कशमकश
शर्दी में सुबह की नींद, बड़ी गहरी हो गयी है
मेरी रजाई की नीयत, बड़ी शहरी हो गयी है ।।
छत पर ना टहल , बगैर घूंघट के
सड़क पर कारो में टक्कर, ज्यादा हो गयी है ।।
कल शाम को एक मर गया, एक घायल है
तेरी चर्चा , हर गली हर मुहल्ले में हो रही है ।।
गलतफही छोड़ दे , मैं बंधा हूँ
मैं हवा हूँ , हर जगाह हूँ ।
भीगे हुए बालों से, पानी झटकना छोड़ दे
हर दिन मेरी भूख, और भी गहरी हो रही है।।
ख्वाहिशें कम कर ले अपनी, मेरे हिसाब से
मेरे बटुए की तबियत, ख़राब हो रही है ।।
नकली हार, कंगन, पायल जो पहनी है उतार दे
पुलिस की नज़र, अब इधर हो रही है ।।