Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Oct 2017 · 4 min read

कस्तूरी की तलाश (पाँच रेंगा)

__________________________________

कस्तूरी की तलाश
( विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह )
अयन प्रकाशन दिल्ली
संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

रेंगा क्र. 01

0
जीवन रेखा
रेत रेत हो गई
नदी की व्यथा □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
नारी सम थी कथा
सदियों की व्यवस्था □ चंचला इंचुलकर सोनी

     सदा सतत
     यात्रा अनवरत
     जीवन वृत्ति  □ अलका त्रिपाठी “विजय”
     मृगतृष्णा समान
     वेदना की तिमिर  □ देवेन्द्रनारायण दास

तोड़ेगी स्त्री ही
फिर बहेगी धारा
करूणा बन  □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
लाँघो पथ सदा ही
हरो भव की बाधा  □ रवीन्द्र वर्मा

     अकथ्य पीड़ा
     अनगिनत व्यथा
     नारी नियति  □ अल्पा वलदेव तन्ना
     तृप्ति अतृप्ति कथा
     नारी नदी की व्यथा  □ अलका त्रिपाठी   “विजय”

जीवन भर
नारी दौड़ती नदी
आशा के पथ  □ देवेन्द्र नारायण दास
निर्मल श्वेत धारा
बाँध रही कु प्रथा  □ अल्पा वलदेव तन्ना

     बहो सरिता
     नारी मन व्यथा सी
     करो शुचिता  □ रवीन्द्र वर्मा
     गूँजेगा मधु स्वर
     तरल होगी शिला । ■  डाॅ. अखिलेश शर्मा
  
–संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”–01–
___________________________________

___________________________________

रेंगा क्र. 02                       

शोक मनाते
पतझड़ में पत्ते
शाख छोड़ते □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
नव कोंपल रुपी
नवल वस्त्र पाते  □ पुरोहित गीता

     फिर हँसते
     हरे भरे हो जाते
     वो मुस्कराते □ मनिषा मेने वाणी
     प्रकृति चक्र पुनः
     नव काया धरते □ किरण मिश्रा

शाखें पुरानी
नई आस संजोये
करें स्वागत □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
कोमल किसलय
बसंत सहलाते □ ऋता शेखर “मधु”

     ज्यों जीर्ण शीर्ण
     अवसान देह का
     नव जीवन  □ अलका त्रिपाठी “विजय”
     प्रकृति का नियम
     सत्य परिवर्तन □ नीलम शुक्ला

रचनाकर्म
संसार का नियम
सृजन धर्म □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
उसका है करम
रख ले तू भरम □ हाॅरून वोरा

     परिवर्तन
     पुनः देह धरन
     सुपल्लवन □ रवीन्द्र वर्मा
     सूखा फिर हो हरा
     जीवन सनातन  ■ दाता राम पुनिया

   संपादक :  प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
__________________________________

__________________________________

रेंगा क्र. 03                    

0
धूप से धरा
दरकने लगी है
बढ़ता ताप  □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
मुख खोल बैठी है
मेघ बुझाओ प्यास  □ नंद कुमार साव

     तृप्ति की आस
     वसुधा का विलाप
     सूखी सी घास  □ अल्पा जीतेश तन्ना
     धधक रहा सूर्य
     झेलें सभी संताप  □ नीतू उमरे

तपती धूप
परेशान हैं सब
कोई न खुश  □ धनीराम नंद
मौसम के तेवर
सहमे हम आप  □ अविनाश बागड़े

     सह न पाए
     सूरज के तेवर
     प्रचंड वेग □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
     कारण हम आप
     काटे वृक्ष जो आज  □ आर्विली आशेन्द्र
लूका

संतप्त पाखी
जल बिन उदास
चातक आस  □ किरण मिश्रा
व्यभिचार गरल 
पी रही मन मार  □ अनिता शर्मा

     तृषित धरा
     बुझती नहीं प्यास
     आस आकाश  □ अलका त्रिपाठी “विजय”
     कृषक का संताप
     भविष्य अभिशाप । □ रवीन्द्र वर्मा
    
    संचालक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
___________________________________

___________________________________

रेंगा क्र. 04                     

0
मन गुलाब
झुलसाती धूप ने
जलाये ख़्वाब  □ प्रदीप कुमार दाश दीपक
कैसा ये आफ़ताब
चाहूँ मैं माहताब  □ अविनाश बागड़े

     ठंडी सी छाँव
     खिलने लगे फिर
     कली की आब  □ सुधा राठौर
     नेह घन लायेंगे
     खुशियों का सैलाब  □ मधु सिंघी

ढलेगी शाम
डोलेगी जो पुरवा
मिले आराम  □ इन्दु सिंह
सूरज पिघलेगा
बुझेगी तब आग  □ नीतू उमरे

     मन क्रोधित
     भविष्य का है ख़्याल
     हाल बेहाल  □ मनिषा मेने वाणी
     तन तड़पे मीन
     सूखे नयन आब !  □ किरण मिश्रा

तन तपन
चाहे शीतल छाँव
स्वप्न के गाँव  □ रवीन्द्र वर्मा
धूप कर जा पार
ख़्वाब होंगे साकार  □ पूनम राजेश तिवारी

     मन है प्यासा
     शोषित अभिलाषा
     जीने की आशा  □ डाॅ. अखिलेश शर्मा
     दरकते रिश्तों को
     संजीवनी की आस ।  ■ विष्णु प्रिय पाठक

     संपादक : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
__________________________________

__________________________________

रेंगा क्र. 05                      

0
मृग सा मन
कस्तूरी की तलाश
छूटा जीवन  □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
ये आस बनी अरि
मृगतृष्णा गहरी  □ अंशु विनोद गुप्ता

     प्रयासरत
     रहती हरदम
     आशा न छोड़ी  □ आर्विली आशेन्द्र लूका
     मायावी अठखेली
     स्व अबूझ पहेली  □ चंचला इंचुलकर सोनी

धरी की धरी
अपेक्षाएँ गठरी
टूटा स्मरण  □ अल्पा वलदेव तन्ना
लालसाओं के नाग
छोड़े नहीं दामन  □ मीनाक्षी भटनागर

     स्वयं से परे
     भ्रम का बुना जाल
     उलझा नादाँ  □ शुचिता राठी
     अंधकूप सी आशा
     सदा मिलती निराशा  □ मनोज राजदेव

लोभ अगन
अकुलाया सा मन
जलता तन  □ इन्दु सिंह
थके पाँव फिर भी
अथक भटकन  □ किशोर मत्ते
     बिना थाप के
     बजे यूँ चहुँ ओर
     मन मृदंग  □ गंगा पांडेय “भावुक”
     तृषा का संवरण
     मोक्ष प्रभु शरण । ■ किरण मिश्रा

   प्रस्तुति : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 580 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
....प्यार की सुवास....
....प्यार की सुवास....
Awadhesh Kumar Singh
💐अज्ञात के प्रति-98💐
💐अज्ञात के प्रति-98💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
शुद्ध
शुद्ध
Dr.Priya Soni Khare
हुनर पे शायरी
हुनर पे शायरी
Vijay kumar Pandey
......तु कोन है मेरे लिए....
......तु कोन है मेरे लिए....
Naushaba Suriya
मन का आंगन
मन का आंगन
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
विशेष दिन (महिला दिवस पर)
विशेष दिन (महिला दिवस पर)
Kanchan Khanna
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
डरने लगता हूँ...
डरने लगता हूँ...
Aadarsh Dubey
*जिस सभा में जाति पलती, उस सभा को छोड़ दो (मुक्तक)*
*जिस सभा में जाति पलती, उस सभा को छोड़ दो (मुक्तक)*
Ravi Prakash
#गीत
#गीत
*Author प्रणय प्रभात*
फागुन की अंगड़ाई
फागुन की अंगड़ाई
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
2734. *पूर्णिका*
2734. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जेठ कि भरी दोपहरी
जेठ कि भरी दोपहरी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
सफलता
सफलता
Vandna Thakur
ज़रा सी बात पे तू भी अकड़ के बैठ गया।
ज़रा सी बात पे तू भी अकड़ के बैठ गया।
सत्य कुमार प्रेमी
देश हमारा भारत प्यारा
देश हमारा भारत प्यारा
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
"यह कैसा नशा?"
Dr. Kishan tandon kranti
पापा मैं आप सी नही हो पाऊंगी
पापा मैं आप सी नही हो पाऊंगी
Anjana banda
खुद्दार
खुद्दार
अखिलेश 'अखिल'
सुख दुख जीवन के चक्र हैं
सुख दुख जीवन के चक्र हैं
ruby kumari
महताब जमीं पर
महताब जमीं पर
Satish Srijan
तब याद तुम्हारी आती है (गीत)
तब याद तुम्हारी आती है (गीत)
संतोष तनहा
आभा पंखी से बढ़ी ,
आभा पंखी से बढ़ी ,
Rashmi Sanjay
मैं ना जाने क्या कर रहा...!
मैं ना जाने क्या कर रहा...!
भवेश
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
पूर्वार्थ
बांते
बांते
Punam Pande
कामयाबी का
कामयाबी का
Dr fauzia Naseem shad
Loading...