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2 Jul 2016 · 11 min read

कहानी—— कर्जदार

कर्ज़दार–कहानी

“माँ मैने तुम्हारे साम्राज्य पर किसी का भी अधिकार नही होने दिया इस तरह से शायद मैने दूध का कर्ज़ चुका दिया है”—- प्रभात ने नम आँखों से माँ की तरफ देखा और जा कर पुलिस वैन मे बैठ गया।

अभी वो दुनिया को पहचान भी नही पाया था कि उसके पिता एक दुर्घटना मे मारे गये। माँ पर तो जैसे दुखों का पहाड टूट पडा। घर मे कोई कमाने वाला नही था मगर उसके मामा की कोशिशों से उसकी माँ को पिता की जगह दर्जा चार की नौकरी मिल गयी। प्रभाट का एक भाई और एक बहन थे। प्रभात सब से बडा था। उसकी माँ ने इतनी कम तनख्वाह मे भी तीनो भाई बहनों को उच्च शिक्षा दिलवाई। प्रभात को वकालत छोटे को इन्जनीयर और बेटी को बी एड करवाई। छोटा तो पढाई के बाद विदेश चला गया आगे पढने के लिये बहन ससुराल चली गयी। उसके बाद प्रभात की शादी मीरा से बडी धूम धाम से कर दी।

मीरा एक पढी लिखी सुन्दर और सुशील लडकी थी। उसने आते ही घर का सारा काम सम्भाल लिया मगर घर की व्यवस्था बाजार का काम लेन देन आदि सब माँ ही देखती थी आज घर मे कौन सी सब्जी बनेगी क्या चीज़ आयेगी आदि सब माँ के हुक्म से चलता था। वो अब रिटायर भी हो चुकी थी और जब शादी के बाद बीमार हुयी तब से कुछ कमजोर भी हो गयी थी। बाजार आते जाते ही थक जाती थी। घर का काम तो बहु के आते ही छोड दिया था। शायद ये सास का जन्म सिद्ध अधिकार होता है कि काम ना करे मगर घर मे हुक्म उसी का चले।

प्रभात ने सोचा कि माँ को घर चलाते हुये सारी उम्र बीत गयी अब उन्हें इस भार से मुक्ति मिलनी चाहिये। फिर उनकी सेहत भी ठीक नही रहती। उसने अकेले मे मीरा से बात की

“मीरा बेचारी माँ अकेले मे घर का बोझ ढोते थक गयी है। अब तुम आ गयी हो तो उन्हें आराम देना चाहिये।घर का काम तो तुम ने सम्भाल लिया है बाज़ार का काम हम दोनो मिल कर कर लिया करेंगे। आखिर ये घर अब तुम्हारा ही है।”

मीरा सुशील लडकी थी। उसने हाँ मे हाँ मिलाई तो प्रभात खुश हो गया।

अगले दिन वो शाम को दफ्तर से आ कर माँ के पास बैठ गया–

“माँ अपने बडे कष्ट झेल लिये अब तुम्हारी बहु आ गयी है,अब घर का सारा भार ये सम्भालेगी मै अपनी तन्ख्वाह इसे दे देता हूँ। बाजार का काम भी ये देख लेगी। आपको जो कुछ भी चाहिये बैठे बैठे हुक्म करें हाजिर हो जायेगा।अब आपके आराम के दिन हैं।”और उसने अपनी तन्ख्वाह मीरा के हाथ पर रख दी। प्रभात ने सोचा कि माँ खुश हो जायेगी कि उसके बहु बेटे उसका कितना ध्यान रखते हैं।

प्रभात ने सोचा कि माँ खुश हो जायेगी कि उसके बहु बेटे उसका कितना ध्यान रखते हैं।——-

मगर माँ सुन कर सन्न रह गयी–

: बेता तेरी पत्नि आ गयी तो क्या घर मे मेरी कोई अहमियत नही रह गयी? अभी बेटी की शादी करनी है घर के और कितने काम है क्या अब इस उम्र मे बहु के आगे हाथ फैलाऊँगी?” माँ गुस्से मे भर गयी।

प्रभात एक दम सावधान हो गया वो समझ गया कि माँ अपने साम्राज्य पर किसी का अधिकार नही चाहती। आखिर कितने यत्न से उन्हों ने अपने इस साम्राज्य को संजोया था। इसकी एक एक ईँट उनके खून पसीने से सनी है।वो कैसे भूल गया कि माँ को ये स्वीकार नही होगा। ये घर उनका आत्मसम्मान , गर्व और जीवन था। शायद माँ ठीक ही तो कह रही है वो क्यों मीरा के आगे हाथ फैलाये । शायद प्रभात ने फैसला लेने से पहले इस दृष्टीकोण से सोचा ही नही था। एक अच्छे और आग्याकारी पुत्र होने के प्रयास मे वो कितनी बडी भूल कर गया था। उसने जल्दी से तन्खवाह रमा के हाथ से ले कर माँ के हाथों मे सौंप दी। वो माँ की भावनाओं और एकाधिकार को चोट नही पहुँचाना चाहता था।

मीरा को भी एक झटका लगा। उसने तो समर्पित भाव से इस जिम्मेदारी को सम्भालने के लिये इसमे हामी भरी थी न कि माँ के अधिकार छीनने के लिये। फिर भी उसे माँ की ये बात अच्छी नही लगी कि वो बहु के आगे हाथ फैलायेगी। मीरा ने सोचा अब वो भी तो अपनी जरूरतों के लिये माँ से ही माँगती है जब कि उसका पति कमाता है। फिर भी वो चुप रही और तन्खवाह माँ जी को दे दी।लेकिन अनजाने मे ही उसने सास बहु के रिश्ते मे एक दरार का सूत्रपात हो चुका था।

मीरा पहले अपनी जिस् इच्छा को मन मे दबा लिया करती थी धीरे धीरे वो उसके होठों तक आने लगी। माँ से जेब खर्च के लिये पैसे माँगते उसे अब बुरा लगने लगा। जब उसे माँ बेगाना समझती है तो वो क्यों इस घर की परवाह करे। शादी के बाद उसका कितना मन था कि वो दोनो कहीं घूमने जायें मगर माँ के सामने बोलने की कभी हिम्मत नही हुयी। माँ हमेशा सुनाती रहती थी बडी मुश्किल से घर चल रहा है। एक दिन उसने प्रभात से कहा

:”प्रभात एक वर्ष हो गया हमारी शादी को हम कहीं घूमने नही गये।चलो कुछ दिन कहीं घूम आते हैं।:

:”मैं मा से बात करूँगा।अगर मान गयी तो चलेंगे।”

मीरा को उसका ये जवाब अच्छा नही लगा। क्या हमारा इतना भी हक नही़ कि कही घूम आयें।

अगले दिन प्रभात ने माँ से बात की तो माँ ने” देखूँगी” कह कर टाल दिया। माँ को चिन्ता थी कि अगले महीने बेटी की M.B.A. की फीस जमा करवानी है। लोन की किश्त देनी है। जितना पैसा था छोटे को विदेश भेजने मे लगा दिया। फिर अभी बेटी की शादी भी करनी है। इस तरह की फिजूलखर्ची के लिये कहाँ पैसा है। यूँ भी माँ कुछ सचेत हो गयी थी। उसे लगा मीरा इसी लिये चाहती थी कि खर्च उसके हाथ मी आये तो वो अपनी फिजूलखर्ची करे। कहीं उसने बेटे को पूरी तरह वश मे कर लिया तो तो घर उजड जायेगा इस लिये उन्हें बाहर अकेले घूमने की आज़ादी देना नही चाहती थी अब उसे मीरा का समर्पणभाव झूठा लगने लगा था।

प्रभात ने मीरा से दो तीन महीने बाद जाने का वायदा कर लिया

धीरे धीरे सास बहु के बीच शीत युद्ध् सा चल पडा अविश्वास की नींव बनने लगी थी।और् दो तीन माह मे ही ये तल्खी पकडने लगा। मीरा को अपने लिये जब भी कोई चीज लेनी होती तो सास से पैसे माँगने पडते थे।कहीं किसी सहेली के घर जाना तो भी आग्या ले कर कभी दोनो को पिक्चर देखने जाना होता तो माँ की इजाजत लेकर वो भी कई मार माँ टाल देती कि खर्च बहुत हो गया है। फिर कभी देख लेना। मीरा ने चाहे कभी माँ को किसी बात के लिये जवाब नही दिया कभी ऊँचे मे बात नही की अनादर नही किया। मगर सास बहु की अस्तित्व की लडाई शुरू हो चुकी थी।

अब मीरा को नौकरी मिल गयी थी मीरा खुश थी मगर माँ चिन्तित। अब घर मे काम काज की भी समस्या आने लगी प्रभात ने कहा भी कि नौकर रख लेते हैं मगर माँ ने कहा

“क्या नौकरों के सिर पर भी कभी घर चलते हैं? सफाइयों वाली लगा लो बाकी काम के लिये नही। मैने भी तो इतने साल नौकरी की 3-3 बच्चे पाले मगर किसी काम के लिये कोई नौकरानी नही लगायी। माँ ने गर्व से सिर उठया मगर प्रभात को वो गर्व से अधिक दर्प लगा मगर वो कुछ नही बोला और मीरा भी पैर पटकती हुयी अन्दर चली गयी।

प्रभात महसूस कर रहा था कि माँ नाज़ायज ही मीरा पर दबाव बना रही है। अपने जमाने से तुलना करना कितना सही है ? उसे माँ का ये व्यवहार अच्छा नही लगा। आजकल और पुराने रहन सहन मे कितना अन्तर है? आज सफाई.बर्तन खाना पीना कितना बदल गया है पिछले जमाने मे एक कमरे मे लोग गुजारा कर लेते थी आज सब को अलग बेड रूम चाहिये। घर बडा सामान अधिक तो देखभाल भी उतनी ही बढ गयी है खाना पीना् रहन सहन उतना ही हाई फाई होगया है।

मीरा नौकरी के साथ साथ घर का पूरा काम सम्भाल रही थी सफाई वाली लगा ली थी मगर बर्तन कपडे सब उसे ही करने पडते थे। कई बार मीरा की तबीयत सही नही होती तो माँ को या प्रभात की बहन को काम करना पडता तो घर मे तूफान आ जाता बहन के पास पढने का बहाना और माँ के पास बुढापे का। मीरा सोचती कि कभी तो आराम उसे भी चाहिये फिर क्या मेरी कमाई का आनन्द ये लोग भी तो उठा रहे हैं।-
छोटी छोटी बातों से घर मे कडुवाहत सी पसरने लगी। कभी खाने पीने को ले कर कभी घर के रख रखाव पर तो कभी मीरा के जेब खर्च और कपडों आदि पर खर्च को ले कर। नौकरी से पहले मीरा ने कभी नये कपडों की जिद्द नही की क्यों कि घर मे रहती थी और शादी के अभी बहुत कपडे थी मगर अब नौकरी करती थी रोज उसे बाहर जाना पडता तो ढंग के कपडे पहनने पडते फिर उसे ये भी था कि अगर वो कमाती है तो क्या अपनी मर्जी के कपडे भी नही पहन सकती? उसकी देखा देखी ननद भी जिद्द पर उतर आती। कभी मायके जाने को कहती तो झगडा। कभी मायके मे शादी व्याह पर किये जाने वाले खर्च को ले कर झगडा। मतलव कुछ न कुछ घर मे चलता ही रहता।

मीरा प्रभात से शिकायत करती मगर मीरा के सही होने पर भी प्रभात माँ को कुछ नही कह पाता। जब कभी रोज़ रोज़ के झगडे से तंग आ जाता तो मीरा को ही डाँट देता। प्रभात की असमर्थता, घर का काम दफ्तर की चिन्तायें इन सब से मीरा चिडचिडी सी हो गयीसोचती कल को बच्चा होगा तो कैसे सब कुछ सम्भाल पायेगी? प्रभात से भी अधिक सहयोग की आशा नही थी घर मे पहले ही उसे जोरू का गुलाम समझा जाता था कि उसी ने मीरा को सिर चढा रखा है।फिजूल खर्ची करती है आदि। सब से अधिक बात जो उसे कचोटती वो सास का ताना —- दो साल से उपर हो गये शादी को मगर अभी तक मुझे पोटा नही दे पाई।—

एक दिन सास ने फिर यही ताना दे दिया —

“बहु दो साल हो गये अभी कुछ नही हुया आपनी जाँच करवाओ।”

“माँ जी पहले अपने बेटे की जाँच करवायें”आक्रोश से मीरा की जुबान भी चल निकली।

रात प्रभात घर आया तो माँ ने खूब नमक मिर्च लगा कर उसे सारी बात बताई।

प्रभात ने मीरा की पूरी बात सुने बिना मीरा को माँ के सामने ही डाँट दिया।

” तुम मा का अनादर करो या उनके साथ बहस करो ये मै कभी भी बर्दाश्त नही कर सकता।” तुम्हें पता नही माँ ने हमे किन मुसीबतों से पाला है।”पर प्रभात इसका खामियाजा क्या मुझे ही भुगतना पडेगा? तुम मेरी बात सुने बिना ही क्यों मुझे डाँटने लगते हो? आखिर कब तक मै ये बर्दाश्त करती रहूँगी? मेरे माँ बाप ने भी मुझे इसी तरह पाला है। तो क्या वो मुझ से कोई प्रतिकार माँगते हैं । तुम्हें कितना प्यार देते हैं क्या उन्हों ने कभी कुछ कहा है तुम्हें जबकि तुम उनके कई महत्वपूर्ण समारोहों मे भी शामिल नही हुये, मेरी बहन के विवाह पर दो घन्टे के लिये आये थे। क्या सब फर्ज लडकी के लिये है? फिर भी मैने हर कोशिश की है इस घर को चलाने के लिये मगर मुझे आज तक तुम्हारी माँ ने अपनी बेटी की तरह नही समझा। हद हो चुकी है। अब इस तरह मै और नहीं जी सकती— माँ के सामने माँ के दोश पर भी उसे ही डाँटा गया बस यही उसे सहन नही हुया।

“देखो मै रोज़ की इस किच किच से तंग आ चुका हूँ। अगर तुम मेरी माँ और बहन से एडजस्ट नही कर सकती तो अपने मायके चली जाओ।”

प्रभात ने ना चाहते हुये भी कह दिया। वो जानता था कि इसमे इतना दोश मीरा का नही । माँ को ऐसी कडवी बात इस तरह नही कहनी चाहिये थी मगर वो माँ के आगे बोल नही सका। उसे दुख हुया वो रात भर सो नही पाया मीराको मनाना चाहता था मगर उसे पता था कि वो पनी इस ज्यादती का क्या जवाब देगा।—- क्या माँ को समझाये? मगर नही माँ तो मीरा से भी अधिक गुस्सा करेगी वो माँ को भी दुखी नहीं करना चाहता था।। माँ और पत्नि एक नदी के दो किनारे थे और वो इन दोनो के बीच एक सेतु था मगर ममता की डोरियों पर झूल रहा था।सेतु के धरातल का कण- कण माँ के दूध का कर्ज़दार था। मगर पत्नी जो उसके लिये अपना सब कुछ छोद कर आयी थी उसके प्रति अपने फर्ज़ को भी जानता था। मगर उसे समझ नही आ रहा था कि करे तो क्या करेिसी लिये कभी जब पत्नि सेतु के एक छोर पर आ खडी होती और दूसरे पर माँ तो वो डर से थरथराने लगता। वो पत्नी के कदम वहीं रोक देता। वो ये भी जानता था कि वो पत्नी से अन्याय कर रहा है। पत्नी भी उस के प्यार और अधिकार की उतनी ही हकदार है जितनी माँ मगर अपनी बेबसी किस से कहे। दोनो पाटों की बीच वो छटपटा रहा था। उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे़? किसे नाराज करे और किसे खुश करे।

और उधर मीरा? उसने ससुराल मे आते ही सब को कितना प्यार दिया घर की जिम्मेदारी को सम्भाला। सास को कभी काम नही करने दिया। मगर अब जब उसे जरूरत है तो कोई उसकी तरफ ध्यान नही देता। उसके भी कुछ सपने थे। मगर घर की जिम्मेदारियों के बीच उसने अपने मन को मार लिया था। लेकिन अब हद हो चुकी है ।प्रभात को भी हर बात मे मेरा ही कसूर नज़र आता है। । तो फिर जीना किस के लिये । माँ बाप को भी क्या बताये? वो उसे यही कहेंगे कि जिस तरह भी हो एडजस्ट करो। फिर माँ और बाप खुद अपने बेटे पर आश्रित हैं भाभियों के ताने सुनने से अच्छा है वो उनको कुछ भी न बताये। दो दिन दोनो की बोलचाल बन्द रही। वो जान चुकी थी कि इस एक छत्र साम्राज्य मे उसका पति उसके साथ न्याय नही कर सकता।वो घुट घुट कर जीना नहीं चाहती थी।

दूसरे दिन रात को मीरा ने कीडे मारने की दवा खा कर अपना जीवन समाप्त कर लिया।

प्रभात उसकी माँ बहन पर केस बन गया मगर सभी से ये ब्यान दिलवा दिये कि माँ और बहन उस दिन घर मे नहीं थी प्रभात ने भी यही ब्यान दिये। दूसरे दिन रात को मीरा ने कीडे मारने की दवा खा कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। प्रभात ने किसी तरह माँ और बहन को बचा कर शायद दूध का कर्ज़ उतार दिया था।

वो पोलिस वैने मे बैठे हुये सिर्फ मीरा के बारे मे सोच रहा था।जो उसके प्यार मे बन्धी अपने माँ बाप अपनाघर छोड ल्कर उसके पास आयी थी — उसके भरोसे एक निस्सहाय गाय की तरह। उसने उसकी कितनी इच्छाओं का गला घोंटा था ताकि माँ नाराज़ न हो।, जहाँ तक कि कितनी बार उसे डाँटा फटकारा भी था। क्यों वो माँ को कभी कुछ नही कह सका। आज इसी कारण वो मीरा की मौत का कारण बन बैठा।

वो सोच रहा था—- अब वो अपनी पत्नि का कर्ज़दार है। माँ का कर्ज़ तो उसने चुका दिया है।उसका एक छत्र राज्य बचा कर । अब वो जैसे चाहे रह सकती है। कोई उससे उसका कुछ नही छीनेगा।

और अचानक उसने अपने साथ बैठे सिपाही की पिस्तौल छीनी और खुद को गोली मार ली—— “मीरा मैं आ रहा हूँ तुम से अपने गुनाहों की माफी माँगने।”

क्या आदमी की ऐसी ज़िन्दगी औरत के दुख से भी दर्दनाक नही? क्यों वो खुद को माँ और पत्नी के बीच असहाय पाता है? आप सब क्या सोचते हैं इस समस्या के बारे मे।

और सब सोच रहे थे कि एक माँ बेटे के लिये जो संघर्ष करती है उसका खामिआज़ा अपनी बहु से क्यों बसूलना चाहती है। अगर बेटों की माँयें इतनी बात समझ जायें तो कितने ही घर तबाह होने से बच जायें। समाप्त।

नोट– ये कहानी मैने वीर बहुटी पुस्तक मे इसी रूप मे छपवाई थी मगर एक बार दैनिक जागरण को भेजी तो उसके सम्पादके श्री अजय शर्मा जी ने इसका अन्त बदल दिया कि इसका अन्त प्रभात की मौत नही बल्कि सजा तक ही सीमित रहना चाहिये। ये 2006 की बात है मै उन दिनो अमेरिका मे थी और मैने उनसे कह दिया कि जैसे वो चाहें अन्त कर दें। आज मुझे वो अखबार नही मिला ,इस लिये जस की तस यहाँ लिख दी। मगर इसमे अन्त जो भी हो दुखद ही रहेगा। ये असल मे भी इसी तरह थी कहानी केवल पात्र और कुछ घटनायें बदली हैं।

Language: Hindi
3 Comments · 1180 Views
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