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29 May 2020 · 1 min read

कविता

‘राधाकृष्ण’

मोर पंखी मुकुट सिर पर
पीतवर्णी वसन हैं,
माल वैजंती सुशोभित
नील नीरज नयन हैं।

केश घुँघराले घटा सम
रूप का रसपान करते,
राधिका के साथ मोहन
मग्न होकर रास रचते।

मोहिनी छवि देख राधा
मुदित मन मुस्कान भरती,
नैन मूँदे झूमती अरु
कृष्ण का उर चैन हरती।

बाँसुरी की धुन सुनाकर
श्याम ने अपना बनाया,
छीनकर सुधि राधिका की
प्रीति का सपना दिखाया।

कृष्ण राधामय हुए हैं
राधिका मुस्कान उनकी,
एक-दूजे बिन अधूरे
प्रेम ही पहचान उनकी।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 532 Views
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Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
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