किसी को सोचा मत कीजिए
किसी की यादों में खोया मत कीजिए
रात दिन किसी को सोचा मत कीजिए
अब ज़माना नही रहा क़ाबिले ऐतबार
इस क़दर किसी पे भरोसा मत कीजिए
अपने ग़म की वजह हम खुद भी हो सकते हैं
हमेशा तक़दीर को कोसा मत कीजिए
दौलत और शोहरत के लालच में आकर
अपने ज़मीर का यूँ सौदा मत कीजिए
कहीं तबाही की फसलें न उगने लगें ‘अर्श’
कभी बीज नफ़रत के बोया मत कीजिए