“”कवि होते रस की धार””
कवि मंच पर है आता, कविता अपनी सुनाता।
हालातों को है बताता, प्यार जनता से है पाता।
झूमता कोई और गाता ,कोई ताली खूब बजाता।
कवि होते रस की धार, पा सके न कोई पार।।
वह धीर वीर बन आता रणभूमि में ले जाता।
करुणा भी उसने गाई,श्रृंगार की सैज सजाई।
हास्य की दे फुलझड़ियां ,मिलता हर्ष अपार।
कवि होते रस की धार ,पा सके न कोई पार।।
व्यंग के बाण चलाएं, लगे जिसको वह शर्माएं।
कोई धमकाने आ जाए ,कवि अपना धर्म निभाएं।
वात्सल्य से ममता लुटाएं,सब मानते है आभार।
कवि होते रस की धार, पा सके न कोई पार।।
अद्भुत उनकी लीला, भयानक बड़ा हटीला।
रस कोई न उनसे छूटे, शब्द सजाते अनूठे।
करूं नमन मै उनको, शांत बड़ा मजेदार।
कवि होते रस की धार, पा सके न कोई पार।।
आओ मित्रों आओ, मंच कवि के सजावो।
झूमो तुम भी गाओ, उन्नत देश बनाओ।
अनुनय है जो ,हम सब का आधार।
कवि होते रस की धार, पा सके न कोई पार।।
राजेश व्यास अनुनय