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25 Dec 2020 · 2 min read

कविता _अन्नदाता माँगें हक अपना

अन्नदाता माँगें हक अपना

भोर हुई बिस्तर छुड़ जाये, दो बैलों का साथ मिले।
बहा पसीना धरती सीँचे, खेतों में खलिहान खिले।।
दबा हुआ एहसान तले, घड़ी आ गई कर्ज चुकाने की।

जी नहीं, लगता है कर्ज चुकाने के साथ साथ सर कटाने की भी ?

शहादत का कोई मोल नहीं, इन सत्ता के गलियारो में
बेबस लाचार अभागिन लुटती, सरे राह बाजारों में
हक की चिंगारी सुलग उठी, गोविंद सिंह के सरदारों
अब कोई इनको क्या रोके, कहाँ ताकत उन नाकारों में

अन्नदाता माँगें हक अपना,और नहीं कुछ चाहें हम
ना इतना मजबूर करो,सड़कों पे धाम बनायें हम
लगे बिखरने ख्वाब हसीं अब,बस इतना समझायें हम
लड़ना ना कभी हमने सीखा, सबको गले लगायें हम

धरती माता के परम लाडले,आज सड़क पे सोते हैं
बहा पसीना धरती सीँचें, बीज खेत में बोते हैं
फिर भी ना मिलता चेन सुकुँ,दर्द दुखों का ढोते हैं
कोई हार जाता जीवन से, फंदे भी गले में रोते हैं

खालिस्तानी अन्नदाता को देखो अब ये कहण लगे
एहसास कहाँ दुख दर्दों का, महलों में ये रहण लगे
लगे खिसकती कुर्सी इनको, दुख का आलम सहण लगे
चेहरे पर रखते हैं रौनक,पर अश्क हैं इनके बहण लगे

खुद गद्दारी करते हैं, पर हमको ये गद्दार कहें
धरती माता का दामन बेचें,खुद को पहरेदार कहें
विजय पताका जो फहराए,उस घोड़े का असवार कहें
अश्वमेध अब हो पूरा, श्रीराम का अवतार कहें

सच तो ये गद्दारों का, यहाँ एक जमावड़ा लगा हुआ
दिल्ली का राजसिंहासन भी कालिख में है गड़ा हुआ
दया भाव ना इनके दिल में,अनर्तम सब सड़ा हुआ
कुचल ना दें मासूमों को,सेना का पहरा पड़ा हुआ

ना हम पर इतना दोष धरो,आबाद तुम्हे कर
जाएँगे
कुर्सी की खातिर मीठा बोलें,दिल में फिर बस जायेंगे
मुल्क बेचकर जेबें भरते, बस इतना कर जाएँगे
माँ,बहनों के दामन को भी, अश्कों से भर जायेंगे

हम रात गुजारें सड़कों पर, तुम मखमल पे आराम करो
फट जाये सीना धरती का, ना ऐसे अब तुम काम करो
मत छीनो हमसे धरती माँ, बस यही हमारे नाम करो
वतन हमें जाँ से प्यारा, ना आतंकी कह बदनाम करो

द्वेष इर्ष्या पास न झाँके के, दिल के कितने सच्चे हैं
सर्दी गर्मी का भान नहीं, ये धुन के इतने पक्के हैं
ना रही आरजू महलों की ,आशियाने इनके कच्चे हैं
ओ महलों के सिंहासन जादो, संग में इनके बच्चे हैं

है किसकी औकात यहाँ,जो इनके सम्मुख डट जाएँ
पीछे हटने का नाम नही, लाशों से सड़कें पट जायें
कर दिया हवाले भारत माँ को,सर गर्दन से चाहे कट जाएँ
मिल जाये गर अधिकार इन्हें, बादल ये तमस के हट जायें

शायर देव मेहरानियां
अलवर राजस्थान
7891640945

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 454 Views
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