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28 Dec 2020 · 1 min read

कविता

तप रही वो आग में,
जल रही वो राख में।

फंस रही वो जाल में,
धंस रही वो काल में।

देख रही वो स्वप्न में,
सोच रही वो घाव में।

बढ़ रही वो साथ में,
चल रही वो पास में।

बुन रही वो घास में,
सह रही वो एक में।

रंग रही वो बाग में,
कर रही वो ताप में।

ठिठ रही वो ठंड में,
भीग रही वो प्रेम में।

बना रही वो घर में,
रख रही वो नींव में।

ढूँढ रही वो छाँव में,
रह रही वो घास में।

देख रही वो पेड़ में,
सो रही वो गुफ़ा में।

खरगोन मध्यप्रदेश 451001

-हार्दिक महाजन

Language: Hindi
3 Likes · 279 Views
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