का तूं जान$ तारु……(भोजपुरी कविता)
का तूं जान$ तारु….?
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मननी तूं हमार पत्नी हऊ
ऐह जीवन के सम्पूर्ण स्वामिनी हऊ
तोह से ही हमार संसार बा
ऐह जीवन में खीलल बहार बा
किन्तु ऐह जीवन पर
केहू अऊरो के अधिकार बा
हमार रग–रग, खुन के एक-एक कतरा
माई बाबूजी के कर्जदार बा,
का तूं जान$ तारु…..?
नव माह अपने कोख में रख
हमका ऐह दुनिया मे लईली
आपन दूध पीअवली
हर विपदा से बचवली
खुद भुखे रह ली लेकिन
हमरा भर पेट खिअवली
हम उनकर परछाई हईं
ऊह हमार माई हई
का तूं जान$ तारु…..?
मननी हम दीहले रही वचन
साथ निभावे के
तोहार देख-रेख करे के
कबहूँ न रुलावे के
तोहरे हर इच्छा के पुराई
ई हमार मजबूरी बा
पर माई बाबूजी के
सेवा सत्कार, भी त जरूरी बा
का तूं जान$ तारु……?
तोहरे माई बाबूजी जी के
हम अपने लेखा मानीला
कबो नाही अनादर करी
उनका लोगन के सेवा से
कबो ना बगली झाकीला
जहां कहीं भी अपना फर्ज पर खड़ा रहीले
जो कुछ भी करीं कबो ना केहू से कहीले
पर अपनो जन्मदाता के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य बा
का तूं जान$ तारु……..?
जब इच्छा तूं अपना घरे बतियावेलू
अभीनो अपने नईहरे के हीं
तूं आपन परिवार मानेलू
फिर भी हम तोहे कबहूँ ना रोकिला
सगरे दिन नईहर – नईहर माला फेर
लेकिन कबो कुछों ना बोलिला
पर हम जो अपने माई बाबूजी से
थोड़का जो बतियाईं तूं खीझेलू
हमरो अपना माई बाबूजी से ओतने प्रेम बा
का तूं जान$ तारु…….?
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”