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18 Jul 2021 · 5 min read

कहानी : “काश! ये संभव होता” …..

कहानी : काश.! ये संभव होता….

मैंने ईश्वर से समय को वही थाम भूतकाल में लौटने की शक्ति पा सब कुछ ठीक करने की ठान ली थी…. । क्या यह ये सब इतना आसान होने वाला था…??

दिनों दिन राजधानी दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर के बढ़ते आंकड़ों ने दिल में एक अनजाना डर पैदा कर दिया था। न्यूज चैनलों पर प्रसारित हो रही खबरों में नकारात्मक खबरों का ही बोलबाला था।
मैंने टी वी बंद किया और मन ही मन ईश्वर से सबकी कुशलता की प्रार्थना करते हुए सोने के लिए अपने बेडरूम में आ गई थी। सुबह उठकर चाय बनाने के लिए गैस पर पतीला चढ़ाया ही था कि घर से फोन आ गया…. जिसकी आशंका और डर था वही हुआ…….24 अप्रैल की सुबह देवर ने फोन पर बताया कि पापा ससुर जी को कल रात से हल्का बुखार था….. हमारे कहे अनुसार शाम तक जरूरी सारी जाँच करवा ली गईं और डॉ से आनलाइन परामर्श कर निर्देशानुसार ट्रीटमेंट भी शुरू कर दिया गया था।

अगले दिन जहाँ कोरोना की आर टी पी सी आर रिपोर्ट तो नेगेटिव आ गई थी।
…. किन्तु ससुर जी का हर वक़्त का बुखार और हल्की खाँसी के साथ सी टी स्नेक की रिपोर्ट में फेफड़ों में शुरूआती न्यूमोनिया के लक्षण आना बहुत डरा रहा था. और उनके कोरोना संक्रमण की पुष्टि कर रहा था।

इधर मेरे देवर यानि ससुर जी के छोटे बेटे जिनको कि कोरोना संक्रमण के चलते अस्पताल में पहले से ही भर्ती कराया गया था, उनकी खराब होती तबियत ने एक और नकारात्मक प्रभाव उनके सेहत पर डाल दिया था।
पापाजी ने अचानक खाना पीना कम कर दिया और अपनी दैनिक योगा प्राणायाम भी करना छोड़ दिया था।
चारों तरफ फैली नकारात्मक खबरों ने एक स्वस्थ जिंदादिल और प्रेरणादायी व्यक्तिव पापाजी को एकदम सदमें में ला दिया था।

पूरा परिवार चिंता में था, आनन – फानन में मैंने व पतिदेव ने गुजरात से दिल्ली उनकी देखभाल के लिए जाने का फैसला किया और अगले ही दिन हवाई यात्रा कर शाम तक हम वहाँ पहुँच गये थे।
तब तक हम उनकी तबीयत की पूरी जानकारी ले रहे थे और घर ही किसी तरह व्यवस्था कर उन्हें आक्सीजन देकर नार्मल रखने की कोशिश की जा रही थी।
दुआओं का दौर जारी था… अन्य परिवारिक सदस्य उनके स्वस्थ होने और कोविड नेगेटिव होने की ही कामना कर रहे थे।
हमनें घर पहुँचते ही तुरंत उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया और किस्मत की बात थी कि जल्द ही एक अच्छे जरूरी सुविधा युक्त सरकारी अस्पताल में बेड मिल गया।
महामारी के इस दौर में अपनों की पल- पल उखडती सांस के लिए जिंदा बचा पाने की जद्दोजहद में एक अदद आक्सीजन बेड मिलना कितनी बड़ी जंग जीतने जैसा ही था!…… ये वही परिवार समझ सकता है जिसने….. इसमें खुद को असहाय खड़ा पाया है।

पापाजी को भर्ती करा हम थोड़ा सा सुकून से थे और ईश्वर को धन्यवाद कर रहे थे कि, “अच्छा है सब कुछ डाॅ कि निगरानी में ही चलेगा और यहाँ सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।”
रात दो बजे अचानक ही पापाजी को सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी थी…आक्सीजन लेवल कम होता देख उन्हें साथ में वेंटिलेटर भी लगा दिया गया।
ये रात बहुत कठिन रात थी… पापाजी जी हर पल बढ़ती बैचेनी और सांस लेने में हो रही तकलीफ़ परिवार के लिए असहनीय हो रही थी….मेरे पति और देवर डॉ से बात करके….. हर संभव प्रयास कर उन्हें बचाने की गुहार लगा रहे थे।
स्तिथि गंभीर होती जा रही थी और एक बार को लगा पापाजी को हम खो देगें…. लेकिन डॉ के दिए एक इंजेक्शन से अचानक पापाजी रिवाइव करने लगे….. उनका आक्सीजन लेवल सुधरने लगा था ….. ये सब हमारे लिए एक चमत्कार जैसा ही था!

आखिर हम सबकी दुआओं ने असर दिखाया और देर सुबह उनकी सेहत में सुधार आने लगा। आक्सीजन लेवल भी सुधर रहा था…. अतः डॉ भी हमें उनके ठीक होने की उम्मीद दिला रहे थे.. ।
ये सब सुनकर पूरे परिवार के चेहरों पर हल्की सी राहत उभर आई थी। ईश्वर को सभी मन ही मन धन्यवाद कर रहे थे। अस्पताल में हर तरफ से आती बुरी खबरों के बीच पापा की सेहत मे सुधार देख हम खुश थे।

मैंने अपने पति से कहा कि,… “थोड़ा ठीक होते ही हम उन्हें अपने साथ ले चलेंगे और खूब सेवा करेंगे”…. ये सुनकर पतिदेव ने नम आँखों से सहमति से सिर हिला दिया था।
पापाजी ने कई घंटों के इंतजार के बाद आँखे खोली थी, हम सभी को अपने सामने विडियो काॅल पर देख उनकी आँखे नम हो गई थीं।
“पापाजी आप बिल्कुल ठीक हैं चिंता मत करो जल्द ही हम घर चलेंगे” … बड़े बेटे के शब्द सुनकर उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभर आ गई थी।
तीन दिन में उनकी सेहत में काफ़ी सुधार आ गया तो डॉक्टर के कहे अनुसार हमनें अस्पताल से छुट्टी करा घर पर ही उनके लिए सभी व्यवस्थाएं कर देखभाल करने का निर्णय ले लिया था।

अगले दिन एक मई को पापाजी का 76वां जन्मदिन था। हम सब सुबह – सुबह सामूहिक रूप से विडियो काॅल पर उन्हें बधाईयाँ दे रहे थे… । पापाजी अपने सभी पोते, दोहिते दोहिती भरे पूरे परिवार को एक साथ देखकर बहुत खुश थे और हमेशा की तरह अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ ही भावुकतावश उनकी आँखों में आंसू झलक पड़े थे… ।

ये दृश्य हम सभी को भी भावुक बना रहा था……! मेरी भी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे… और साथ ही सभी को समझाते भी जा रही थी।
ना जाने कैसा अहसास था वो…… आँसू रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे…और अचानक !! सभी कुछ धुंधला सा होने लगा… सारे दृश्य आँखों से ओझल से होने लगे थे….. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है….?
अपने बड़े बेटे की अस्पष्ट सी आवाज़ कानों में सुनाई देने लगी थी अचानक,… “मम्मी… मम्मी!… क्या हुआ…?. …..उठो मम्मी क्या हुआआआआआ,…. आप रो क्यों रही हो ?”

थोड़ी सी चेतना लौटी तो खुद को… अपने घर पर ही बिस्तर पर लेटा हुआ पाया… पास ही सो रहा बेटा भी परेशान दिख रहा था और आंसू भरे लगातार मुझसे पूछे जा रहा था….!!
मेरी आँखों से आंसू अभी भी बह रहे थे.. रोते – रोते हिचकी सी बंधी हुई थी,… बेटे को गले से लगा…. बस इतना ही मुंह से निकल पाया…. “काश!….. कल की खबर झूठी होती बेटा…. बाबा ज़िन्दा होते तो आज हम सब उनका 76वां जन्मदिन मना रहे होते”…..
काश! समय को रोक कर उसी समय से सब कुछ ठीक कर पाती मैं…. कहाँ संभव है ये कुछ भी …. पहले जैसा कर पाना.. काश! ये संभव होता…!
बहुत कठिन समय है हमारे अपनो के बिना जीना….. पर जीवन में सत्य को स्वीकार करना और वर्तमान में ही जीना होता है।

© ® उषा शर्मा

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