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30 Nov 2016 · 1 min read

कर गया घायल कँवल को

कल तक था शख्स जो वो मकान से बाहर
उसने हि कर दिया मुझको जहान से बाहर

बहार लेकर कोई चमन में आये मेरे
खिले है फूल मगर गुलसितान से बाहर

नहीं होती है पुरी नींद क्या करें हम यार
होता है शोर रातों में मेरे मकान से बाहर

रंक हो या राजा बात इतनी जानो तुम
जाना है हाथ खाली ही जहान से बाहर

के निकला करो घर से जरा संभलकर तुम
दिवाने तेरे न हो जाए के मकान से बाहर

दे गया जख़्म मुझको और दिल भेद गया
शब्द निकला जो उसकी जबान से बाहर

कर गया घायल कँवल को उसका ही यार
के निकाल कर तलवार मियान से बाहर
बबीता अग्रवाल कँवल

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