत घबराओ,
कई-कई रस्ते बताओ पिया एक-एक छन मै..!!७!!

राजा:-
राणी तूं मेरी भतेरी मेर करै, करूं के कलू अन्धेर करै,
लख्मीचन्द मत देर करै, हरि के भजन मै..!!८!!

राणी:-
बात नै जाणो सो पिया आप, लख्मीचन्द सोच लो चुप चाप,
कदे रहैं थे गरगाप, राज पाट धन मै..!!९!!

आगे राणी ने क्या कहां …

{रागनी न०37 किस्सा नल-दमयन्ती}

एकले नै कड़ै छोडूं ज्यान तै भी प्यारै नै
या हे मनसा थारी सै तै चलो घर महारै नै..!!टेक!!

तू महारे घर जाना ना चाहता,
तेरा उड़े सास जमाई का नाता,
आनन्द रहैगी मेरी माता, रूप देख थारै नै..!!१!!

मै तेरी सच्ची नार सती,
तेरी सेवा बिन मेरी बुरी हो गति,
वे डूबैंगी जो त्यागैगी पति, भुखे थके हारे नै..!!२!!

तेरी वैं पल-पल देखें बाट,
म्हारे घर नै चल पिया दिल नै डाट,
घर धन राज पाट, सौंप देंगे सारे नै..!!३!!

अस्नाई बिना कै सरा करै सै,
ख्याल पिता बच्चों का करा करै तै,
जैसी टोहती फिरा करै, गऊ भूल लवारे नै..!!४!! (लवारे : बछड़ा)

लख्मीचन्द कलू कहर सा तोलै,
सजन क्यों मन्दा मन्दा बोलै,
म्हारी मजधार कै मे नाव डोलै, कद पकड़ेगी किनार नै..!!५!!

अब राजा नल राणी को क्या कहता …

{रागनी न०38 किस्सा नल-दमयन्ती}

शर्म आवैगी घणा़ी कैसे चलूं सुसराड़ मै..!!टेक!!

कदे देवताओं के सामने पूजा करी थी तेरे बाप नै,
बड़े प्रेम से शादी हूई बल नही पड़ै था मेरी नाड़ मै..!!१!!

औरत कहैगीं थारै नगर की यू निरभाग जूए बाज सै,
म्हारे राम करकै जाईयो इसी असनाई भाड़ मै..!!२!!

जो हूकम तेरे बाप का वो मेरा ही तो राज है,
मनै जै देख लें इस भेष में तै जल कै मरैं बोदी बाड़ मै..!!३!!

मानसिंह अपने गूरू की लख्मीचन्द लेले शरण,
फिर शिवजी सहाई आ करै इस बियाबान उजाड़ मै..!!४!!

राजा राणी बियाबान के रस्ते के बात करते है…

{रागनी न०39 किस्सा नल-दमयन्ती}

राजा राणी करते जाते दरद भरी बात
एक साड़ी में ढक लिया दोनूवां नै गात..!!टेक!!

इब तै मालिक देगा तै पहरेगें, ना तै न्यूए दुख सुख नै सह रहेगें,
राणी चाल कितै ठहरेंगे इबतै होती आवै रात..!!१!!

राणी तू मनै अपणे जी तैं भी प्यारी, करूं के माया लुटगी सारी,
मै जाणू सूं जिसनै मारी मेरी थाली कै मै लात..!!२!!

तेरे पै भी झाल गई ना डाटी, मै तनै जान तक भी नाटी,
तनै पाछै मालूम पाटी, जुवा खौवणिया सै जात..!!३!!

लख्मीचन्द छन्द न गाकै, राणी न्यूं बोली समझाकै,
चाल कितै करेंगे गुजारा खाकै, फल और पात..!!४!!

अब राजा क्या कहता है…

{रागनी न०40 किस्सा नल-दमयन्ती}

राजा नल की ऐश अमीरी लूटी दिखाई दे
चाल उड़ै ठहरैंगे राणी कुटी दिखाई दे..!!टेक!!

सिर पै कलयुग चढग्या घन घोर, दिखैं दसूं दिशा कठोर,
वा एैश आन्नद की डोर, हाथ तै छूटी दिखाई दे..!!१!!

बिस्तर तजकै रूई केसा पहल, संग मै करण पति की टहल,
वचना मै बन्ध कै गैल हंसणी सी जुटी दिखाई दे..!! २!!

कित फंसगे कर्म गन्दे मै, लागगी आग भले धन्धे मै,
इस कलयुग आळे फन्दे मै, घिटी घुटी दिखाई दे..!!३!!

लख्मीचन्द रट दीनानाथ, गुरू की लिख धरी ह्रदय बात,
वा भृगु आळी लात, गात मै उटी दिखाई दे..!! ४!!

बात करते-२थकी मान्दी होने से राणी की आंख लगी गई । राजा जागता रहा । कलयुग के प्रकोप से राजा नल ने आखरी फैंसला यही किया कि दमयन्ती को यहीं पर छोड दिया जाए और कहा….

{रागनी न०41 किस्सा नल-दमयन्ती}

बुध्दि मै अन्धेर पड़ा था, नल सोवै जाणूं शेर पड़ा था
फूलां कैसा ढेर पड़ा था, दमयन्ती राणी..!!टेक!!

सोचकै पति परमेश्वर धणी, सेवा मै दास पति की बणी,
कुछ राजा तै राणी घणी जागगी, दिल की चिंता दूर भागगी,
फेर राणी की आंख लागगी, हूई कर्मा की हाणी..!!१!!

कलू चाहवै था पाड़ना, फेर बुद्धि नै दई ताड़ना,
कलू बिगाड़ना चाहवै जिसने, फेर जीवण की आश किसनै,
सोचण लाग्या छोड़दूं इसनै न्यूं मन मै ठाणी..!!२!!

ठीक ना संग औरत की जात, उठकै चाली जागी प्रभात,
कलू नै की बात मग्ज मै भरदी, राणी नींद मै गाफिल करदी,
इसी करदी जाणूं मारकै धर दी, कती बन्द थी बाणी..!!३!!

लख्मीचन्द राणी गरीब गऊ, फिकर मै जलै मेरा लहूं,
पतिभरता बहू और बेटी धी नै, जो परमेश्वर समझगी पी नै,
खटका नही फेर इसी के जी नै, ना हो कोड़ी काणी..!!४!!

अब राजा नल क्या कहता है…

{रागनी न०42 किस्सा नल-दमयन्ती}

छोड चलो हर भली करैंगे कती ना डरणा चाहिए
एक साड़ी मै गात उघाड़ा इब के करणा चाहिए..!!टेक!!

गात उघाड़ा कंगले पण मै न्यूं कित जाया जागा,
नग्न शरीर मनुष्य की साहमी नही लखाया जागा,
या रंग महलां के रहणे आळी ना दुख ठाया जागा,
इसके रहते मेरे तै ना खाया कमाया जागा,
किसे नै आच्छी भुंडी तक दी जी तैं भी मरणा चाहिए..!!१!!

फूक दई कलयुग नै बुद्धि आत्मा काली होगी,
कदे राज करूं था आज पुष्कर के हाथं मै ताली होगी,
सोलह वर्ष तक मां बापां नै आप सम्भाली होगी,
इब तै पतिभर्ता आपणे धर्म की आप रूखाली होगी,
खता मेरी पर राणी नै भी क्यों दुख भरणा चाहिए..!!२!!

एक मन तै कहै छोड़ बहू नै एक था नाटण खातर,
कलयुग जोर जमावै भूप पै न्यारे पाटण खातर,
बुद्धि भ्रष्ट करी राजा नल की न्यूं दिल डांटण खातर,
एक तेगा भी धरणा चाहिए साड़ी काटण खातर,
फेर न्यूं सोची थी कलयुग नै एक तेगा धरणा चाहिए..!!३!!

राणी साझैं पड़कै सोगी राजा रात्यूं जाग्या,
उसी कुटी मै इधर उधर टहल कै देखण लाग्या,
राजा नल नै खबर पटी ना भूल मै धौखा खाग्या,
फिर कलयुग तेगा बणकै भूप नै धरा कूण मै पाग्या,
लख्मीचन्द दिल डाटण खातिर सतगुर का शरणा चाहिए..!!४!!

अब राजा नल सोच रहा था कि साड़ी को कैसे काटा जाए चलते समय राजा नल क्या कह रहे है…

{रागनी न० 43 किस्सा नल-दमयन्ती}

तेरा बिछड़ चला भरतार, ऊठ बैठी होले रै, मन की प्यारी..!!टेक!!

कदै तै देवताओं नै बर दिए, फूंक जूए में धन जर दिये,
कलू नै कर दिये घर तै बाहर, निमत के झोले रै, बण की त्यारी..!!१!!

दुख विपता के धूमे घुटगे, आज म्हारे सारे आन्नद लुटगे,
तेरे छूटगे हार सिंगार, बैछ के रोले रै, धन की मारी..!!२!!

मेरे तैं काम हूआ सै गन्दा, गेर दिया कलू बैरी नै फन्दा,
सूरत चन्दा की उनिहार, फूंक करे कोले रै, तन की हारी..!!३!!

म्हारे सब छूटगे ऐश आन्नद, गले मै घला विपत का फन्द,
लख्मीचन्द कली धरै चार, छांट कै टोहले रै, सन की न्यारी..!!४!!

अब राजा नल साड़ी काटने के बाद अपने मन-२ में क्या विचार करता है…

{रागनी न० 44 किस्सा नल-दमयन्ती}

न्यारे-२ पाट चले हम आए थे मिल करकै
डूब गया मनै साड़ी काटी पत्थर का दिल करकै..!!टेक!!

सौ दासी तेरे नाम की जिनकै बीच नहाई थी,
इसे दुखां की ठोकर के तनै आज तलक खाई थी,
रंग महलां के रहणे आळी ना इतना दुख पाई थी,
भूखी प्यासी मरती पड़ती बणखण्ड मे आई थी,
छाले पड़-२ पैर फूट गए कई दाग हुए छिल करकै..!!१!!

इन बातां का भेद के गैर तैं खोल्या जागा,
रात की बांता का सारा माजरा नजरां तैं तोल्या जागा,
उक चुक कहै दई तै किसे नै मेरा ह्रदय छोल्या जागा,
जै उठकै बूझण लाग गई तै झूठ ना बोल्या जागा,
तोरी केसी कली किसी मुरझागी खिल करकै..!!२!!

सोला बर्ष तक मात पिता नै हांथा पै डाटी थी,
इसे दुखां की मालूम ना तनै आज तलक पाटी थी,
देवताओं के रहते बर लिया लाखां मै छांटी थी,
जाग गई तै बूझैगी पिया क्यूं साड़ी काटी थी,
हाय राम इब कित बड़ज्यां इस धरती मै बिल करकै..!!३!!

जल अग्नि पृथ्वी आकाश वायु सूर्य सहायक सारे,
अष्ट वसु और ग्यारा रूद्र रक्षक चान्द और तारे,
लख्मीचन्द गुरू का शरणां रटा करो शिव प्यारे,
एक बर भी ना बोली राणी सौ-सौ रूके मारे,
कलू नै नींद में गाफिल करदी गेर दई सिल करकै..!!४!!

राणी सूती उठकै क्या देखती है…

{रागनी न०45 किस्सा नल-दमयन्ती}

सूती उठकै देखण लागी हूर भीम की जाई
कटी साड़ी देखी दो पैड़ पति की पाई..!!टेक!!

हार नीर कै आंख फूटगी जाण नही पाटी,
हाथ जोड़ कै न्यूं बूझूं पिया कद सी कहे नै नाटी,
किसी नाप तोल कै साड़ी काटी, इसी चींच कडे़ तै आई..!!१!!

मनै भी दे द्ए खाण नै जै डाहला मेवा का झुक रा हो तै,
भाइयां की सूं तेरी गैल मरूंगी जै किते संकट मै रूकरा हो तै,
कितै पातां कै मै लुहकरा हो तै किसे ओडे तैं देज्या नै दिखाई..!! २!!

फिर चली उठकै वैं पैड भी रलगी भेद कडे़ तै पाज्या,
इस भरे जंगल मै डर लागै कदे शेर भगेरा खाज्या,
हो मैं कहूं मेरे धोरै आज्या, मेरी ननद के भाई..!!३!!

लख्मीचन्द सुण लेगा तै एक बात कहूंगी पिया,
इस भरे जंगल में दुख नंगे गात किस ढाल सहूंगी पिया,
तेरी जिन्दगी भर तक साथ रहूंगी पिया क्यों अधम मै करो सो हंघाई..!!४!!

राणी क्या कहती है…

{रागनी न०46 किस्सा नल-दमयन्ती}

सहज में खुड़का सुन लूंगी मै प्रीतम की खांसी का
मेरी एकली की ज्यान लिकड़ज्या काम नही हांसी का..!!टेक!!

तू भी मेरे बिन एक जणा सै, मेरा तेरे में प्रेम घणां सै,
साच बता के खोट बणा सै, मुझ चरणन की दासी का..!!१!!

तेरे बिन लागै मेरा जिया ना, ना रोटी खाई, पाणी पिया ना,
जंगल कै मै तरस लिया ना, मुझ भूखी और प्यासी का..!!२!!

साड़ी काट कै लिकड़न नै पां होग्या, तेरा तै सहज जाण नै राह होग्या,
पिया मेरी छाती में घा होग्या, विघन सख्त ग्यासी का..!!३!!

कदे घाटा ना था धन जर का, तूं दूखड़ा देग्या जिन्दगी भर का,
लख्मीचन्द भजन कर हर का, भोले अविनाशी का..!!४!!

अब दमयन्ती अपने पति को ढूंढती-२क्या कहती है…

{रागनी न०47 किस्सा नल-दमयन्ती}

इस बणखण्ड मैं दीखै सै मनै दिन मै घोर अन्धेरा,
सारदूल जंगल के राजा कितै पति मिला हो मेरा..!!टेक!!

तेरे बिना ना मेरी दहस्त भागै, पिया मेरे इस मौकै मत त्यागै,
मनै पिता के घर पै देवतां आगै पल्ला पकड़ा तेरा,
जीवतै जी क्यूकर भूलूं जब उनकै आगै टेरा..!!१!!

अपने मन मै तै मरकै चाली, ध्यान दरखतों पै धरकै चाली,
उपर नै मुहं करकै चाली कुआ मिलो चाहे झेरा,
फिर हाथ जोड़ दरखतों से बोली जै नल का हो कुछ बेरा..!!२!!

भूल कै दुनियां की गुरबत, पीगी विपत रूप का शरबत,
उंची चोटी आळे पर्वत, तेरा लम्बा चौड़ा घेरा,
तेरी धजा शिखर मै जड़ चोऐ में ऊंचा बहूत घनेरा..!!३!!

ईश्वर तेरी माया इसे रंग की, थारी रचना सै इसे ढंग की,
लख्मीचन्द गुरू मानसिंह की शरण समझ कै लेरा,
थारी मेहर फिरी आज कौशिक वंश का फेर उजलग्गा डेरा..!!४!!

{{{कथा समाप्त}}}

रचनाकार :- सुर्यकवि दादा लख्मीचन्द
टाईपकर्ता :- पं मनजीत पहासौरिया

Language: Hindi
6676 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रामराज्य
रामराज्य
Suraj Mehra
तेरे हुस्न के होगें लाखों दिवानें , हम तो तेरे दिवानों के का
तेरे हुस्न के होगें लाखों दिवानें , हम तो तेरे दिवानों के का
Sonu sugandh
दोस्त
दोस्त
Neeraj Agarwal
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
शेखर सिंह
शेखर सिंह
शेखर सिंह
" हैं अगर इंसान तो
*Author प्रणय प्रभात*
गुलशन की पहचान गुलज़ार से होती है,
गुलशन की पहचान गुलज़ार से होती है,
Rajesh Kumar Arjun
रही प्रतीक्षारत यशोधरा
रही प्रतीक्षारत यशोधरा
Shweta Soni
उनका ही बोलबाला है
उनका ही बोलबाला है
मानक लाल मनु
पेड़ के हिस्से की जमीन
पेड़ के हिस्से की जमीन
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
DR. ARUN KUMAR SHASTRI
DR. ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
माँ से बढ़कर नहीं है कोई
माँ से बढ़कर नहीं है कोई
जगदीश लववंशी
*प्लीज और सॉरी की महिमा {हास्य-व्यंग्य}*
*प्लीज और सॉरी की महिमा {हास्य-व्यंग्य}*
Ravi Prakash
*** अरमान....!!! ***
*** अरमान....!!! ***
VEDANTA PATEL
"तुम इंसान हो"
Dr. Kishan tandon kranti
सारी जिंदगी कुछ लोगों
सारी जिंदगी कुछ लोगों
shabina. Naaz
खंडकाव्य
खंडकाव्य
Suryakant Dwivedi
2545.पूर्णिका
2545.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
(((((((((((((तुम्हारी गजल))))))
(((((((((((((तुम्हारी गजल))))))
Rituraj shivem verma
हिंदीग़ज़ल की गटर-गंगा *रमेशराज
हिंदीग़ज़ल की गटर-गंगा *रमेशराज
कवि रमेशराज
कर्मयोगी
कर्मयोगी
Aman Kumar Holy
देश के राजनीतिज्ञ
देश के राजनीतिज्ञ
विजय कुमार अग्रवाल
हाँ, नहीं आऊंगा अब कभी
हाँ, नहीं आऊंगा अब कभी
gurudeenverma198
उम्र निकल रही है,
उम्र निकल रही है,
Ansh
मैं तो महज इत्तिफ़ाक़ हूँ
मैं तो महज इत्तिफ़ाक़ हूँ
VINOD CHAUHAN
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
..........अकेला ही.......
..........अकेला ही.......
Naushaba Suriya
धर्म और संस्कृति
धर्म और संस्कृति
Bodhisatva kastooriya
रंजीत कुमार शुक्ल
रंजीत कुमार शुक्ल
Ranjeet Kumar Shukla
सो रहा हूं
सो रहा हूं
Dr. Meenakshi Sharma
Loading...