कवि मन की पीर
काश तुम मेरे करीब होती…..?
काश तुम होती…
श्रीमन् हृदय को व्यथित
करने वाले इन मार्मिक भावों ने
निःशब्द कर दिया ।
तारीफ भी नहीं कर सकता
कारण भावनायें आहत है
लेखक की
मन चित्कार रहा
शब्द भावविह्वल हैं
वेदना वेधित है
लिखते वक्त
कलम भी रो पड़ा होगा
अश्रु बने होंगे मसी
कागद भी समेट न सका होगा
इस हृदयविदारक पीर को
लेखक के अधिर मन को
जीवन में घटित यह त्रासदी
वाकई असहनीय
अकल्पनीय, अप्रत्याशित
दुखदायी, अत्यंत पीड़ादायी है।
क्या लिखूं,
कैसे मैं तारीफ करूँ
उस घायल मन
पीड़ारंजित उस हृदय का
इस भावविह्वलता में
मेरे शब्द भी शायद बह गये
उन अधीर भावो में
जब आपने लिखा
काश…काश तुम होती।।
……..
पं.सजीव शुक्ल “सचिन”