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10 Jul 2020 · 1 min read

कितने ग़म

भूल गया, थे कितने ग़म
दिल ने झेले इतने ग़म

अपनों ही से पाए, तो
ग़ैर कहाँ थे अपने ग़म

इक-इक कर सब टूट गए
जितने सपने, उतने ग़म

सबको प्यार-दुलार दिया
हमने पाए जितने ग़म

ख़ास नहीं थे कुछ यारो!
आख़िर थे ही कितने ग़म

1 Comment · 226 Views
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