Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Dec 2017 · 4 min read

कविता के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ।

जीवन ही जब चुनौतियों से भरा नहीं हो तो उस जीवन के क्या मायने। वह जीवन तो मृत समान है। इस परिवेक्ष में कविता को देखा जाए तो कविता भी आज तक इसीलिए जीवित है चूँकि यह चुनौतियों के हर उस दौर से गुज़री है जिसमे उसे कभी छायावादी कभी प्रगतिवादी कभी प्रयोगवादी कभी नव कविता आदि के नामो से परिभाषित किया गया I कविता ने भी इन सभी दौरों में हर चुनौती को स्वीकार , अंगीकार कर अपने को संवर्धित और संरक्षित कर हर बार एक नए रूप में अपने को प्रस्तुत किया है। वर्तमान समय में हम पाते हैं कविता की चुनौती केवल उसकी उत्तरजीवता में ही नहीं है अपितु उसकी संवृदि और निरंतर विकास में है। वर्तमान परिवेश में समकालीन कविता के उत्थान – विकसन में भी कुछ चुनौतियाँ हैं जो काव्य लेखन को गतिहीन कर रही है।

आज की कविता के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पाठकों की कमी और कवियों की भरमार है। आज से कुछ दशक पहले पाठकों के समक्ष सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला ‘ जयशंकर प्रसाद , महादेवी वर्मा , रामधारी सिंह दिनकर , नागार्जुन , मुक्तिबोध और हरिवंश राय बच्चन, त्रिलोचन , दुष्यंत जैसे नामचीन कवियों की कालजयी रचनाएँ थी, लाखों में पाठक थे पर आज हम पाते हैं लाखों कवि हैं पाठक लगभग नहीं के बराबर हैं। भला ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए है कि लिखे जा रहे काव्य में कवि में संवेदनशीलता का गुण होते हुए भी कविता में वह धार नहीं है, वह पैनापन नहीं है ,वह नयापन नहीं है ,वह गहन वैचारिक भाव नहीं है और ना ही काव्य सौंदर्य के प्रति कवि की प्रतिबद्धता दिखाई देती जिसके कारण काव्य संसार भिन्न भिन्न वादों में अपना रूप बदल कर पाठकों को अपनी और आकर्षित करता रहा है। अगर आज की कविता को काल के चक्के की धुरी का काम करना है तो कवि समाज को ऐसी रचनाओं का उद्गम स्तोत्र बनना होगा जो सगर की भागीरथी के समान पाठकों को पुर्नजीवित कर सके।

दूसरी चुनौती है आज का कवि कुछ ही समय में ही वह मुकाम पाना चाहता है जिसे पाने में नाम चीन कवियों को सालों साल लग गए थे। इस लालसा का असर उनके काव्य पर भी पड़ा है। देखा जाए तो हमारे समक्ष अधिकतर जो कविता परोसी जा रही है वह कवि का एक जागरूक, सरोकारी नागरिक रूप में कम और एक व्यक्तिगत परिवेश में अधिक है I जहाँ रूपक,अनुप्रास, उपमा, , यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा,अतिशयोक्ति, संदेह, , वक्रोक्ति आदि अंलकारों की कमी खटकती है। जिस प्रकार से एक नारी का सौन्दर्य अलंकारों से निखर आता है उसी प्रकार से काव्य सौंदर्य भी विभिन्न अलंकारों की मोहताज होता है जो आज के कवियों के काव्य शिल्प में अधिक नहीं दिखाई देता। अलंकारों की कमी काव्य को मानो श्रीहीन बना रही हो। आज के कवियों को चाहिए के इन अलंकारों का पूर्ण रूप से अध्ययन कर अपने काव्य को अलंकृत करें। वर्ना बॉलीवुड के पिछले दशक के गानों /गीतों की तरह आज का काव्य भी कभी कालजयी नहीं बन पायेगा।

तीसरी चुनौती कविता को अंतर्जाल से मिल रही है। जहाँ की “वाह वाह” की चमक कविता के साथ एक बहुत बड़ा अन्याय कर रही है। कविता में सपाटबयानी की मात्रा अधिक और काव्यप्रवीणता के गुणों का अभाव साफ़ नज़र आता है। छंदमय काव्य तो अपने शिल्प के विधि विधान के आधीन है पर छन्दमुक्त कविता के प्रलोभन में आ कर उसे भी गद्य का सा स्वरूप देना कविता की मूल परिभाषा को ही मानो चुनौती देना है। कविता का मूल स्वरूप उसकी विषय वस्तु के प्रभावी प्रस्तुतिकरण में है, उसके लययुक्त तुकांत पंक्तियों में है, जो पाठकों को सम्मोहित करती कविता के नाम को सार्थक करती है ना कि पाठक को लगे वह कविता के स्थान पर गद्य पढ़ रहा है।

चौथी सबसे बड़ी चुनौती जो आज की कविता के समक्ष है वह है कविता का बाज़ारीकरण होना यानि की वित्तीय लाभ के लिए प्रबंधन करने की प्रक्रिया। इस प्रक्रिया ने आज के कवियों और प्रकाशकों दोनों को अपने लपेटे में ले लिया है। आज का कवि येन-केन-प्रकारेण छपना चाहता है और प्रकाशक छापने के लिए तत्पर। प्रकाशक के लिए तो हर तरफ से यह एक लाभ का सौदा है पर यह कवियों के लिए अधिकतर घाटे का सौदा ही साबित होता है और साथ ही कविता की गुणवत्ता नियंत्रण बाज़ारीकरण की भेंट चढ़ जाती है। और जब कविता की गुणवत्ता पर ही नियंत्रण नहीं हो तो आप समझ सकतें हैं कि कविताओं का स्तर क्या होगा।क्षोभ तो तब होता है जब छपने का आश्वासन और पुरुस्कारों / सम्मानों के प्रलोभनों पर कविता के रचना की कीमत कवि से वसूली जाती है। चलिये मान लेते हैं कि कविताओं अच्छे स्तर की भी हों कुछ एक अपवाद छोड़ कर कविता कवि और प्रकाशक की मानो बंधक बन गयी है। खुद छापते हैं (सेल्फ पब्लिशिंग ) तो प्रचार -प्रसार की कमी ले डूबती है और साझा संग्रहों में छपते हैं तो कवितायेँ सम्मिलित कवियों के बीच तक ही वह सीमित रह जाती है। प्रकाशक के लिए दोनों तरफ से लाभ का ही सौदा है। इसी बाज़ारीकरण से में उन मंचीय कविओं को भी कविता को श्रीहीन बनाने में कुछ हद तक ज़िम्मेदार मानता हूँ । पैसा कमाने के चक्कर में तथ्यहीन कवितायेँ प्रस्तुत करना ,स्टैंडअप मसखरों के समान हास्य परोसना नए नए काव्य क्षेत्र में आये रचनाकारों के लिए एक ऐसा माप दंड स्थापित कर देते हैं जो आज की कविता को एक चुनौती देती प्रतीत होती है।
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक –कवि
kaultribhawan@gmail.com

Language: Hindi
Tag: लेख
1506 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ऑंखों से सीखा हमने
ऑंखों से सीखा हमने
Harminder Kaur
World tobacco prohibition day
World tobacco prohibition day
Tushar Jagawat
💐प्रेम कौतुक-326💐
💐प्रेम कौतुक-326💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मानता हूँ हम लड़े थे कभी
मानता हूँ हम लड़े थे कभी
gurudeenverma198
कुंडलिया - गौरैया
कुंडलिया - गौरैया
sushil sarna
तुम से मिलना था
तुम से मिलना था
Dr fauzia Naseem shad
"The Divine Encounter"
Manisha Manjari
लव यू इंडिया
लव यू इंडिया
Kanchan Khanna
तारीफ आपका दिन बना सकती है
तारीफ आपका दिन बना सकती है
शेखर सिंह
उदासियाँ  भरे स्याह, साये से घिर रही हूँ मैं
उदासियाँ भरे स्याह, साये से घिर रही हूँ मैं
_सुलेखा.
*देना सबको चाहिए, अपनी ऑंखें दान (कुंडलिया )*
*देना सबको चाहिए, अपनी ऑंखें दान (कुंडलिया )*
Ravi Prakash
प्रेम जब निर्मल होता है,
प्रेम जब निर्मल होता है,
हिमांशु Kulshrestha
इंसान को,
इंसान को,
नेताम आर सी
सच तो रोशनी का आना हैं
सच तो रोशनी का आना हैं
Neeraj Agarwal
मौन
मौन
Shyam Sundar Subramanian
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
2818. *पूर्णिका*
2818. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चार कदम चलने को मिल जाता है जमाना
चार कदम चलने को मिल जाता है जमाना
कवि दीपक बवेजा
शिक्षा का महत्व
शिक्षा का महत्व
Dinesh Kumar Gangwar
तुमसे ही दिन मेरा तुम्ही से होती रात है,
तुमसे ही दिन मेरा तुम्ही से होती रात है,
AVINASH (Avi...) MEHRA
#मुक्तक
#मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
सपना देखना अच्छी बात है।
सपना देखना अच्छी बात है।
Paras Nath Jha
मुफ्तखोरी
मुफ्तखोरी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"महान ज्योतिबा"
Dr. Kishan tandon kranti
Lines of day
Lines of day
Sampada
देश हमरा  श्रेष्ठ जगत में ,सबका है सम्मान यहाँ,
देश हमरा श्रेष्ठ जगत में ,सबका है सम्मान यहाँ,
DrLakshman Jha Parimal
*होलिका दहन*
*होलिका दहन*
Rambali Mishra
भ्रष्टाचार ने बदल डाला
भ्रष्टाचार ने बदल डाला
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
-आगे ही है बढ़ना
-आगे ही है बढ़ना
Seema gupta,Alwar
मौत आने के बाद नहीं खुलती वह आंख जो जिंदा में रोती है
मौत आने के बाद नहीं खुलती वह आंख जो जिंदा में रोती है
Anand.sharma
Loading...