— कथनी और करनी —
कह देने से क्या होता है
जब तुम वो कर न सके
कहने को तो बहुत है
पर करने को क्या है पल्ले
जिस को देखो बहका के
इठला के चला जाता है
करने के वक्त बस
फिर नजर कहाँ आता है
जुबान से तीर चलाना आसान है
काम के तीर चलाओ जरा
कब तक कहते रहोगे
अब जरा कर के दिखलाओ जरा
पेट भरने को अन्न चाहिए
घर चलाने को बस रोजगार
वक्त कहाँ है जलसे लगाने का
गरीब के घर रोटी और रोजगार चाहिए
आये चाहे कोई भी सरकार
हम को क्या है लेना देना
सब एक ही होते हैं गद्दी पर
इनका तो काम है है सब को बहका देना
अजीत कुमार तलवार
मेरठ