कारखाने के षडयंत्र का रहस्य
कारखाने के षडयंत्र का रहस्य
प्रमोद और विनोद घनिष्ठ मित्र थे । एक विशाल कारखाने मे दोनों कारीगर थे । दोनों का आपस में मेल –मिलाप था । आधुनिक सभ्यता से लेकर, अध्यात्म तक, दोनों एक दूसरे का आदर करते थे , यद्धपि जातिगत व्यवस्था दोनों की भिन्न थी । प्रमोद सवर्ण जाति का प्रतिनिधित्व करता था , वहीं विनोद जन जाति का प्रतिनिधि था ।
राजनीति एक एसी दुधारी तलवार है, जो वर्ण व्यवस्था को बाटने का काम करती है , जतियों को अपने इशारे पर नचाने का कार्य करती है । सामाजिक विषमता की खाई भरने की जगह समय के साथ और चौड़ी हो रही है , जोकि यथार्थ से कहीं उलटा है ।
समय सभी घावों पर मरहम का कार्य करता है । किन्तु यहाँ समय के साथ सवर्ण और जन जातियों का मतभेद गहरा रहा है ।
विनोद और प्रमोद सामान्य स्तर के कारीगर थे, किन्तु वर्ण व्यवस्था के अनुसार दोनों मे बहुत अंतर था । प्रमोद जाति से ठाकुर व विनोद चमार जन जाति का ,होने के बावजूद परस्पर एक दूसरे पर निर्भर थे । विनोद , प्रमोद से बिना पूछे कोई कार्य नहीं करता था, तो प्रमोद, बिना विनोद के सहयोग के कोई कार्य पूर्ण नहीं करता था । दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे ।
अचानक राजनीति की काली छाया विनोद और प्रमोद की मित्रता पर पड़ने लगी । कारखाने के प्रतिनिधियों को उनकी मित्रता का सुख , नेत्रो मे कंकड़ की तरह चुभ रहा था । कुछ तथा कथित दलित नेताओ ने विनोद के कान भरने शुरू किए । उन्होने प्रत्यक्ष में प्रमोद के विरुद्ध जहर उगलना प्रारम्भ कर दिया ।
विनोद एक शिक्षित व सम्पन्न परिवार से था । राजनीतिक इच्छा शक्ति एवं उसके दुष्परिणाम से अपरिचित था , उसे पूर्वजों पर किए गए अत्याचारों व समाज सुधार के प्रयासों की जानकारी थी , वह उनकी सराहना भी करता था ।
कारखाने के नेताओं ने उसके सरल स्वभाव का फायदा उठाना शुरू किया, व अतीत में किए गए दमन व अत्याचार , , शिक्षा व्यवस्था में भेदभाव , धार्मिक स्तर पर भेदभाव के विरुद्ध उसकी भावनाओं को भड़काना प्रारम्भ कर दिया । दलित एकता व अस्तित्व के प्रश्न पर समर्थन जुटाना प्रारम्भ कर दिया । विनोद का शांत मन अब अशांत रहने लगा । मित्रता मे कुटिलता व अनैतिकता का बोध होने लगा । उसने अपने मित्र के प्रति कर्तव्य को गौड़ समझ कर तथा कथित छद्म समाज के हितों का समर्थन करना शुरू कर दिया ।
प्रमोद का स्वाभिमानी मन इस प्रचार से जितना आहत होता उतना ही विरोध का स्वर ऊंचा उठता था ।
दलित प्रतिनिधियों का कुत्सित षडयंत्र कामयाब हो रहा था , दोनों मित्रों के हृदय दूध में पड़ी राजनीतिक खटास से फट गए थे । विनोद अब प्रमोद का कहा पूर्व की तरह नहीं सुनता था , बल्कि कभी –कभी अनसुना कर जबाब भी देने लगा था । राजनीति और वोट बैंक के गंदे खेल ने , पूरे कारखाने को जातिगत आधार पर दो फाड़ कर दिया था ।
दलित जहां अपनी आज्ञाकारी स्वभाव , लगन व कार्य को पूर्ण करने के लिए जाने जाते हैं , वही विनम्रता का बेजोड़ मेल भी उनमे है ।
वही सवर्ण अपनी कार्य कुशलता , कार्य योजना बनाने व क्रियान्वयन , व्यवहार कुशलता व सहृदयता के लिए जाने जाते हैं , दोनों का परस्पर संगम देश की उन्नति के लिए बहुत ही अच्छा संयोग है , किन्तु कूटनीति व राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु कारखाने के प्रतिनिधियों ने कारखाने के समरस वातावरण मे जहर घोल दिया ।
एक दिन विनोद ने प्रमोद की न केवल अवमानना की बल्कि अपशब्द भी कहे । प्रमोद का स्वाभिमानी मन इस अपमान को सहन नहीं कर सका और वह हिंसक हो गया ।
राजनीति को जैसे पंख लग गए , प्रतिनिधियों ने विनोद को उकसा कर हरिजन एक्ट के तहत प्रमोद के विरुद्ध एफ आई आर करवा दिया , उसने कई छद्म आरोप भी गढ़े ।
उस वक्त समय की नजाकत समझ कर प्रमोद ने विनोद से माफी मांग ली , अन्यथा गैर जमानती वारंट के चलते हवालात व कचहरी के चक्कर भी लगाने पड़ते ।
विनोद ने अहसान जताते हुए एफ आई आर वापस ले लिया ।
बिना जांच पड़ताल किए व्यक्ति के खिलाफ एफ आई आर लिखना व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है , उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा का मान मर्दन है , मानवअधिकारों का हनन है ।
यह अत्यंत निंदनीय है कि जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजनीतिक प्रेरित हरिजन एक्ट कि समीक्षा कि जाती है , तो तथा कथित संघठन एक होकर , हिंसक आंदोलन कर सरकार पर दबाब बनाते है ।
यदि प्रमोद व विनोद को परस्पर मेल मिलाप एवं समरस व्यवहार व समरस वातावरण कि आवश्यकता है तो उपरोक्त कानून कि समीक्षा आवश्यक है , जिससे दोषी को दोषी साबित किया जा सके , जिससे विभिन्न वर्णों के लोग अपनी मित्रता निभा सके व एक दूसरे की सराहना कर सकें ।
व्यक्ति को अपना भविष्य वर्तमान में ही तलाशना व तराशना चाहिए । अतीत के दुख दर्द केवल निराशा व कुंठा ही दे सकते हैं । अत :वर्तमान में रह कर सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन कर अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन करना चाहिए ।
02-06-2018 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
सीतापुर