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16 Jun 2016 · 1 min read

कविता

चाहे पटेल आरक्षण आन्दोलन पर समझ लो, चाहे
जाट आरक्षण आन्दोलन पर; भाव वही हैं। हिंसक
आंदोलनों को एक तमाचा:

होश को तालों मे कर दो बन्द, उस से काम ना लो।
जोश में भर जाओ, उन्मादी बनो, ग़ुस्सा निकालो।
माँग नाजायज़ है या जायज़, इसे बिल्कुल न सोचो;
उतर कर सड़कों पे, जो भी सामने हो फूँक डालो।

अपने पैरों पर खड़े मत हो, पकड़ बैसाखियाँ लो।
योग्यता पर मत करो विश्वास, आरक्षण संभालो।
बनो नेताओं की कठपुतली, उन्हीं को वोट देना;
वो कहें तो मान उनकी बात, अपना घर जला लो।

हम यही करते रहे हैं, और आगे भी करेंगे।
अपने घर आँगन जला, नेताओं की झोली भरेंगे।
दूसरे करते हैं हिंसा, तब हमें बेहद अखरता;
पर हमारी बात आयेगी, नहीं हम भी डरेंगे ।

राजनीति के भँवर में, फँस गया है देश ऐसा।
बन गये हैं भेड़ हम सब, और नेता भेड़िए सा।
बुद्धि से लेते नहीं हम काम, बहकर भावना में;
देखिये जैसा है अब, कब तक चलेगा देश वैसा।

—–बृज राज किशोर

Language: Hindi
510 Views
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