**कहीओ त होई सुख के सबेरा**
कहीयाले मन के छली ई अधेरा
कहियो त होई सुख के सबेरा।
नया फूल खीली फीर जीवन डगर में
महका दी हमके ऊ सगरो नगर में,
समईयाँ ऊ आई जब होई बड़ाई
फिर ना करी केहूँ हमरो हीनाई,
मनवाँ में कईल तु आश के बसेरा,
कहीयो त होई सुख के सबेरा।
सुख दुख से जीनगी के रहीया चलेला
पीठी दर पीठी सब ईहै कहेला,
सुख मे उफनाई ना दुख से घबराई
बिधना के लीखल के दिल से अपनाई,
सुख दुख के जीवन भर लागेला मेला
कहियो त होई सुख के सबेरा।
नया लोग मिलीहे, बीछड़ीहे पुराना
बीतल समईया बन जाई तराना,
नया गीत जीनगी के फिर से लिखाई
छूटल जे रहिया में बहुत याद आई,
एक दिन बनी सभे काल के चबेना
कहियो त होई सुख के सबेरा।
पतझड़ के मौसम आई, आके जाई
फिर से बसंत के फूल लहलहाई,
भरी तेज केतनों हवा आपन झोंका
फिर भी तु मन में रखिह भरोसा
दिन जिन्दगी के ना एक सा रहेला
कहियो त होई सुख के सबेरा।
©® पं.संजीव शुक्ल”सचिन”
9560335952