कहीं शह, कहीं पर मात
कहीं पर शह तो कहीं पर मात देखो
बिगड़ते हुए रोज़ मुल्क के हालात देखो
बदतमीजी की हदें ऐसे भी पार होती है
संसद में गालियां, गूसे और लात देखो
अवाम के सरोकारों से क्या गरज इनको
किस तरह भुनाए जाते हैं जज्बात देखो
वाह वाही के झूठे अखबार छापने वालों
क्या है ज़मीं पर मुल्क के हालात देखो
यह हमारी ही बेनियाजी का सिला है
इधर दिन काले, उधर रंगीन रात देखो
क्या करे? हमारी पहचान कुछ ऐसी है
इंसान नहीं, यहां पहले जात-पात देखो
किसी और का दिल टटोलने से पहले
पहले अपने गिरेबान के हालात देखो
@ अरशद रसूल