कागज़ और जिन्दगी
कागज़ और जिन्दगी
कागज़ और जिन्द्गी का
अजब नाता है
दोनों का जन्म
एक प्राकृतिक प्रक्रिया है
जिसमे दोनों को ही
जीवन में अपना
मुकाम प्राप्त करना होता है
एक का भाग्य
मनुष्य निर्धारित करता है
वह है कागज़
जिस पर क्या लिखा जाए
कि इसका जीवन चरितार्थ
हो जाए
क्या कविता लिखी जाए
या कोई सन्देश लिखा जाए
या फिर
किसी के लिए कोई प्रेम सन्देश
या इस पर
भक्तिरस से पूर्ण कोई विचार
या धरती पर अवतरित
असाधारण व्यक्तित्वों का
जीवन चरित्र
या फिर
जीवन में हो रही
उथल – पुथल को
किया जाए चित्रित
या फिर कोई अप्रत्याशित घटना
या इस पर कोई चरित्र उकेरा जाए
पर चित्र हो किसका
सामाजिक परिवेश में
जी रहे अनगिनत
चरित्र
या उस अबोध बालक का
जो पालने में है
या फिर
इस कागज़ को
कोई आकार दिया जाये
आकार किसका
किसी देव का या किसी खिलोने का
ये सारी बातें आखिर
किसलिए हो रही हैं
चूंकि बालक का बचपन
कोरे कागज़ की भांति ही
होता है
उसे हम कोई भी
आकार दे सकते हैं
उस पर कुछ भी लिख सकते हैं
अतः करो कुछ निर्मित ऐसा कि
धरा पर वह चरित्र
अमर हो जाए
दूसरों के लिए
आदर्श बन जाए
एक सम्पूर्ण जीवन |