किसान पर दया करो
अन्नदाता कहते हो
तुम मुझको
मैं नही कहता
ये सम्मान दो मुझको
वस मेरी मजबूरी को समझो
क्यूँ खेत छोड़
रोड़ पर हूँ उस नीयत को समझो ।
पिता जैसा सम्मान नही
चाहता
पर उम्र का लिहाज तो
कर सकते हो
मैं नही अन्नदाता
मैं किसान हूँ
एक गरीब पर तरस तो
कर सकते हो ।
मैं सियासत नही
अपना हक चाहता हूँ
ज्यादा नही
वस पेट भर चाहता हूँ
छीनना तुमसे नही
तुमको भर पेट थाली
देना चाहता हूँ ।
रोस मुझमें भी है
खून मुझमें भी है
जब चीर सकता हूँ
धरती का सीना
तो तुमको पछाड़ना भी
जानता हूँ
मैं किसान हूँ
पेट भरता हूँ हर सख्स का
पेट की सियासत नही जानता हूँ ।
आज तुम हो
जिस मुकाम पर
उसमें हिस्सा मेरा भी है
जब भूख लगे तो
तो पूछना निवाले से
तुम्हारे जीवन के साथ
किस्सा मेरा भी है ।
जंग से डरता नही
जंग तो कुदरत से
करता हूँ
तुम सब तो बच्चे हो अपने
तुम्हारे लिए तो
खेत में खून पसीना
एक करना जनता हूँ ।