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6 Nov 2018 · 1 min read

कविता

निशान
निशाने पर आ जाती हूँ मैं
अपने छोड़े निशान से,कैसे?

दाग लगा टी शर्ट में अब भी
धुली हुई ,पर निशान तब भी

कप ये धुला नहीं ठीक से
देखिए प्रिय नज़दीक से

ओफ्फ ये रोटी पर टीका
क्या काला तिल गोरी का?

मीरा तुम ये क्या करती हो
पांव जमीं पर क्यों रखती हो

हर निशान पर बन अपराधिन
कहलाती घर की महाराजिन

हर निशान हमसे ये कहता
पानी सिर ऊपर या नीचे बहता
मीरा परिहार’मंजरी’ आगरा उत्ततर प्रदेश

स्वरचित,

Language: Hindi
1 Like · 392 Views
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