कविता–हरीभरी हो धरा
“रोला छंद”–परिभाषा एवं कविता
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रोला एक सममात्रिक छंद है;इसमें चार चरण होते हैं;प्रत्येक चरण में चौबीस-चौबीस मात्राएँ होती हैं।हर चरण में यति ग्यारह-तेरह मात्राओं पर होती है और हर चरण के अंत में दो गुरू या एक गुरू दो लघु या दो लघु एक गुरू मात्राएँ आनी आवश्यक हैं।
#रोला
बन गलवन की शान,इरादे चीनी तोड़े।
समझ गया ये चीन,नहीं अटकाने रोड़े।
सुन प्रीतम की बात,दूर हिम्मत से आफ़त।
हर संकट ले जीत,आत्मनिर्भर बन भारत।
#आर.एस.”प्रीतम”