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23 Mar 2018 · 4 min read

किसान : शुरू से अब तक

#लेख:
किसान: शुरू से अब तक
@दिनेश एल० “जैहिंद”

भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान जय किसान” का नारा दिया था । इस उक्ति को देश के सामने रखने का उनका उद्देश्य यही रहा कि देश के वीर जवान और कर्मठ किसान देश के सच्चे मित्र हैं, या यूँ कहा जाय कि वे देश, समाज व परिवार के वास्तविक पालक हैं । अत: उनका हमेशा सम्मान, आदर व संरक्षण होना चाहिए ।

जहाँ एक ओर वीर जवानों के चलते हम अपने घरों में सुख-चैन की बंसी बजाते हैं, वहीं दूसरी ओर इन किसानों के चलते देश की सारी जनता को भर पेट भोजन नसीब होता है । यहाँ अगर मैं ये कहूँ कि इन जवानों का भी पेट हमारे इन किसानों की महिमा से ही भरता है, तो कुछ गलत नहीं होगा । अत: हमारे किसानों का महत्त्व सर्वोपरि हो जाता है । फिर भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ये जवान और किसान हमारे भगवान हैं ।

किसान जहाँ मानव सभ्यता के प्रारंभ से इस धरती पर विराजमान हैं, वहीं जवान हमारी बाद की व्यवस्था हैं । जवान जहाँ हमारी सुरक्षा-व्यवस्था का अंग हैं, वहीं किसान स्वतः विकसित हमारे गृहस्थ जीवन का अंग हैं । अगर मानव के मन में पेट की आग बुझाने का कोई अलग विकल्प दिखा होगा तो कंद-मूल, फल-फूल व मांस के बाद अन्न उगाने का ही विकल्प दिखा होगा और वह धीरे-धीरे मिट्टी को खोद-खादकर फसल उगाने लगा होगा । और इस तरह जनमी होगी खेती करने की हमारी प्राचीनतम व्यवस्था । जिसके मूल में हैं हमारे किसान । यही कारण है कि हम किसान को “धरती के पुत्र” व “माटी के लाल” जैसे उपनामों से नवाजते हैं ।
“किसान” मानव का प्राचीनतम व्यवसायिक नाम है और यह आज भी मानव समाज में उसी रूप में दिखाई दे रहा है । यह इस आधुनिक युग में भी समाप्त न हो सका है । हो भी कैसे ? क्योंकि किसान और किसानी हमारी मूलभूत आवश्यकताएँ हैं । इनके बिना हमारा जीवनसम्भव नहीं है । जीवन जीने के लिए ऊर्जा चाहिए और ऊर्जा हमें भोजन से प्राप्त होती है ।
अब यह कहना नहीं होगा कि अब यह भोजन कहाँ से आता है !

किसान हमारे परम हितैषी हैं । इसीलिए लाल बहादुर शास्त्री के कथन को झुठलाया नहीं जा सकता है और ना ही अनदेखा किया जा सकता है । अत: हमारी किसी भी सरकार को किसानों की खातिर यथा सम्भव अधिक से अधिक मदद, आर्थिक सहायता और उपकरण व्यवस्था करते रहना चाहिए । आवश्यकतानुरूप उन्हें आर्थिक मदद, कर्ज और आधुनिक संसाधन उपलब्धता कम मूल्यों पर प्रदान करना चाहिए । राज्य सरकार, केंद्र सरकार तथा सरकारी बैंकों को खुले दिल से उनकी सहायता करने हेतु सदा तैयार रहना चाहिए । तब कहीं जा कर “जय जवान जय किसान” की दूरगामी सोच का सुपरिणाम स्पष्ट देश में देखने को मिल सकता है ।
किसानी किसानों का मूल धर्म है, यह किसानी व्यवस्था से कब प्रथा बन गई, यह खुद किसानों को भी पता नहीं होगा, फिर वे किसानी छोड़कर भला कहाँ जायं । बाप-दादों ने किसानी की, वे स्वयम् किसानी करते हैं और बेटे भी किसानी करेंगे । वे अपनी धरती-माँ को छोड़ तो नहीं सकते हैं । क्योंकि धरती माँ तो सबकी अन्नपूर्णा माई है । हमें अन्न तो वही देती है । किसान-दिन रात कड़ी मेहनत कर अन्न उगाता है । तब जाकर हमारा पेट भरता है, हम पोषित होते हैं ।

परन्तु किसान हमारे सबसे बड़े हितैषी होते हुए भी आज किसान हमारे लिए कुछ नहीं हैं ।
सरकार और हम किसानों को अनदेखी कर रहे हैं । आए दिन किसानों की दुर्दशा व बदहाली के किस्से कहानियाँ हम अखबारों में पढ़ते रहते हैं, यहाँ तक कि अर्थहीनता व कर्जे के बोझ तले दबे-कुचले आत्महत्या तक कर रहे हैं, उनका परिवार अर्थहीनता व बदहाली से भरी जिंदगी बसर कर रहा है, पर सरकार के कानों जूँ तक नहीं रेंग रही है, वह इन सबों से अनजान हाथ पर हाथ धरे बैठी है । ऐसे में आज किसान किसानी कैसे करें ? मेहनत कड़ी व आमदनी कम, आमदनी चवन्नी व खर्चा रूपया वाली कहावत उनके साथ चरितार्थ होती है । ऐसे में आज किसानी कौन करता है ?

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ की 60% आबादी कृषि कार्य करती है और 15% अतिरिक्त आबादी परोक्ष-अपरोक्ष रूप से भी इसी कार्य में लगी रहती है । लेकिन 90 के दशक के बाद कृषि व्यवसाय में मूल-चूल परिवर्तन हुए हैं । कृषि कार्य से लोगों का रुझान घटा है । शिक्षित नव पीढ़ी कृषि कार्य को अपने अनुकूल नहीं मानती हैं । उन्हें बाबुओं की नौकरी चाहिए । नव पीढ़ी अनपढ़ या शिक्षित दोनों ही काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रही है । आज सबसे बड़ी आश्चर्यचकित कर देने वाली बात यह है कि जिन जवानों का सिर ऊँचा और छाती चौड़ी होनी चाहिए उन जवानों का सिर नीचा और छाती धँसी हुई रहती है । कानों में एयरफोन और हाथ में मोबाइल या दोनों हाथ पैंट की जेब में होते हैं । ऐसे में कौन युवा किसानी को तवज्जो दे रहा है । फिर इस देश पर जान लुटाने वाले वीर जवान और धरती पुत्र कहाँ से आएंगे ? यह एक जटिल प्रश्न है । फिर परिणाम स्पष्ट है । धरती का एक बड़ा सा हिस्सा खेती से वंचित हो रहा है । मैदान का मैदान परती पड़ा हुआ है । बड़े किसान अपने खेत बट्टे पर छोटे किसानों को या मजदूर किसानों को हस्तांतरित कर शहरों की और भाग रहे हैं । यह बड़ा ही चिंताजनक विषय है ।

==============
दिनेश एल० “जैहिंद”
18. 03. 2018

Language: Hindi
Tag: लेख
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