Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Jul 2017 · 4 min read

किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर अनुक्रमांक–01

***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***

किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर

अनुक्रमांक–01

वार्ता–पांचाल नरेश द्रुपद ने अपनी लड़की द्रोपदी की शादी करने के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। दशों दिशाओं के राजा एकत्रित होते हैं।
मंच की अध्यक्षता भगवान श्री कृष्ण जी कर रहे थे। द्रोपदी के भाई धृष्टद्युमन सभी को स्वयंवर की शर्तें बताते हैं–

शर्तें—
एक लंबे खंबे के ऊपर एक अष्ट धातु की मछली टांग दी जाती है,मछली कुम्हार के चाक की तरह घूम रही थी,एक चालीस भाल का धनुष उठाकर गर्म तेल की कढ़ाई में मछली की परछाई देख कर मछली की बांई आंख में निशाना लगाना था।
सोलह दिन बीत जाते हैं लेकिन कोई भी स्वयंवर की शर्त पूरी नहीं कर पाया।
सोलहवें दिन राजा द्रुपद सभी राजाओं को भला बुरा कहने लगते हैं।

वेद व्यास जी के शिष्य ऋषि वैशम्पायन परीक्षीत पुत्र जनमेजय को कथा सुनाते हैं।।

दोहा–नयन छुपाए ना छुपैं,कर घुंघट की ओट।
चतुर नार वै शूरमा करैं लाख मैं चोट।।

टेक-ब्याह शादी मैं चाब मिठाई बांटे पुष्प बतासे जां सै,
वीर पुरुष और चतुर स्त्री मौका पड़े बिचासे जां सै।

१-धन डट सकता ना दानी पै,गुण मिलता ना अज्ञानी पै,
धरती द्रव्य बीरबानी पै,बड़े बड़े हों रासे जां सै।

२-कृपण से कछु ले सकता ना,पुष्प भार को खेह सकता ना,
रूशनाई कछु दे सकता ना,जो दीप दिवस मैं चासे जां सै।

३-लुकता छिपता चोर चलै,चौगरदे नै त्योर चलै,
मानस का नै जोर चलै,जब पड़ तकदीरी पासे जां सै।

४-दामण चीर पहरलें आंगी,एक दो टूम ले आवैं मांगी,
वैश्या भांड मदारी सांगी,उड़ै देखण लोग तमासे जां सै।

दौड़—

बेटी का बाप न्यूं कहै आप संताप ताप तुम दियो मिटा,
महिपाल आ गए चाल मनैं कुर्सी घाल कैं लिये बिठा,
मेरै दस हजार आ गये पधार करीयो विचार कारण क्या,

बड़ी पैज ना काम सहज ये कुर्सी मेज राखे घलवा,
सिर बांध मोड़ चले आए दौड़ रहे बड़ी ठोड़ के भूप कहा,
महाराज आज गया बिगड़ काज अंदाज बात का लिया लगा,
क्या करणा हो दुख भरणा हो मरणा हो जिन्दगानी जा,
मैं के न्यूं जाणु था राजयो मेरै मैं कर दयोगो या,

जोहरी बणज्या बैंठ चौखटै भरी छाबड़ी बेरों की,
देख स्याल की क्या ताकत हो चोट ओट ले शेरों की,
लगै झपटा तभी बाज का जाती जान बेटरों की,
देख हीजड़े मोड़ बांध कैं मन मैं कर रे फेरों की,

पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण लक्षण सबके दे ऊं गिणा,
रोम श्याम रोहतास मदीना ढाका उड़ीसा बैठे आ,
वक्त महान मुलतान शीश पै छत्र सबके रह्या डूला,
मारवाड़ राज्यों की दहाड़ नेत्र उघाड़ ना करैं निंगा
गौड़ बंगाला भट मतवाला भाला कर मैं रहे उठा,
आ गई कन्नोज मन की मौज शैन्य फौज को रहे सजा,
आ गया चीन कर यो यकीन पर मीन किसे पै उतरी ना,

भले आदमी बूरे काम तैं दूर टळकैं जा,
पर्वत पर तैं पत्थर ढळके ढळके ढळके जा,
आम झूकैं नीचै नैं अरंड ऊपर फळके जा,
भाड़ बीच गेर फेर कहाँ चणे उछळके जा
बेहुदी बेशर्म रांड हों भाज उधळ के जा,
डाकियां के ब्याह मैं जो न्योतार पळ के जा,

हाथ लगाये बेरा पाटै करड़ी वस्तु ढीली का,
चूहे का ना जोर चलै दांव लाग ज्या बिल्ली का,
अग्नि मैं ना पार बसावै सूखी वस्तु गीली का,
गधी बारणै मरी पड़ी भाड़ा कर रे दिल्ली का,

दशुं दिशा के कट्ठे हो रे बड़े बड़े बलकारी,
थारै भरोसै पैज रखी मेरी रहगी सुता कुंवारी,
नामाकुल डूबकैं मरगे थुकैगी प्रजा सारी,

बढ़ बढ़ बात बणाया करते,ऊंचे चढ़ गरणाया करते,
ना वक्त पै पाया करते,कायर जाते पीठ दिखा,
आये जब धरती तोलो थे,ओळे सोळे डोलो थे,
थाम बढ़ बढ़ कै नै बोलो थे,

जगह जगह का भूप हो रह्या कट्ठा आज,
पैज को निरख होया वीरों का बलमट्ठा आज,
वंश का लजावा आये है उल्लू का पट्ठा आज,

देश देश के नरेश किया सभा मैं प्रवेश,
मेरा मिट्या ना कळेश मनै किया जो प्रण,

शुभ बाजे रहे बाज,जुड़या राजों का समाज,
सिर पै सजा सजा ताज,आये द्रौपदी वरण,

बल पर्वत प्रताप कैसे,दर्शायाओ न ताप कैसे,
बैठे हो चुपचाप कैसे,लाये तोल कैं धरण,

सूणे मागदों के बैन,चित पङ्या नहीं चैन,
किये लाल लाल नयन,लगे रीस मैं भरण,

मुकट शीश पै जचाये,हरी माया नैं नचाए,
वै ऐ बचैंगें बचाए,जिसनै प्रभु की शरण,

खङ्या खङ्या भूपती सभा मैं करता विलाप,
आओ आओ धनुष उठाओ ना जाओ लेलो घर का राह,
क्षत्री का लड़का कोय आण कैं उठाओ चाप,
पैज को निरख कैसे वीरों को चढ़या ताप,

क्रोध मैं भरया था भूप नेत्र कीये लाल लाल,
खोटे वचन कहण लाग्या सुनते सर्व महिपाल,
जाओ जाओ घर नै जाओ खाली करो यज्ञशाल,

थारे तै ना काम बणै व्यर्था क्यूं लुटाओ माल,
सिंहणीयो की कूख से पैदा होेणे लागे स्याल,
कथन करत नित कहते कवि कुंदनलाल।

५-नंदलाल करै कविताई देखो,लगै ना स्वर्ण कै काई देखो,
यह कवियों की चतुराई देखो,अक्षर शुद्ध निकासे जां सै।

कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)

Language: Hindi
1 Like · 634 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ख्याल
ख्याल
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
*जिंदगी के अनोखे रंग*
*जिंदगी के अनोखे रंग*
Harminder Kaur
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
हवायें तितलियों के पर काट लेती हैं
हवायें तितलियों के पर काट लेती हैं
कवि दीपक बवेजा
सब छोड़कर अपने दिल की हिफाजत हम भी कर सकते है,
सब छोड़कर अपने दिल की हिफाजत हम भी कर सकते है,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
जिंदगी की एक मुलाक़ात से मौसम बदल गया।
जिंदगी की एक मुलाक़ात से मौसम बदल गया।
Phool gufran
न
न "लाइटर", न "फ़ाइटर।"
*Author प्रणय प्रभात*
मां शारदे वंदना
मां शारदे वंदना
Neeraj Agarwal
हर बार बीमारी ही वजह नही होती
हर बार बीमारी ही वजह नही होती
ruby kumari
Rap song (3)
Rap song (3)
Nishant prakhar
2323.पूर्णिका
2323.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
सॉप और इंसान
सॉप और इंसान
Prakash Chandra
एक टहनी एक दिन पतवार बनती है,
एक टहनी एक दिन पतवार बनती है,
Slok maurya "umang"
*** लम्हा.....!!! ***
*** लम्हा.....!!! ***
VEDANTA PATEL
खुद से ही बातें कर लेता हूं , तुम्हारी
खुद से ही बातें कर लेता हूं , तुम्हारी
श्याम सिंह बिष्ट
कंटक जीवन पथ के राही
कंटक जीवन पथ के राही
AJAY AMITABH SUMAN
खेल खिलौने वो बचपन के
खेल खिलौने वो बचपन के
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
15- दोहे
15- दोहे
Ajay Kumar Vimal
"कश्मकश"
Dr. Kishan tandon kranti
आंखें मूंदे हैं
आंखें मूंदे हैं
Er. Sanjay Shrivastava
दीपावली
दीपावली
Deepali Kalra
दर जो आली-मकाम होता है
दर जो आली-मकाम होता है
Anis Shah
तुम्हारी खुशी में मेरी दुनिया बसती है
तुम्हारी खुशी में मेरी दुनिया बसती है
Awneesh kumar
सुख- दुःख
सुख- दुःख
Dr. Upasana Pandey
श्रीराम वन में
श्रीराम वन में
नवीन जोशी 'नवल'
*आइसक्रीम (बाल कविता)*
*आइसक्रीम (बाल कविता)*
Ravi Prakash
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
जरूरत के हिसाब से सारे मानक बदल गए
जरूरत के हिसाब से सारे मानक बदल गए
सिद्धार्थ गोरखपुरी
दोहा-
दोहा-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
टाईम पास .....लघुकथा
टाईम पास .....लघुकथा
sushil sarna
Loading...