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8 Oct 2021 · 1 min read

किनारा भी नही आया

किनारा भी नहीं आया
1222 1222 (ग़ज़ल)
******************

यहाँ कोई नहीं आया,
कसम से ही नहीं आया।

जहां भी देख कर हारे,
बकाया भी नहीं आया।

सभी से पूछ कर देखा,
बताया जी नहीं आया।

थकी आंखें झुकी नजरें,
समझ मेरी नहीं आया।

खुली बाहें रहीं सूनी,
पकड़ में भी नहीं आया।

गया है डूब सागर में,
किनारा भी नहीं आया।

दगा है यार मनसीरत,
सनम कपटी नहीं आया।
*******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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