कमाई से महगांई तक कि जंग
मजदूर और किसान,
अन्नदाता और बिकास कि जान,
फिर भी हैं परेशान,
जो कमाया,
वो खाया,पिया,और पचाया,
कुछ बचा नही पाया।
मजदूर और किसान,
दोनो रीड हैं,अर्थ ब्यवस्था की,
किन्तु स्वयम् मरहूम हैं धन धान्य से,
पेट भरने से लेकर,
रहने के आशियाने तक,
निरिह इतने कि,अपनी कीमत भी नही लगा पाते ,
हर सत्ता नसीं कि जुबान पर होते हैं इनके चर्चे,
किन्तु हक से मरहुम है अबतक,
इनके बिना किसी का गुजारा नही,
और इनका,जो मिलता है,उसमे गुजारा नहीं।