Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Feb 2020 · 1 min read

कवि दुष्यंत कुमार, समीक्षा आज के परिप्रेक्ष्य में।

शाहकार श्री दुष्यंत कुमार जी समाज के विद्रोही कवियों के प्रतिनिधि हैं। उनकी रचना इसका प्रमाण है ।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये।
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये।
समाज के सरोकार से पूर्ण तरह वाकिफ कवि समाज की समस्याओं को भरपूर रूप से उभारते हैं ।
कहां तो तय था चिरागा हर एक घर के लिये। कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिये। समाज के कर्णधारों द्वारा किए गए कार्यों की विसंगति का चित्रण करते हुए कहते हैं।
यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है ।
चलो यहां से चले और उम्र भर के लिये।
अपने मुक्तक सूर्य का स्वागत में कहते हैं ।
संभल संभल के बहुत पाँव धर रहा हूँ।
मैं पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूं मैं।
कदम कदम पे मुझे टोकता है दिल ऐसे।
गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूं मैं ।
रात के स्याह अंधकार में शहरों में जब अपराध की काली छाया वातावरण को घेर लेती है तब वो कहना चाहते हैं ।
रोज जब रात को बारह बजे का ग़ज़र होता है ।
यातनाओं के अंधेरे में सफर होता है ।
दुष्यंत कुमार जी अपने समकालीन कवियों में अत्यंत प्रसिद्ध कवि रहे हैं। उनकी कृतियां समाज का मार्गदर्शन करती रही हैं। आज भी वे युवाओं के प्रतिनिधि कवि के रुप में प्रतिष्ठित हैं,और रहेंगे।

Language: Hindi
Tag: लेख
228 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
दौर कागजी था पर देर तक खतों में जज्बात महफूज रहते थे, आज उम्
दौर कागजी था पर देर तक खतों में जज्बात महफूज रहते थे, आज उम्
Radhakishan R. Mundhra
किसी भी काम में आपको मुश्किल तब लगती है जब आप किसी समस्या का
किसी भी काम में आपको मुश्किल तब लगती है जब आप किसी समस्या का
Rj Anand Prajapati
जय जय हिन्दी
जय जय हिन्दी
gurudeenverma198
प्रदर्शन
प्रदर्शन
Sanjay ' शून्य'
गंणतंत्रदिवस
गंणतंत्रदिवस
Bodhisatva kastooriya
कहाॅ॑ है नूर
कहाॅ॑ है नूर
VINOD CHAUHAN
*** सिमटती जिंदगी और बिखरता पल...! ***
*** सिमटती जिंदगी और बिखरता पल...! ***
VEDANTA PATEL
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कर सत्य की खोज
कर सत्य की खोज
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
SuNo...
SuNo...
Vishal babu (vishu)
अश्रुऔ की धारा बह रही
अश्रुऔ की धारा बह रही
Harminder Kaur
फितरत सियासत की
फितरत सियासत की
लक्ष्मी सिंह
भोर सुहानी हो गई, खिले जा रहे फूल।
भोर सुहानी हो गई, खिले जा रहे फूल।
surenderpal vaidya
■ भगवान भला करे वैज्ञानिकों का। 😊😊
■ भगवान भला करे वैज्ञानिकों का। 😊😊
*Author प्रणय प्रभात*
"आशिकी ने"
Dr. Kishan tandon kranti
💐प्रेम कौतुक-239💐
💐प्रेम कौतुक-239💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मशक-पाद की फटी बिवाई में गयन्द कब सोता है ?
मशक-पाद की फटी बिवाई में गयन्द कब सोता है ?
महेश चन्द्र त्रिपाठी
नाम बदलने का था शौक इतना कि गधे का नाम बब्बर शेर रख दिया।
नाम बदलने का था शौक इतना कि गधे का नाम बब्बर शेर रख दिया।
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
Save water ! Without water !
Save water ! Without water !
Buddha Prakash
*यहाँ जो दिख रहा है वह, सभी श्रंगार दो दिन का (मुक्तक)*
*यहाँ जो दिख रहा है वह, सभी श्रंगार दो दिन का (मुक्तक)*
Ravi Prakash
प्रार्थना के स्वर
प्रार्थना के स्वर
Suryakant Dwivedi
हम भी देखेंगे ज़माने में सितम कितना है ।
हम भी देखेंगे ज़माने में सितम कितना है ।
Phool gufran
7) पूछ रहा है दिल
7) पूछ रहा है दिल
पूनम झा 'प्रथमा'
कर्मवीर भारत...
कर्मवीर भारत...
डॉ.सीमा अग्रवाल
युवा अंगार
युवा अंगार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
दुष्यन्त 'बाबा'
ख़िराज-ए-अक़ीदत
ख़िराज-ए-अक़ीदत
Shekhar Chandra Mitra
परमूल्यांकन की न हो
परमूल्यांकन की न हो
Dr fauzia Naseem shad
~~तीन~~
~~तीन~~
Dr. Vaishali Verma
इन रावणों को कौन मारेगा?
इन रावणों को कौन मारेगा?
कवि रमेशराज
Loading...