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17 Dec 2016 · 1 min read

कविता : स्वदेशी

स्वदेशी अपनाओ अगर विदेशी से अच्छा है।
संज्ञा नहीं कार्य ही स्वेच्छा की एक सुरक्षा है।
पहले तोलो फिर बोलो नीति कितनी सही है।
दूध से मिठाइयाँ,लस्सी और बनती दही हैं।

सही का दम भरो और गलत तुम खत्म करो।
आनंदमग्न रहो अपनी ख़ुशी में न मातम भरो।
जलवा ऐसा हो जिसे दुनिया झुक सलाम करे।
नेकियाँ तुम करते चलो सुबह-शाम-से निखरे।

सामने जो आए साथी तुम्हारा एक बनता रहे।
स्वदेशी का नारा तन-मन में समाए तनता रहे।
शरीर में प्राणों का सिलसिला होता है जैसा।
हमें प्रेम करना है हृदय से स्वदेशी को वैसा।

देशप्रेम का बीज हर जन में देखो बोना चाहिए।
करतब ऐसे करो कि नाम तुम्हारा होना चाहिए।
जो देखे सुने वो तुम्हारा दीवाना एक बन जाए।
सूर्य-चन्द्र-सा हमसफ़र हो अफ़साना जन जाए।

अपनेपन का अहसास हो बस फूल-खुशबू-सा।
मिलना महकना खिलना बिखरना फूल-खुशबू-सा।
स्वदेशी अपनाओ चाहो सराहो और मुस्क़राओ।
विदेशी तजो भजो स्वदेशी मिलो एक हो जाओ।

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राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”

Language: Hindi
1 Like · 3787 Views
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