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9 Dec 2016 · 1 min read

कपकपाती थरथराती ये सज़ा क्यों है?

कपकपाती थरथराती ये सज़ा क्यों है
फिर भी ठंड का इतना मज़ा क्यों है?

ये सिहरन, ये ठिठुरन ये गरमाई क्यों है
देर से उठने की अंगडाई क्यों है
किसी के हाथो मे इतनी नरमाई क्यों है?

हर पल ठंड का वो वहम क्यों है
उस पर चाय का इतना रहम क्यों है?

किसी के आने की आहट क्यों है
ठिठुरते होठों पे मुस्कुराहट क्यों है?

ये हवाएं कहर बरपाती क्यों है
ये धूप अब हमसे शरमाती क्यों है?

किसी का चहकता हुआ सवेरा क्यों है
रात मे सिसकता वो “बसेरा” क्यों है?

– नीरज चौहान की कलम से…

Language: Hindi
434 Views
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