कभी ये भी सोचो
?कभी ये भी सोचो?
सड़क किनारे बैठे उस,
भिखारी की भी तो सोचो,,,
क्यू बैठा है वो,,
मजबूर ए हालात,,
कभी ये भी तो सोचो,,
उसकी भी तो कोई,,
आशाएं और इच्छाएं होंगी,,
उन्हें कभी पूरा,,
करने की भी तो सोचो,,
सबकुछ करने लायक,,
होता अगर वो,
किसी सड़क किनारे,,
नही बैठा होता वो सोचो,,
किसी अपने ही,,
घर से निकाल फेका होगा,
तभी तो ये रास्ता उसने,,
मजबूरी में अपनाया होगा सोचो,,
कैसे गुजरती होंगी,,
उसकी ये दर्द भरी राते,,
कभी अकेले बैठकर तो सोचो,,
पापी पेट की भरने की ख़ातिर,, न जाने किस किसके,,
ताने वो खाता होगा,,
इंसान है तू भी अपने,,
इंसानियत के खातिर तो सोचो,,
सोनु जैन मंदसौर