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9 Feb 2018 · 1 min read

किरण महबूब सी आयी

बदलती कुछ फ़िज़ां ऐसी,सुहानी भोर लगती है ।
चमन की हर कली देखो,सँवरती आज लगती है ।
उतरती पाँव ज़मीं पर रख,किरण महबूब सी आयी ।
समा ‘अंजान’ बाँहों में,बिखरती आज लगती है ।

दीपक चौबे ‘अंजान’

Language: Hindi
326 Views
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