कठिन श्रम
लोहार, लोहारीन
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बनें तेग तलवार , पीटती लोहा नारी।
कठिन श्रमों का दान , बनें खुरपी व कुदारी।।
रहे उम्रभर साथ , गरीबी बनकर आरी।
श्रमरत दिवस व रात, कमाऊ नर और नारी।।
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✍ ✍ पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार….८४५४५५