ओ कंकाल, कड़का कंगाल ।
ओ कंकाल, कड़का कंगाल ।
सहज जबरन छूटा हर माल ।।
फूल फल हरियाली ले चमन l
सुंदर सा, तन मन धन जीवन ।l
गायब गायब, गुलाबी गाल ।
विषय प्यास बही, सारी सांस ।
सब ख़ाक ख़ाक, सब ख़ास ख़ास ll
अचल हुआ, मरी चंचल चाल ।
ओ कंकाल, कड़का कंगाल ।
सहज जबरन छूटा हर माल ।।
अरविंद व्यास “प्यास”