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4 Feb 2021 · 1 min read

किसका कन्धा पकड़े जाकर हम

अंकित हो या पंकज क्यों हमारें देश में आजाद नहीं
क्यों हिंदुस्तानी धर्म की सुनती सरकारे फरियाद नहीं

कब तक अपने चमन में कैद बनकर हम रहेन्गे यारों
क्यों मुस्लिमों के किये सितम रहते हमकों याद नहीं

कब तक महजबीं अंधों की बात सुनतें रहेंगे यहाँ पर
धर्म की आड़ में इनके जुनूनी ज़ुल्म की मियाद नहीं

किसका कन्धा पकड़े किसको जाकर के रोये हम
अंधी गूंगी बहरी बन बैठी सरकार की कोई दाद नहीं

कश्मीर खोया कैराना रोया अब कासगंज बुलाता है
जो शाहिद हो गए है क्या वो किसी की औलाद नहीं

अशोक कब तक हमदर्दी दिखा ज़ख्मों को ढोता रहेगा
मुर्गा ए चमन बन बैठा ये हिन्द कही हो रहा बरबाद नहीं

अशोक सपड़ा हमदर्द की क़लम से दिल्ली से

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