काले मेघा जब तुम आना
काले मेघा जब तुम आना
छत पर मेरी भी आ जाना
अपनी शीतलता से कुछ तो
इस तन मन की अगन बुझाना
नफरत की जो धूप सही है
बेल प्रेम की सूख रही है
हरा भरा करने ही उसको
नेह भरा अमृत बरसाना
काले मेघा जब तुम आना
बात पुरानी याद दिलाती
तन्हाई यूँ मुझे सताती
गरज गरज कर थोड़ा सा तो
मेरी खातिर इसे डराना
काले मेघा जब तुम आना
आँखों से सागर सा बरसे
जीवन खुशियों को ये तरसे
इंद्रधनुष के रँग बिखरा कर
बूंदों के तुम राग सुनाना
काले मेघा जब तुम आना
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उ प्र)