“”” कविता वह सरिता है”””
कविता वह सरिता है जिसमें हर विधा का नीर बहता है।
कवि कभी कल्पना या कभी यथार्थ में खोया रहता है।
जैसे ही होता है चिंतन का अंकुरण,
उठा कलम कागज उन दृश्यों को लेखन में उकेरता है।।
इस नदी में कभी भावनाएं रहती, कभी अखियां बहती।
कहीं श्रृंगार के घाट तो कहीं विरह की एकल बाट,
हर रसों को साथ मिलाकर, कुछ ना कुछ कहती
कविता की यह सरिता हर पथ बढ़ती जाए,
कवियों कलम रुकने ना पाए।
व्यक्ति समाज इसमें डुबकी लगाएं,
त्याग बुराई अच्छाई के मोती पाए।
अनुनय कविता की यह सरिता अनवरत ही बहती जाए।।
राजेश व्यास अनुनय