Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Oct 2018 · 2 min read

कहाँ हो तुम गोबिन्द … ?

कहाँ हो तुम गोबिन्द

क्यूँ नहीं देखते

खुलती नहीं क्यूँ , तुम्हरी आँख

क्या चिर निंद्रा में सोये हो तुम

या किसी सहचरी संग,

प्रेम प्रसंग में खोए हो तुम

द्रोपदीयों की भीषन चीत्कार

कर रही है हाहाकार

दिग दिगंत में गूंज रहे हैं

उनके अन्तस् की पुकार

फिर किस बांसुरी की तान में

बेसुध हो किस मधुर गान में

या सोये हो किसी समसान में

या खोए हो तुम किसी ध्यान में

सुनते नहीं तुम क्यूँ रुदन गान

कहाँ हो

कहाँ हो तुम गोबिंद

तुम ही तो द्रोपदी के सखा

मित्रता का जिसने मीठा फल था चखा

तुम ने ही तो दिए थे बचन

लौटूंगा मैं हर जन्म-जन्म

जब भी कोई द्रोपदी,मेरी सखी

होगी कहीं किसी मोड़ पे दुखी,

‘या’ घसीटी जाएगी, दुःशासनों के हाँथ,

जंघा पर बैठाई जाएगी अपमानों के साथ

या नोची जाएगी पशुता से बलात

लौटूंगा मैं हर बार अपनी मित्रता के साथ

फिर मौन क्यूँ हो, क्या तुम भी

पकड़े गए हो, जकड़े गए हो

शासन के दंभी हाँथों से बलात

तुम्हारे भी हाँथों पैरों में लोहा

डाल रखा हो जैसे, दुष्टता के साथ

अंधा राजा गूंगा दरबारी,बीके हुए अधिकारी

बरबस बांधते हैं निर्दोषों को जैसे

तो लो… अब तोड़ रही हूँ मैं भी

हर बंधन तुम से जग के खेवन हार

नहीं पकडना झूठे आश कि डोर

झूठा निकले जिससे विश्वास हरबार

उठो द्रौपदी अब न आवेंगे वो

हाँथ बढ़ा न बचावेंगे वो

समेटो अपने बिखरे बस्त्र

कस के बांधो केसों में तुम अस्त्र

रणचंडी का करो श्रृंगार

कर दो दुष्टों पे प्रचण्ड वार

युद्ध है, युद्ध तुम्हें करना ही होगा

उठ के समर को सजना ही होगा

रणभेरी बज चुकी, उठ के अब तुम्हें

हर हाल में सखी लड़ना ही होगा

जिस ने इज्जत नंगी की उन हाँथों को,

अब तुम्हें जख्मी करना ही होगा

उठो द्रोपदी, अब तुम को

अबला से सबला बनना ही होगा।

⇝ सिद्धार्थ ⇜

Language: Hindi
14 Likes · 451 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
अंसार एटवी
सपने तेरे है तो संघर्ष करना होगा
सपने तेरे है तो संघर्ष करना होगा
पूर्वार्थ
धूम भी मच सकती है
धूम भी मच सकती है
gurudeenverma198
सिर्फ उम्र गुजर जाने को
सिर्फ उम्र गुजर जाने को
Ragini Kumari
लड़ते रहो
लड़ते रहो
Vivek Pandey
आ रहे हैं बुद्ध
आ रहे हैं बुद्ध
Shekhar Chandra Mitra
तबकी  बात  और है,
तबकी बात और है,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
मार गई मंहगाई कैसे होगी पढ़ाई🙏✍️🙏
मार गई मंहगाई कैसे होगी पढ़ाई🙏✍️🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
Sanjay ' शून्य'
चाँद सा मुखड़ा दिखाया कीजिए
चाँद सा मुखड़ा दिखाया कीजिए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
व्यंग्य कविता-
व्यंग्य कविता- "गणतंत्र समारोह।" आनंद शर्मा
Anand Sharma
जिंदगी की सड़क पर हम सभी अकेले हैं।
जिंदगी की सड़क पर हम सभी अकेले हैं।
Neeraj Agarwal
■ अब भी समय है।।
■ अब भी समय है।।
*Author प्रणय प्रभात*
रामभक्त शिव (108 दोहा छन्द)
रामभक्त शिव (108 दोहा छन्द)
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
*कागभुशुंडी जी नमन, काग-रूप विद्वान (कुछ दोहे)*
*कागभुशुंडी जी नमन, काग-रूप विद्वान (कुछ दोहे)*
Ravi Prakash
मेरी निगाहों मे किन गुहानों के निशां खोजते हों,
मेरी निगाहों मे किन गुहानों के निशां खोजते हों,
Vishal babu (vishu)
एक शख्स
एक शख्स
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
रससिद्धान्त मूलतः अर्थसिद्धान्त पर आधारित
रससिद्धान्त मूलतः अर्थसिद्धान्त पर आधारित
कवि रमेशराज
समलैंगिकता-एक मनोविकार
समलैंगिकता-एक मनोविकार
मनोज कर्ण
ऋतु शरद
ऋतु शरद
Sandeep Pande
चली ⛈️सावन की डोर➰
चली ⛈️सावन की डोर➰
डॉ० रोहित कौशिक
सुबह की किरणों ने, क्षितिज़ को रौशन किया कुछ ऐसे, मद्धम होती साँसों पर, संजीवनी का असर हुआ हो जैसे।
सुबह की किरणों ने, क्षितिज़ को रौशन किया कुछ ऐसे, मद्धम होती साँसों पर, संजीवनी का असर हुआ हो जैसे।
Manisha Manjari
23/56.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/56.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
देह से देह का मिलन दो को एक नहीं बनाता है
देह से देह का मिलन दो को एक नहीं बनाता है
Pramila sultan
*श्रम साधक *
*श्रम साधक *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बिखरे अल्फ़ाज़
बिखरे अल्फ़ाज़
Satish Srijan
मुक्तक।
मुक्तक।
Pankaj sharma Tarun
मन और मस्तिष्क
मन और मस्तिष्क
Dhriti Mishra
नदी जिस में कभी तुमने तुम्हारे हाथ धोएं थे
नदी जिस में कभी तुमने तुम्हारे हाथ धोएं थे
Johnny Ahmed 'क़ैस'
गज़ल
गज़ल
करन ''केसरा''
Loading...