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26 Mar 2018 · 2 min read

कलमकार

एक प्रसिद्ध लेखक का निधन हो गया। परिवार की ओर से शान्ति पाठ का आयोजन किया गया। लेखक मित्र , आलोचक , पत्रकार , प्रकाशक, पाठकगणो में श्रद्धांजलि देने के लिए मानो होड़ लग गयी हो। श्रद्धांजलि में स्वर्गवासी की केवल अच्छी और सुखद यादों का ही उल्लेख किया जाता है। बस कुछ देर तक सभी के चेहरे गमगीन नज़र आते हैं और फिर सांसारिक बातों का, मृत्यु पर आध्यात्मिक विश्लेषणों का, लेखन व्वयस्था पर टीका टिप्पिणि पर खुसर फुसर के रूप में वार्तालाप होने लगता है।

महापौर महोदय ने माइक पकड़ा , ” महान लेखक राधाशरण के निधन के साथ हमारे साहित्यिक संसार को एक बहुत भारी नुकसान हुआ है जिसकी भरपाई करना आने वाले समय में करना बहुत मुश्किल है। उन्हें लेखन का वरदान शायद माँ सरस्वती से प्राप्त था। “

एक जाने माने प्रकाशक ने माइक पकड़ा और बोले , ” इनके निधन से मुझे अधिकतम नुकसान उठाना पड़ेगा। मेरी प्रेस केवल उनके लिखे उपन्यास , कथा कहानियों को छाप कर ही अपना ख़र्चा निकलती थी।“
इतने में एक पाठक उठा और बोला, ” उनके निधन से आपकी तुलना में सबसे अधिक नुकसान तो मेरा हुआ है। अब मैं उनकी लिखी कथा -कहानियों से वंचित रह जाऊँगा।

तभी एक व्यक्ति धाड़ें मार मार कर रोने लगा। सब उसकी और आकर्षित हो गए। ” हाय हाय , सबसे बड़ा नुकसान तो मेरा हुआ है। बच्चों को क्या खिलाऊँगा ? अब कहाँ से मैं आजीविका कमाऊँगा? उनके निधन के साथ, मेरा भी निधन हो गया है। हाय , हाय।“
जब किसी की समझ में कुछ नहीं आया तो महापौर महोदय ने पुछा , ” भाई , ऐसा क्यों कह रहे हो ? तुम हो कौन उनके ? ”
उस व्यक्ति ने इधर उधर देखा। सब का ध्यान अपनी और पा कर वह बोला , ” जी , मेरा नाम कलमकार है। उनके लिए लिखता था। कहा जाए तो मैं उनका परोक्ष लेखक था। मेरे लेखन कार्य के लिए वह मुझे अच्छी ख़ासी राशि का भुगतान करते थे और मेरे ही लिखी रचनाओं को वह अपने नाम से प्रकाशित कराते थे।“

सभी इस रहस्योद्घाटन पर स्तब्ध थे।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल

Language: Hindi
1 Like · 322 Views
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