कविता : रिश्ते हैँ कच्चे धागे
रिश्ते कच्चे धागे,मोल न इनका कोय।
समझे तो ज़न्नत,न समझे तो नरक होय।।
सुख-दुख में साथ निभाता सच्चा मीत वही।
बात-बात पर मुँह मोडले निज स्वार्थी होय।।
ऐसे रहिए मिलजुल जैसे ख़ुशबू फूले-चमन।
बिन बू के हरफूल क़ाग़ज़ का फूल होय।।
प्रेम,श्रद्धा,आस्था,आरज़ू से पाक मुहब्बत है।
जिस नारी हृदय ये बसें सदा पतिप्रिय होय।।
ये संसार किराए का घर एकदिन छोड़ जाना।
कर्मों की पूजा होगी बंधु समझ लीजिए तोय।।
पहले तोलो,फिर बोलो मीठी वाणी सुख देती।
कर्कश बाणी कानो में चुभे जो कौवे-सी होय।।
प्रीत का बंधन बांध ले”प्रीतम”गर तू सुख चाहे।
जिस हृदय में है प्रीत बसी गले का हार होय।।
राधेश्याम बंगालिया “प्रीतम” कृत
*********************
*********************