Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Oct 2017 · 3 min read

करवट ज़िन्दगी की

कभी आस्था की ज़िंदगी में सुबह शाम दोनों होती थी । अब केवल शाम ही रह गई थी या ये समझ लो इतने गहरे बादल छा गए की सूरज निकल ही नहीं पा रहा था । ज़िन्दगी ने फिर से आज करवट बदली थी । लेकिन पता नही क्यों आस्था आज शांत नज़र आ रही थी । जैसे उस पर सूरज चाँद का कोई असर नही पड़ रहा हो । निकलो तो भला न निकलो तो भला । पहले वो इन सब बातों से बहुत उद्विग्न हो जाया करती थी । पर आज सोच में डूबी हुई अपने रोज के काम निबटाती जा रही थी । हमेशा ऐसे मौकों पर आँसुओ की बाढ़ आ जाया करती थी उसकी आँखों से परंतु आज कोई आँसू नही था उसकी आँख में । कल अमेरिका से बेटे का फोन आया था । कितनी शिकायतें थी उसे अपनी माँ से ये वो कल ही जान पाई थी । पति ने तो 5 साल ही साथ निभाया था और एक दिन अचानक ही दुर्घटना का शिकार होकर उसे छोड़ कर चले गए थे । तब भी ज़िन्दगी ने अपनी करवट बदली थी । उस वक़्त दो छोटे2 बच्चों के मासूम चेहरों ने उसे जीने के लिए मजबूर कर दिया था । रात भी दिन लगने लगी थी । नौकरी और बच्चों में ही लगे लगे कैसे दिन ,महीने, साल गुज़र गये पता ही नही चला । बेटी बड़ी थी उसकी शादी अच्छे परिवार में कर दी वो खुश है । इससे उसके मन को बड़ा संतोष था । अचानक एक दिन बेटे ने बताया उसे अपनी मनपसंद की लड़की से शादी करनी है । ये उसके लिए दूसरी खुशखबरी थी । परंतु जब वो लड़की और उसके परिवार से मिली तो उसकी खुशी काफूर हो गई । उसके अनुभव ने ताड़ लिया कि ये शादी उसके बेटे के लिए ठीक नहीं होगी । बेटे को समझाने की हर कोशिश बेकार गई । उसने मन मार कर शादी करवा दी । बेटे की नज़रों में उसकी कोई भी नाराज़गी उसी की गलत सोच की वजह से थी । आस्था ने भी मुँह पर ताला लगा लिया था । एक हफ्ते बाद ही वो पत्नी को लेकर अमेरिका चला गया था । कल छः महीने बाद उसका फोन आया था जिसमें उसने आस्था की सिर्फ गलतियाँ ही नहीं गिनाई बल्कि उसकी परवरिश को भी गलत ठहरा दिया । रात भर आस्था सो नही पाई । वो शिक्षिका थी ।रिटायरमेंट के बाद वैसे ही बहुत खाली हो गई थी । लेकिन घर के कामों में ही अपने आप को अधिकतम व्यस्त रखने की कोशिश करती रहती थी । बेटी कनाडा में थी कम आ पाती थी । बेटा शादी के बाद सी ही उससे दूरी बनाए हुए था । बहन ने भी भाई को समझाने की कोशिश की थी जिस की वजह से वो उसे भी दुश्मन ही मानने लगा था । रात में ही आस्था की।बेटी से भी बात हुई । वो भी लाचार थी । ऐसे ही सोचते2 कब सुबह हुई पता ही नहीं चला। आस्था नित्यकर्म से निबट कर नहाने गई तो अचानक ही उसका पैर फिसल गया । सर नल से जा टकराया । खून की धार फूट उठी । उठ ही नही पाई और ऐसे ही बेबस दर्द में तड़पते हुए सदा के लिए सो गई ।ज़िन्दगी ने आज आखिरी बार उसके लिए करवट बदली थी ।

डॉ अर्चना गुप्ता
23-10-2017

Language: Hindi
456 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr Archana Gupta
View all
You may also like:
■ मन गई राखी, लग गया चूना...😢
■ मन गई राखी, लग गया चूना...😢
*Author प्रणय प्रभात*
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
Rj Anand Prajapati
दूसरों की राहों पर चलकर आप
दूसरों की राहों पर चलकर आप
Anil Mishra Prahari
दोहा- दिशा
दोहा- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
नौ वर्ष(नव वर्ष)
नौ वर्ष(नव वर्ष)
Satish Srijan
DR arun कुमार shastri
DR arun कुमार shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"जब आपका कोई सपना होता है, तो
Manoj Kushwaha PS
कविता
कविता
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
श्री श्रीचैतन्य महाप्रभु
श्री श्रीचैतन्य महाप्रभु
Pravesh Shinde
आंखों में
आंखों में
Dr fauzia Naseem shad
"काल-कोठरी"
Dr. Kishan tandon kranti
बादल को रास्ता भी दिखाती हैं हवाएँ
बादल को रास्ता भी दिखाती हैं हवाएँ
Mahendra Narayan
2989.*पूर्णिका*
2989.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हश्र का मंज़र
हश्र का मंज़र
Shekhar Chandra Mitra
वैसे जीवन के अगले पल की कोई गारन्टी नही है
वैसे जीवन के अगले पल की कोई गारन्टी नही है
शेखर सिंह
तेरा हम परदेशी, कैसे करें एतबार
तेरा हम परदेशी, कैसे करें एतबार
gurudeenverma198
विजेता सूची- “सत्य की खोज” – काव्य प्रतियोगिता
विजेता सूची- “सत्य की खोज” – काव्य प्रतियोगिता
Sahityapedia
गुमशुदा लोग
गुमशुदा लोग
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
दोहावली...(११)
दोहावली...(११)
डॉ.सीमा अग्रवाल
हर एक भाषण में दलीलें लाखों होती है
हर एक भाषण में दलीलें लाखों होती है
कवि दीपक बवेजा
अनसोई कविता...........
अनसोई कविता...........
sushil sarna
!! पलकें भीगो रहा हूँ !!
!! पलकें भीगो रहा हूँ !!
Chunnu Lal Gupta
बाधाएं आती हैं आएं घिरे प्रलय की घोर घटाएं पावों के नीचे अंग
बाधाएं आती हैं आएं घिरे प्रलय की घोर घटाएं पावों के नीचे अंग
पूर्वार्थ
'विडम्बना'
'विडम्बना'
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
लाश लिए फिरता हूं
लाश लिए फिरता हूं
Ravi Ghayal
कुदरत
कुदरत
manisha
संतोष करना ही आत्मा
संतोष करना ही आत्मा
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
इश्क समंदर
इश्क समंदर
Neelam Sharma
बोलो ! ईश्वर / (नवगीत)
बोलो ! ईश्वर / (नवगीत)
ईश्वर दयाल गोस्वामी
पावस की रात
पावस की रात
लक्ष्मी सिंह
Loading...