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28 Aug 2017 · 1 min read

कई रातों को जागा मैं (मुक्तक)

“कईरातों को जागा मैं”

सजाकर याद की महफ़िल कई रातों को जागा मैं।
भरा आगोश में तकिया बहाए अश्क जागा मैं।
हुई खामोश तन्हाई सुनाकर दासता अपनी-
लगाए कहकहे खुद पर लिए ज़ख़्मों को जागा मैं।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

Language: Hindi
1 Like · 200 Views
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