*** ” औरत का सफर ‘***
” औरत का सफर ”
जन्म लेने के बाद कुछ समय तक खेलने कूदने मौज मस्ती में व्यतीत हो जाता है फिर करीबन 10 साल बाद ही माँ कहती है घर के काम करना सीख वरना आगे दूसरे घर ससुराल में जाने के बाद बहुत ही परेशानी उठानी पड़ेगी अभी से घर के सारे सीखते जाओ रोटी बनाना, खाना बनाना ,बर्तन साफ करना ,झाड़ू लगाना ,साफ सफाई करना, और अन्य सभी कार्य जो मम्मी करती आई है वो अपनी बेटियों को सिखाना इसके अलावा और भी चीजें जो अतिरक्त बातों को ध्यान में रखने की जरूरत होती है वैसे काम सीखने में बुराई नही है लेकिन जबरदस्ती या बुरे बर्ताव से ये काम तो तुम्हे करना ही पड़ेगा ये अन्याय है गलत तरीके से प्रभाव पड़ता है।
सारी चीजें सीखने के लिए उम्र पड़ी है और जब बेटियाँ पढ़ने लिखने की उम्र में ये सारे काम करेगी तो पढाई में दिमाग कैसे लगायेगी पढ़ने के लिए तो बहुत ध्यान लगाने के साथ साथ काफी मेहनत भी लगती है शरीर व मन ,दिमाग सभी थक जाते हैं अब ऊपर से ये दबाव बनाया जाता है आखिर क्यों ……? ?
अब चूल्हा चौका घर के सारे कामकाज करके शादी व्याह करके मुक्त हो जाते हैं लेकिन ससुराल में जाने के बाद भी वही दिनचर्या शुरू हो जाती है भले ही वो पढ़ी लिखी हो सर्विस करती हो शिक्षिका ,डॉक्टर , कोई भी अन्य उच्च पदों पर अधिकारी पद पर कार्यरत हो घर के कामों से कभी भी अछूता नही रहती हैं ।
वैसे खुद के काम को करना अच्छी बात है लेकिन कुछ को तो मजबूरी हो जाती है करना ही है और सारे परिवारों के साथ में तो और भी मुश्किल होता है एक साथ दो काम निभाना पड़ता है कहीं कहीं तो सारे कामों के लिए कामवाली तैयार रहती है पैसे दीजिये काम करवा लीजिये वैसे भी जब काम नही बनेगा तो या सर्विस करके थक कर कौन काम करेगा सो कामवाली सही है।
ये सब तो ठीक है लेकिन शादी के बाद जब खुद माँ बनने के बाद नया रूप लेती है तो इन बातों का एहसास होने लगता है अपनों से रिश्ते नाते तोड़कर दूसरों को अपनाते हैं अपने सपनों की ख्वाहिशों को मन में दबाते हुए जब साजन के सपनों को बुनने लगते हैं सुबह जल्दी उठना स्वाभाविक रूप से लाजमी होता है।
सुबह सबेरे उठना घर के सारे कार्यों को बेहतरीन तरीके से करना एक दिनचर्या सी बन जाती है और अपने कर्म बंधन में बंध ही जाती है फिर वही से चक्र शुरू हो जाता है बच्चों के जन्म से लेकर शादी व्याह तक की पूरी जिम्मेदारियां निभाते हुए परिवार के साथ में सामंजस्य स्थापित करती रहती है और बुढ़ापे में नाती ,पोतियों ,पोता ,पोतियों संग सहभागी बनकर किस्से कहानियां सुनाना उन्हें बड़ा होते देख खुश हो जाती है और घर की लक्ष्मी ,गृहलक्ष्मी से घर की चौकीदारी देखरेख करती है पिता के घर से डोली में बैठकर आती है और अर्थी पर ही चली जाती है यूँ ही अपने जीवन के अतीत ,वर्तमान ,भविष्य सभी को देखते हुए रंगीन सफर तय करते हुए चली जाती है …..! ! !
स्वरचित मौलिक रचना ??
***शशिकला व्यास **
# भोपाल मध्यप्रदेश #