करुणामय जग
जग को देख जग रोता है,
दुःख देख आँसू बहाता है ।
कोई रोटी के लिए तरसता है,
कोई अभावों में भी जीता है ।
हर बाग का फूल कहाँ महकता है,
जग में सबको सुख कहाँ मिलता है ।
हर हँसी खुशी नही होती है,
कुछ दिल में छुपी रहती है ।
दिखावे में सब जीते है,
अहम का नशा करते है ।
प्रेम स्नेह हर्ष अब खोते है,
सब रिश्ते लाभ के होते है ।
बंजर खेत कहाँ कोई जोतता है,
बिना मतलब कोई नही पूछता है ।
फल सब खाना चाहते है,
पेड़ सब कहाँ लगाते है ।
थोड़ी खुशी थोड़ा गम बांटिए,
परहित थोड़ा ही सही कीजिए ।
पल पल की खुशी उठाइये,
थोड़े में खुश रहना सीखिए ।
अंगुलियाँ समान नही होती है,
फिर भी मिलकर काज करती है ।
जग को खुशहाल कीजिए,
मन में उल्लास भरिए ।।