कह मुकरियां
मन अलसाया नयना सोए
जब तक उसके दरस न होए
उस बिना तनिक रहा नहीं जाय
ऐ सखि साजन! न सखि चाय।
बरसता पानी या हो धूप
साथ है तेरा बड़ा अनूप
मुसीबतों से मुझे बचाता
ऐ सखि साजन! न सखि छाता।
इधर से उधर नजर मैं फेंकूं
जब तक कि उसका मुख न देखूँ
हो गया उससे ऐसा प्यार
ऐ सखि साजन न सखि अखबार।
उसके बिन नहीं आये सांस
वही तो है जीवन की आस
वह मेरे हर मर्ज की दवा
ऐ सखि साजन न सखि हवा ।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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