कविता:प्रीतिभोज
प्रीतिभोज का आयोजन,करता दिलों का समायोजन।
प्यार की बहारों से खिलता है सदा दिले-चमन।
प्यार से मिलना,प्यार से रहना,आनंद करता है उत्पन्न।
विश्वास की दीवार इंसानियत को करती आई सदैव सम्पन्न।
दिलों का ये आकर्षण, एक-दूसरे के प्रति करता समर्पण।
यादों का उफान लेता घर्षण,खिलाता हृदय का कण-कण।
भूल कभी किसी से हो,भुलाओ!दिखाओ स्नेह का दर्पण।
विशाल करलो मन का कोना,दोस्ती का रहे बना अटूट-बंधन।
प्रेम सर्वोपरि,प्रेम आरंभ,प्रेम ही है रिश्ता आख़िरी है।
प्रेम तत्व से बड़ा न कोई जग में,प्रेम ही रिश्तों की हाज़िरी है।
चलो,हृदय के समन्दर में प्रेम के कमल खिलाएं दोस्तों!
प्रेम-सुगंध बिखराते रहें,प्रेम से दुश्मन को गले लगाएं,दोस्तों!
एक-दूसरे के सहायक बने,खलनायक़ नहीँ नायक बने,दोस्तों!
रिश्तों के उद्यान सींचते रहें,मन का मैल करें निष्कासित,दोस्तों!
आपने मान-सम्मान दिया,प्रेम से जो याद हमें है किया।
हम भी चले आए हैं प्रेम से,पुरानी यादों को ज़िन्दा किया।
ये यादें यूँ ही बनी रहें,दिलों में हम सभी के तनी रहें।
जलते रहें दिलों में दीपक प्यार के,यादों की रोशनी मिलती रहे।
#मुक्तक
आपसे मिलकर दिल का कोना-कोना, यारो! शाद हो गया।
कसम से!आज हृदय गदगद्,मन मिलन से आबाद हो गया।
फिर से संवरने लगी विरह में जली यादों की कलियां फिर से।
विचार कमल-से खिले,पल-पल ज़िन्दगी का आबाद हो गया।