कविता : ??सच्चा यार??
ज़िंदगी एक पहेली है यार मेरे।
समझी न समझी जाए यार मेरे।
एकपल उजाला एकपल अँधेरा,
अज़ब गज़ब है व्यवहार यार मेरे।
कभी फूलों सरीखी कभी काँटों।
पृथ्वीलोक समझो ये संकट बाँटों।
माया मोह त्यागो तुम बंधु प्यारे,
सीख लो भीख न लो अरे!नाटों।
सच्चा यार पीर मित्र की समझे।
सच्चा यार ज़मीर मित्र का समझे।
जो मौसम-सा बदले गिरगिट है रे!
ऐसा क्या तक़दीर मित्र की समझे।
संसार मिथ्या इसे स्थिर न जानो।
कर्म नेक करो स्वयं बड़ा न मानो।
दौलत आई तो सलाम उसी को है,
मनु कर्म पूज्य और व्यर्थ पहचानो।
सच्चा मीत मिले वह भाग्यशाली है।
कृष्ण-सुदामा की संज्ञा दीवाली है।
कुबेर का खज़ाना सच्ची मित्रता है,
इसके सिवाय जो मिला खाली है।
घी का दीया है,अमृत की धार है।
चाँद की चाँदनी नौलखा ये हार है।
सच्चा मित्र तो प्रेम की परिभाषा,
जीवन का परचम है सद्व्यवहार है।
“प्रीतम”तुझ से प्रीत जोड़ मैं सच्चा हूँ।
दिल से बड़ा चाहे अक्ल से कच्चा हूँ।
तुम मुझे भाए,मेरे दिल समाए आभार!
मैं भी तेरी लगन में रुचि रचा-रचा हूँ।
…..राधेयश्याम बंगालिया”प्रीतम”
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